পাতা:एकोत्तरशती — रवीन्द्रनाथ ठाकुर.pdf/৩৬

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निर्झरेर स्वप्नभङ्ग

आजि ए प्रभाते रविर कर
केमने पशिल प्राणेर ’पर,
केमने पशिल गुहार आँधारे प्रभातपाखिर गान।
ना जानि केन रे एतदिन परे जागिया उठिल प्राण। 

     जागिया उठेछे प्राण,
ओरे     उथलि उठेछे वारि,
ओरे     प्राणेर वेदना प्राणेर आवेग रुधिया राखिते नारि। 
थर थर करि काँपिछे भूधर,
शिला राशि राशि पड़िछे खसे,
फुलिया फुलिया फेनिल सलिल
गरजि उठिछे दारुण रोषे।

हेथाय होथाय पागलेर प्राय
घुरिया घुरिया मातिया बेड़ाय—
बाहिरिते चाय, देखिते ना पाय कोथाय कारार द्वार। 
केन रे विधाता पाषाण हेन,
चारिदिके तार बाँधन केन!
भाङ् रे हृदय, भाङ् रे बाँधन,
साध् रे आजिके प्राणेर साधन,


 रविर कर—सूर्य की किरणें; केमने—किस प्रकार से; पशिल—प्रवेश किया; केन—क्यों; एतदिन—इतने दिन; उथलि—उद्वेलित; रुधिया......नारि—अवरुद्ध नहीं कर पाता; पड़िछे खसे—टूट कर गिरता है।

 हेथाय होथाय—यहाँ वहाँ; पागलेर प्राय—पागल के समान; मातिया—मत्त होकर; बेड़ाय—घूमता है; बाहिरेते चाय—बाहर होना चाहता है; कोथाय—कहाँ; हेन—ऐसा; तार—उसके; बाँधन—बन्धन; भाङ्—तोड़ो;