পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/২৬৭

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ጸፀ¢ कादब्बरो पूर्वभागे सहस्र कलकल बहुलेन त्रिभुवनमापूरयता उत्सवकोखाहलेन ससामन्त्ता सान्त पुरा (१) सप्रष्ठाय सराजलीका सवेश्यायुवतय सबालठ्ठत्वा ननृतुरागीपालसुझत्ता इव हर्षानिभरा प्रजा (स) । प्रतिचणम् () र वडैत चन्द्रोदयेनेव जलनिधि (३) कलवालमुखरो राजसूनीज झ(४) महोत्सव (ह) । पार्थाि'वखु तनयानन् दश’न महोत्सव (५) हृतह्रदयोऽपि दिवसवशेन मौहृतिकगणोपदिष्ट प्रशस्त मुह्वत्त निवारित निखिलपरिजन शुकनासद्दितोय (च) मणिमय (६) मङ्गलकलस-युगलाशून्योन श्रासता बडुपुत्रिकालछुतेन (s) तेन । मङ्गलपटsानां माङ्गलिकढक्कानां पटुरव वि शालध्वनिभि सवजि तखन । भनेकेषां जनसन्नखाणां कखकख कोलाइल व हुली विशालौभूतस्तैन । सामना समौपवत्ति भिन्नु पतिमि सहेति ससामन्ता अन्त पुरैरन्त पुरखजनै सईति सान्त पुरा प्रकृतिभि पुरवासिभि सह्रति सप्रक्कतय राजलीकै राजपुरुष सहैति सराञ्जलीका वग्प्ला युवतिभि सहेति सवश्यायुवतय बाल छ ड्र क्ष सह्रति सबालल्लङ्गा प्रणा झ्ष नभ र आनन्दपूर्ण सत्य उन्मगा इव गोपाखान् वल्लवान् मय्र्यादौकृत्य ति भागीपाल यथा खातथा ननृतु नृत्यच्चक्र, । (छ) प्रतौति । चन्द्रौदयेन जलनिधिरि व कल्लकख कीखाइण मरम्लर शब्दायमान राजसूली राजपुत्रस्य जनअमीत्सव प्रतिघणम् अवर्षत । अत्रीपमालद्वार । (च) पाथि व इति । पाथि वी राजा सूतिकाग्टइमपश्च्चदिति बहुपरषत्ति ब्था क्रिथया अन्वय । तनयाननस्य पुत्रमुखस्य दश *मेव महीत्सव तेन हतष्ठन्योऽपि थाल्लष्टचितोऽपि दिवसवशेन शुभसमयानुरोधेन मौइति क गणीपनिष्ट दंवङ्गगणनिवदिते । निबारिता सङ्घ गमनाय निषिड्रा निरिल्लला परिजना येन स शूकनासू एव हितैौय सहचरी यस्य स । (क) मर्फीति । इतस्त तौयान्तपदानि वछ्यमाणद्वारदशैंनेत्यस्य विशषणानि । मणिमथेन मङ्गलकखसयुगलेण थशूव अविरहित सयुलाख्तैन । भासक्रामि सझिलिताभिरुपयिताभि बशुपुत्रिकाभिब कुपुत्रशालिनौभि खौभि সবের কোলাহল হইতে লাগিল মন্দরপধ্বতত্ত্বাবা মথ্যমান সমুদ্রের শব্দের ন্যায় গম্ভীর দুন্দুভির শব্দ সকল শব্দের অ.গ্র অগ্ৰে চলিতে লাগিল, কোমলশন্ধকারী মৃদঙ্গ, শঙ্খ, বৃহৎ ঢাক ও ছোট ঢাকপ্রভৃতিব শব্দে সেই কোলাহল বৃদ্ধি পাইতে লাগিল এবং জয়ঢাকের বিশাল ব্দে ও বহু সহস্ৰ লোকেব কোলাহলে সেই উৎসব কোলাহল অতি য় বাড়িয়া উঠিল, তখন সামন্তবাজগণ, অন্ত পুবেব পবিজনগণ, পুববাসিগণ রাজপুৰ যগণ বেশুীগণ এবং বালক ও বৃদ্ধগণের সহিত গোপালক হইতে আরম্ভ কবিয়া সমস্ত প্রজাবৰ্গ আনন্দে পরিপূর্ণ হইয় উন্মত্তের স্থায় নৃত্যু করিতে লাগিল। (হ) রাজপুত্রেব সেই জন্মমহোৎসব কোলাহলে পরিপূর্ণ হষ্টয়া চক্সোদয়ে সমুদ্রের স্তায় ক্রমে বৃদ্ধি পাইতে লাগিল। (ক্ষ) কিন্তু রাজা পূৰ্ব্বেই পুত্রের মুখদর্শনরূপ মহোৎসবে আকৃষ্টচিত্ত হইয়াও শুভ সময়ের অমৃবোধে দৈবজ্ঞগণের উপদেশ অনুসারে প্রশস্ত মুহুর্তে অন্তান্ত পরিজনদিগকে সঙ্গে আসিতে নিষেধ করিয়া কেবল শুকনাসেব সহিত যাইয়া স্থতিকাগৃহ দৰ্শন করিলেন। (ক) সেই (१) सान्त पुरजन । (१) নিদিদ () গণধি । () জন্মণী । (W) ৰমনীবন্তৰ। (६) कणकलय । (७) पुबिकाप्रतालेन ।