পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/১৫০

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कथासुखे शुकजखपानादिकम् । १२é. साङ्गप्रयीगपरीऽपि सततावक्षदिबतदण्ड् , (हि) सुप्तोऽपि प्रबुच , (च) खझिञ्झितनिन्नद्दयोऽपि परित्यक्तवामलोचनस्तदेव कमखस्रर सिस्नाछु५पागमत् (क) ।। प्रायेणाकारण मित्राखतिकरुणाद्रीणि च ( ) सदा खलु भवन्ति सता चेतासि । यत स मा तदवखमालोक्य ससुपजातकरुण (२) समीपवर्तिन (३) ऋषिकुमारक मन्यतममब्रवोत्-(ख) "श्रय कथमपि शुक-शिशुरसञ्चात-पचापुट एव तरुशिखरादस्मात् परिच्युत । रखन-मुख-परिभ्रष्टन वाऽनेन भवितव्यम् । तथाच्च (e) षनिति । असंयतोऽपि भबड्रोऽपि लीदार्थाँति भीषख যমৰাইঘলান बन्धाभावे च खती मुकख मुनयथि तानुपपतवि रीध तत्समाधानपचे तु भसथतोऽपि तदानी संयमरहितोऽपि मोचार्थी भाविनि काले सयमाव जग्थनान्ध्रुमुच्चरित्यथ । धारणा ध्यान समाधिरिति यीगाङ्गलयस्र्यव संयम ति संशा । तथा थ पातन्नख एहाषि- देशरक्षग्धक्षिप्तस्य धारणा तत्र प्रत्ययं क्षतनता ध्यानम् तदूवाथ मात्रनिर्भास्रं खष्पश्चमिषं स्रमाषि त्रयमेकत्र सयन कृति । सयसेन नीचलाभक्षु तर्ववानुसन्धीय इति सक्षेप । (क) सामेति । सामप्रवीगपरोऽपि सामाख्यप्रथमोपायानुष्ठानपरायणीऽपि सततमवलम्बिनी दृएङ्गशतुर्थोपायी येन स इति विरीध सामवेदोक्तानुष्ठानपरायणोऽपि सततावलम्बितयष्टिक इति तत्समाधानम् । (च) सुप्त इति । सुप्ती लिट्रिक्षेीऽपि प्रबुङ्खैी जागरिव इति विरोध सुप्ती निद्रितावख्याक्षद्दाश्लभश्चिरचितेोऽपि प्रबुद्ध परमात्मविषयकप्रइष्टच्चानवनिति तत्समाधानम्ं। व्याख्यान्तराणि तु कष्टकख्यनावशादनादैयानौति सुधौमि अ्रयम् । (क) सप्रीति । सब्रिहित मुखे आसन्न नेत्रइय यस्य ताद्दण सत्रपि परित्यक्त वाम सब्य जीचन नेत्र येन स इति विराध परित्यज्ञा वामलोचना कामिनी तत्ससर्ग इत्यथ येन स ब्रश्रचारित्वादिति भाव । इति तत्समाधानम्ं। तदैव पन्यामिधान कमलसर पद्यमयसरीवरम् सिखासु खातुमिच्छु, सन् उपागमत् तत्र वीप खितवान्। (ख) प्रायेणेति । स हारीत । सा भवखा विद्वतपूर्वा दशा यस्य तम् । भव विशेषेण सामान्थसमर्थान ভনীহেলিংৰাৰম্বজ্ঞা । হইয়াও উৎকৃষ্ট অট্টালিকায় প্রবেশ করিয়াছিলেন (বনে বাস করিয়া পরমাত্মাকে জ্ঞানগোচর কবিয়ছিলেন) (স) তিনি বদ্ধ না হইয়াও মুক্তির প্রার্থী ছিলেন (তৎকালে সংযম না করিলে ও পববৰ্ত্তী কালে সংযম কবিয়া মুক্তিলাভ করিতে ইচ্ছা কবিয়াছিলেন), (হ) হারত সামপ্রয়োগে আসক্ত থাকিয়াও সৰ্ব্বদা দণ্ড প্রয়োগ কবিতেন (সামবেদোক্ত কার্ধ্যের অনুষ্ঠান করিতেন, আর সর্বদা যষ্টি ধারণ করিতো) , (ক্ষ) তিনি নিদ্রিত হইয়াও জাগরিত ছিলেন, (নিদ্রিতের ন্যায় বাহ্যজ্ঞানবহিত ছিলেন এব পরমাত্মাতে প্রকৃষ্ট জ্ঞানলাভ কবিয়াছিলেন) , (ক) নিজমুখমণ্ডলে দুইটী নেত্ৰ থাকিলেও হরীত, বামনেত্র ত্যাগ করিয়াছিলেন (স্ত্রীস সর্গ ত্যাগ করিয়াছিলেন)। (খ) প্রায় সাধুজনর চিত্তই বিনা কারণে সৰ্ব্বদার জন্ত পরের হিতৈষী এব অত্যন্ত দয়া হই থাকে, যেহেতু, সেই অবস্থায় আমাকে দেখির হারতের দয়া জন্মিল হিনি to জলি বন্ধান गाति । (९) दय । (३) सर्मौपतरवति नम् । Re