পাতা:রবীন্দ্র-রচনাবলী (দ্বিতীয় খণ্ড) - বিশ্বভারতী.pdf/১০১

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कड़ि ७ ८कांग्रण যেন গো জামারি ভূমি জাৰিন্মরণ, জনজ কালের মোর স্থখ দুঃখ শোক, संस्ठ नय चण८खब्र गूक्ष-श्iनत्र, करड नख चांकftध्वंसू छैizक्रम्ल चांzलॉक । कठ बिबटनम्न छूमि विब्राहब्र वाष1, कङ ब्रबर्नौब फूमि थ*राब जाज, cनहे हानि cनहे चर्थ cनहे जब कथा भधूब मूब्रठि पनि एनथा क्णि चांज । তোমার মূখেতে চেয়ে তাই নিশিদিন चौबन इन्द्र बन श्रठरइ बिनौन ॥ হৃদয়-আসন ८कांभन इषiनि बांह नब्रrय लडां८ब्ब विकलिङ उन कृ;ि चोखनिद्रा ब्रम्र, তারি মাঝখানে কি রে রয়েছে লুকাছে चडिलइ नवडन cणांनन झबद्र । সেই নিৱালায়, সেই কোমল আসনে, इहेषानि cबश्कू खप्नब शशाह, কিশোর প্লেষের স্বচ্ছ প্রদোষ-কিৰণে चांनड चैषिद्ध उरण ब्रांथिtब चांयांइ । কত না মধুৰ আশা ফুটিছে সেখান— ग्रंडौच्च निवॆरर्ष कड बिंबन कल्लन, डेशन निचांग-बाबू बनख-नकTांच्च, cनांनtन छैक्नैिौ ब्रांरख इ*ि चर्थरूनी । छाम्नेि बांधक चांयांzब कि ब्रांषिtब दख्रन एषरताङ्गं चषषूा षभान-निन ॥