পাতা:অনাথবন্ধু.pdf/২৯৯

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प्रथम खण्ड, चतुर्ष :या । ] वूड़ेका उपदेश। 4hb. prer wr खाविक दस्तुर के अधिक खर्चको पुजूल खर्च कहते हैं। अपनी सामर्थ अनुसार काम करना चाहिये, इसके अतिरिक्त कुछ न होना चाहिये। था यत्रां तक कि अधिक यूकनाभी नहीं चाहिये क्यों कि आयु घटती है। YS) एक पैसे की हांड़ी लेनेपर आप जितनी बार वजाते हैं नोट भंजाकर आप रुपये की जितनी बार बजाते हैं, क्यों कि ये चोज क्षणस्थायी हैं। जिस वस्तु से आपके जीबन का सम्बन्ध है, जिन चीजों पर आपके जीवनका सुख दु:ख निर्भर करता हैं, क्वा उसको उत्तम प्रकार आप परख देखते हैं ? उसे आप रुपये तथा मट्टी को वनी हुई हांड़ी सा क्यों नहीं वारंवार परख देखते ? हाय! मानव जाति कैसो मूर्ख हैं। जिस जिस बस्तुपर उनकी मान मर्यादा निर्भर करती है उसे उतनी बार परीक्षा न कर अपनी इज्जत नष्ट करदेती है। ཇི་ 仁 मदासब्र्वदा समयानुकूल काम करना चाहिये । । ' खचकाचारो तथा जिहां न होना चाहिये। दान अवश्य करना किन्तु ऐसा दान न हो जिस में अपना अनिष्ट हो । e. जिस मनुथपर हरएक का सन्देह है वह कभी विधखासयोग्य नहीं हो सकता, न सुखी ही हो सकता । जो धार्मिक तथा सरल हैं, उन्ही से हो सबकी मित्रता होती है। o । काम वह करना चाहिये जिस में दूसरे का कुछ अनिष्ट न हो, आहार भी इतना हो करना चाहिये जिससे किसी प्रकार का रोगादि न हो। बात भी ऐसी नहीं कहनी चाहिये जिससे दूसरे के मन को कुछ तकलीफ पहुंचे। संसार में - गनुष्थ यदि सुखी होना चाहे तो सब्र्व प्रथम अर्थ का अपव्यय उसे न करना चाहिये। यौवन का अपव्यवहार न करें, सुन्दरता को नष्ट न करें, ' शक्ति तथा बावध का द्वथा व्यवहार न करें। ۔ ۔ . . masasaNegaNursinyMrs ـــــم ـــــــے