পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/১৬১

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የ ፀ• काढ्बरी पूर्वभागे समयावसानमिव भासत्र-(१) जलप्रपातम, (ग) जलषरसमयमिव वन-गइन मध्यसुख सप्त हरिम, (घ) इन मन्तमिव (२) शिखा-शकख-प्रहार सचर्णिताचाखि(२) खवियम , (ङ) खुष्टुवु-बुिगुशुचुमुिव_म्ार्ड्वाग्न्क्ाियैप्ा. (च) रुरभि (ख) किन्युरुषेति। किन्युरुषाणां किन्नराणाम् अधिराज्य राइनिव मुनिजनग्ट हौता ये कखसा जखपूण इाधाख'भिषिचमाला हुमा वचा यश्च तम् बन्धत्र मुनिशगष्टशैौतङ्खउं षभिषिच्धमानी राज्ध षभिषिंच्यमाण हुमी गान राजा बत्र तत्। पूर्णीपमा । पुरा किल मुनय किव्ररराज्यो दुमममिषिसिचुरित्यपि कथासरित्सागरै द्रष्टब्यम् । (ग) निदाघेति । निदाघसमयावसानमिव गौद्मकालशेषमिव भासत्रौ निकटवति नौ जख दीधि कासखिल प्रपाती निभा रष तौ यख तम् पचे भासन्त्री निकटवर्ती जलप्रपाती छष्टिजलपतन यख तत् । पूर्णोपमा। प्रपाती निभ रेऽतटे इति मेदिनौ । (घ) जखेति । जलधरसमयमिव वर्षाकालनिव वने अरण्यो यद्गइन गह्वरप्रदैश तख्य मध्यै सुखेन उपद्रवा आवाब्रिधिन्तभावेग सुप्ता करय सि फ्रा यभिन् तम्। भन्यत्र तु वनुख सागरणलख गइने गब्बरवढ्गभीरे मध्ये मध्यखाने सुखेन सुप्ती इरिर्नारायणी यषिान् तम् । शेते विचा सटाषाढ़ भाद्र च परिवत्त ते । इत्यादिषतेरिति भाव । अत्र वनगइनशब्दयी पय्यायतया भध स्यापातत पुनरुक्तताप्रतौते परखीझरूपभेदावगमात् भिन्नाकार बब्दगतलाश्च पुगखतवदाभास्वी;खड्ार पूर्खोपमा चाजयीरङ्गाङ्गिभावेन सङ्र । वज प्रखवणे गेहें प्रक्षांीऽग्धश्चि कानने इति छैमचन्द्र । गङ्घन गइरै दुखे थने इति त्रिकाण्डीष । (ड) घ्नूमन्तनिति। हनुमन्तम् भच्चनापुत्रभिव थिलाशकलख प्रखरखण्डख अद्यारेण सच्चथि त तँल निर्णाणार्थ पिष्ट अचाण विभौतकफखानाम् अश्चिसञ्चयी मध्यवर्ती कठिनागी यत्र तम् अन्यत्र तु ग्रिलाग्रकल प्रहारेण सघृणि ती भग्र भचस्य धचनामकरावणपुत्रस्य भखिसञ्चयो येन तम् । पूर्णोपमा । भची विभौतकी इच पाशकी:चोऽचमिन्द्रियम् । भची रावणिरित्युत छात्यमचन्तु निबगम् ॥ इत्यनेकाथ ध्वनिमच्चरौ । पुरा लडादाध्यानन्तर इनूलान् पाषाणप्रस्तारैण अचगामान रावणपुत्र निइतवानिति रामायणम् । (च) खाण्ड्वॆति । खाण्ड्बस्य तद्ाख्यबलस्य विश्ाशॆ दाच्छ्ले उद्यती चॆोऽलु गखत लैौधपाष्ङ्गषप्तमिव प्रारब्धम् ধেনুগণ ছিল (ক) উদয়ন রাজা যেমন বৎসদেশীয় প্রজাগণকে আনন্দিত করিয়াছিলেন, সেই আশ্রমে মুনিগণও তেমন গোবৎসদিগকে আনন্দিত করিতেছিলেন (খ) কিল্পরদিগের রাজ্যে যেমন মুনিগণ জলপূর্ণ কলস ধারণ করিয়া ক্রমনামে রাজাকে অভিষিক্ত করিয়াছিলেন, সেই আশ্রমেও তেমন মুনিগণ জলপূর্ণ কলস ধারণ করিয়া বৃক্ষসমুহকে অভিষিক্ত করিতেছিলেন (গ) গ্রীষ্মকালের শেষে যেমন বৃষ্টিপাত নিকটবৰ্ত্তী হয়, সেই আশ্রমেও তেমন দাধিকার ও প্রস্রবণের জল নিকটবর্তী ছিল, (ঘ) বর্ষাকালে (আষাঢ়মাসে) নাবায়ণ যেমন গভীর সাগর জলমধ্যে মুখে নিদ্রিত হন সেই আশ্রমেও তেমন সি হগণ বনের অন্তর্গত গহৰবমধ্যে মুখে নিদ্রিত ছিল, (ঙ) হনুমান যেমন প্রস্তরখণ্ডের আঘাতে রাবণের পুত্র অক্ষকুমারের অস্থিসমূহ চুৰ্ণ করিয়াছিলেন মুনিগণও তেমন তৈলনিৰ্ম্মাণের জন্ত প্রস্তরখণ্ডের আঘাতে বহেড়ার বীজ সকল চুর্ণ করিতেছিলেন (চ) থাণ্ডববনদাহনে প্রবৃত্ত অর্জুন যেমন অগ্নির কার্ষ্য আরম্ভ [१] प्रत्यासन्न । [२] चलिखसूतमिव । [२] शिखायकक्षसचणि तोचखि ।