एकोत्तरशती/निर्झरेर स्वप्नभंग

উইকিসংকলন থেকে

निर्झरेर स्वप्नभङ्ग

आजि ए प्रभाते रविर कर
केमने पशिल प्राणेर ’पर,
केमने पशिल गुहार आँधारे प्रभातपाखिर गान।
ना जानि केन रे एतदिन परे जागिया उठिल प्राण। 

     जागिया उठेछे प्राण,
ओरे     उथलि उठेछे वारि,
ओरे     प्राणेर वेदना प्राणेर आवेग रुधिया राखिते नारि। 
थर थर करि काँपिछे भूधर,
शिला राशि राशि पड़िछे खसे,
फुलिया फुलिया फेनिल सलिल
गरजि उठिछे दारुण रोषे।

हेथाय होथाय पागलेर प्राय
घुरिया घुरिया मातिया बेड़ाय—
बाहिरिते चाय, देखिते ना पाय कोथाय कारार द्वार। 
केन रे विधाता पाषाण हेन,
चारिदिके तार बाँधन केन!
भाङ् रे हृदय, भाङ् रे बाँधन,
साध् रे आजिके प्राणेर साधन,

लहरीर ’परे लहरी तुलिया
आघातेर ’परे आघात कर्।
मातिया यखन उठेछे परान
किसेर आँधार, किसेर पाषाण!
उथलि यखन उठेछे वासना,
जगते तखन किसेर डर!

आमि     ढालिब करुणाधारा,
आमि     भाङिब पाषाणकारा,
आमि     जगत् प्लाविया बेड़ाब गाहिया
आकुल पागल-पारा।
केश एलाइया, फुल कुड़ाइया,
रामधनु-आँका पाखा उड़ाइया,
रविर किरणे हासि छड़ाइया दिब रे परान ढालि। 
शिखर हइते शिखरे छुटिब,
भूधर हइते भूधरे लुटिब,
हेसे खलखल गेये कलकल ताले ताले दिब तालि।
एत कथा आछे, एत गान आछे, एत प्राण आछे मोर,
एत सुख आछे, एत साध आछे—प्राण हये आछे भोर।। 


की जानि की हल आजि, जागिया उठिल प्राण,
दूर हते शुनि येन महासागरेर गान। 


ओरे चारिदिके मोर
ए की कारागार घोर,
भाङ् भाङ् भाङ् कारा, आघाते आघात कर्।
ओरे आज     की गान गेयेछे पाखि, 

एसेछे रविर कर॥
१८८२  ‘प्रभात संगीत’


 रविर कर—सूर्य की किरणें; केमने—किस प्रकार से; पशिल—प्रवेश किया; केन—क्यों; एतदिन—इतने दिन; उथलि—उद्वेलित; रुधिया......नारि—अवरुद्ध नहीं कर पाता; पड़िछे खसे—टूट कर गिरता है।

 हेथाय होथाय—यहाँ वहाँ; पागलेर प्राय—पागल के समान; मातिया—मत्त होकर; बेड़ाय—घूमता है; बाहिरेते चाय—बाहर होना चाहता है; कोथाय—कहाँ; हेन—ऐसा; तार—उसके; बाँधन—बन्धन; भाङ्—तोड़ो; तुलिया—उठा कर, उत्तोलित कर; यखन—जब; किसेर—किसका; तखन—तब।

 आमि—मैं; ढालिब—ढालूँगा; गाहिया—गाते हुए; पागल-पारा—पागल के सदृश; एलाइया—आलुलायित कर, खोल कर; कुड़ाइया—चुन कर, बटोर कर; रामधनु-आँका—इन्द्रधनुष अंकित किया हुआ; पाखा–पंख; हासि—हँसी; छड़ाइया—विकीर्ण कर; दिव—दूँगा; हइते—से; छुटिब—दौडूँगा, वेग से प्रवाहित होऊँगा; लुटिब–लोटूँगा; हसेहँस कर; गेये-गा कर; एत—इतना; कथा—बात; आछे—है; मोर—मेरा; भोर—विभोर।

 की—क्या; हल—हुआ; हतसे; शुनि—सुनता हूँ; येन—जैसे; एसेछे—आया है।