পাতা:অনাথবন্ধু.pdf/২১৯

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प्रबंण बाख, बौब रूंच्या । } up- - - बईपान के वर्तमान राजा के पूर्व जो राजा थे उन्हों ने जनाई निवासैी मिचवंशके पूर्वपुरुष को इतर्नी जर्मोन दोष्टी कि वै इतने अधिक जखाशय देवालय इत्यादि विनावा गये जिसखे आज तक मित्रवंश का नाम जीवित है। बङ्गाल में भी एसे बहुत से रास्ते हैं कि जिन्हें किसी मुसलमान अथवा हिन्दू ने बनवा पथिकों का उपकार किया है । रेल, छैठौमर इत्यादि हारा कवल धनोलोगों का ही उपकार हुआ ह, गरीबों को इस से कक्षा लाभ ? यदि एसा पथ बनवा दिया जाता जिस पर पथिक चलकर किसी प्रकार का कष्ट न पाते, जलाशय एवं विश्रामाश्रम थोड़ी थोड़ी दूर पर होते उनकी रक्षार्थ राज्य की ओर से पहरेदार होते, तो इस से जितना मध्यश्रेणी के मनुष्थों का एवं दरिद्रों का उपकार हो सकता उतना क्या रेल से होता है ? न जाने शेर प्रणाइ का हृदय वितना उच्च था जिसने ग्रैंडद्रह रोड, जो पेशावर तक चली गई है, बनवाया था। इसके इारा गरीबों का कितना उपकार हुआ यह खयं अनुभव कीजीये सत्कर्मी दूसे कहते हैं। दिनाजपुर की महोपाखडिग्गी प्राचीन पालराजाओं की अतुलकीर्ति है। एक कुमिज्ञा शहर में ही असख्य डिग्गी वर्तमान हैं आज लाखों आदमी उनका जल पीकर बनवाने वाले की प्रशंसा करते हैं। इसी तरह यदि हम दृष्टान्तो से पवें रंगा चाहे तो अभी बहुत से उदाहरण मिलेंगे परन्तु कवल उदाहरण से कुछ लाभ नहीं होने का जितने हम लिख चुके हैं हमारी समझ में वे यथेष्ट हैं। अस्तु एक सत्कर्मी एसा बताना बाकी रह गया हे जिसकी तुलना नहीं। कभी कभी Ana জলাশয়। rer .९७९ एसा देखा गया है कि किसेी समय कोई मनुष्य धनी था वितन्तु कराल समय के परिवर्तनशील चक्र में पड़कर दरिद्र हो गया है। अब उसपर सबसे बड़ा दुःख तो यह है कि वह लज्जा के वश छोटा काम कर नहीं सकता, किसी से मांगने में भी सकुचाता है दूसरे यदि मांगने पर कोई न दे तो और भी लजित होना होगा, इससे मांग भी नहीं सकता, एसी अवस्था में एसे घोर शंकट में पड़े हुए मनुष्थ को कुछ गुप्त दान, जिसमें दहने हाथ की बाएं हाथ को भी खबर नही, देना प्रतेयक उदारचित्त सत्कर्भी पुरुष को अपना परम कर्त्तव्य समझना चाहिये परन्तु एसा उन्हे कदापि न सोचना चाहिये कि इसके दारा हमारा यश फैलेगा अथवा हमारा इसपर एहसान होगा या हमें इससे कुछ लाभ होगा अर्थात् इस कार्य के फलाफल की आशा इसके कर्ता को न रखनी चाहिये। एसे एसे परोपकारी जीव भोपड़ों में रहते देखे गये हैं यदि वे चाहें ती, जिस तरह चापलोग रहते हैं, उसी तरह वे भी रह सकते हाथी घोड़े भी रख सकते परन्तु नहीं, वे सोचते थे जितना धन हम इन ऊपरी, नागवान चाड़म्बरों में खो दे उतना हम किसी सत्कर्म में क्यों न लगा दे जिसमें हमारे धन का वास्तविक उचित व्यवहार हो। एक बात और है, वे ग्राम में रहा करते जहां इन आड़म्बरों से कुछ प्रयोजन ही नहीं न तो वहां थियेटर न वाइस्कोप न टीम न कोई नशा न कुचरित्र खी इत्यादि कुछ भी नहीं रहता इस लिये वे शान्तिमय जीवन बिताते एवं ईश्वर ध्यान मे मन्न रहते किन्तु नगर मे रहवर जून हृदयाकर्षक वस्तुओं से बचना कठिन हो जाता है। यदि मेरे निवेदन से पाठक कुछभी लाभ उठावें तो मै अपना परिश्रम सफल समभूगा।