পাতা:एकोत्तरशती — रवीन्द्रनाथ ठाकुर.pdf/২৭

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अधिक संयम से काम लिया गया है। टेकनीक की श्रेष्ठता और विचारों की गहनता ने मिल कर इस काल की कविताओं को अधिक गंभीर और मार्मिक बना दिया है। अपनी युवावस्था के प्रारंभिक दिनों में रवीन्द्रनाथ ने प्रेम-संबंधी बहुत-सी सुन्दर कविताएँ लिखी हैं, लेकिन वे जीवन के ऊपरी तल को ही छूने वाली लगती हैं तथा उस गहराई तक नहीं जातीं जहाँ मनोराग की आग जल रही होती है। समय-समय पर आलोचकों ने कहा है कि प्रेम की अनुभूति की अपेक्षा वे शब्दों और अभिव्यक्ति के ढंग पर अधिक ध्यान देते रहे। लेकिन यह सम्पूर्ण सत्य नहीं है, क्योंकि हमारे सामने 'रात्रे ओ प्रभाते' (सं॰ २२) अथवा 'स्वर्ग हइते बिदाय' (सं॰ २०) की तीव्र लालसा भरी पंक्तियाँ हैं। अगर इन कविताओं को कोई उनकी उत्तरकालीन कविताओं के पास रखें तो यह स्वीकार करना ही पड़ेगा कि बाद की कविताओं में गहराई और वज़न है जिनका पहले की कविताओं में अपेक्षाकृत अभाव है। किसी भी भाषा में कम ही कविताएँ ऐसी होंगी जो संयम और मनोराग की गाढ़ता में 'पूर्णता' (सं॰ ७८) अथवा 'आशंका' (सं॰ ८०) की बराबरी कर सकें।

 तीव्रता और प्रगाढ़ता की अभिवृद्धि के अलावा उनकी उत्तरकालीन कविताओं में जीवन के रहस्यों के प्रति उनका आकर्षण उत्तरोत्तर बढ़ता हुआ दीख पड़ता है। प्रचुर समृद्धि और वैचित्र्य के होने पर भी बंगला-काव्य में प्रादेशिकता का गुण प्रायः ही दीख पड़ता है। यहाँ तक कि कुछ अत्यन्त सुन्दर वैष्णव गीति-काव्य भी आंचलिक वातावरण से इतने अधिक ओत-प्रोत हैं कि उसे छोड़ कर उनके लिए ऊपर उठना कठिन है। रवीन्द्रनाथ का यह एक बहुत बड़ा कृतित्व है कि उन्होंने सार्वभौमिकता और शिष्टता के एक नये सुर को बंगला काव्य में प्रविष्ट कराया। इसीलिए उनकी कविताएँ जिस प्रकार से बंगाल के किसी आदमी को प्रभावित करती हैं, ठीक उसी तरह से अमेरिका या यूरोप के निवासी को भी। सार्वभौमिकता और शिष्टता का यह सुर उनके लंबे जीवन में उत्तरोत्तर गहरा होता गया और