পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/২৭০

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बौथायाँ सूतिकाग्य्रुवर्णना। ኟ8æ. चन्दनजलधवलितैधु भित्तिशिखरभागेधु पञ्चराग विचित्र चेख-चेोर कलाप चिहिताम् प्रापीतपिष्टातक () पद्धाद्विता वछैमानक (२) परम्यराम् अन्धानि च सूतिकाग्टइ (२) मण्डनमङ्गलानि सम्यादयता पुरन्धूिवगेण समधिष्ठितम्,(क) उपद्वार सयत विविध गन्ध-कुसुम-मालालछुतजरचक्कागम्, (ज) अखिल ब्रेडि-मध्यावख्यापितायै-(४) वचाध्यासित् शयनीय-(५) शिरीभागम्, (भतः) प्रनवरतद्घ्यमानाज्य मिश्र भुजग निग्झाँकमेष विषाण चतीदम, (ञ) श्रनल प्लष्यमाणारिष्टतरु (५) पल्लवीझ गुटिका ऋतिकानिर्मितगुलिका एव कदस्बानि कदक्वकुसुमानि तेषां मालां श्र णी विन्यस्यता भूमौ स्थापयता । यत्र निरङ्ग कैवजरूपकमरुजुङ्कार ! (छ) चन्दनेति । चन्दनजलेन धवलितेब्रु शुभौक्कतैषु भितीन शिखरभागैषु उपरिदशैषु पञ्चमि रज्यते। एभिरिति रागा वर्णास्त विचित्राणां चेलचौराणां वस्त्रखण्ड़ानां कनापेन समूहेन विङ्गितां तेनाष्ठतामित्यथ तथा भापौतानाम् ईषत्पौतवर्णानां पिष्टातकानां पटवासानां पद्ध न गाढद्रवेण धद्धितां चिङ्गितां चित्रितामित्यथ वई मानकपरम्पराँ शरावयणौ शूरा "ी वईमानव इत्यमर ! सूतिकाग्टहस्य मगड़नमङ्गलानि शोभाविधानरुपशुर्भ कार्याणि सध्यादयता विदधता पुनन्धि वग ण पतिपुत्रवतैौनां नारीणा समूहेन समधिष्ठितम् आश्रितम् । (ज) उपेति । उपद्दारै हारसभौपे सयती बजु विविधानां नानाप्रकाराणां गन्धकुसुमा 'ां सुगन्धिपुष्याणां मालया अलङ्कत जरन्। ब्लङ्घन्छागी यस्य तत् । (भी) भखिनति । भखिलानां सव प्रकाराणां द्रौईौणां शरत्पक्कधान्यानां मध्य भवख्यापिता उपवेशिता या चांयॆद्वद्धा सत्कुलोत्पन्ना जरतौ स्त्रौ तधा चध्याठित तत्क्षीखौलभ्यवच्हारीपदॆशाश्च माश्वित यथगौयस्य महिषॆौ श्याया श्रीिभागॆी यखिान तत् । व्रीहि चरत्पक्ाधान्चम् इति प्रायश्चित्तविवक्ष शूलपाणि । (अ) भनेति । भनवरत दह्यमाना भाज्थमिश्रा घृतसयुता भुजगनिझाँकाणां सप कञ्च कानां मेषविषाणानां मेषःएड़ाणाञ्च चीदाथ गार्गनि यखिन् तत् । (ट) भनलेति । भनलेन वहिना झ ध्यमाणा दद्यमाना ये भरिष्टतरुपल्लवा निग्वद्वचकिसलयानि तेभ्य উপরে বহুতর সোনাব যব পুতিয়া দেওয়ায় উচু নীচু হইয়াছিল এব ঘন ঘন কবিয়া শ্বেত সরিষা লাগাইয দেওয়ায় যেন স্বর্ণখচিত বলিয়া বোধ হইতেছিল (ছ) অন্য কেহ চন্দনের লেপনম্বারা ধবলাকৃত ভিত্তির উপরিভাগে পঞ্চবিধ বর্ণে চিত্র কবা কতকগুলি বস্ত্রখণ্ডে বেষ্টিত করিয়ু পীতবর্ণ আবীবের লেপে রঞ্জিত কবিয়া কতকগুলি শব| শ্রেণীভাবে সাজাইয়ু রাখিতেছিল কেহ কেহ স্থতিকাগৃহের অন্তান্ত োভাসম্পাদনরূপ গঙ্গলকাৰ্য্য কবিতেছিল , এইভাবে—কৌলিক আচারে অভিজ্ঞ পতিপুত্রবর্তী বৰ্মণীগণ সেই স্থতিকাগৃহমধ্যে অবস্থান কবিতেছিল। (জ) নানাবিধ সুগন্ধি পুষ্পের মালায় অলস্কৃত করিয়া একটা বৃদ্ধ ছাগল দ্বারের নিকটে বাধিয়া রাখা হইয়াছিল, (ঝ) শয্যার শিয়রেব দিকে নানাবিধ শরৎপক শস্তের উপরে সৎকুলোৎপন্ন একজন বৃদ্ধ স্ত্রীলোককে বসাইয়া রাখা হইয়াছিল (ঞ) সৰ্পক ক্ষুকের ও মেষশৃঙ্গেব চূৰ্ণ ঘূতল যুক্ত করিয়া অবিশ্রাস্ত দগ্ধ করা হইলেছিল (ট) বালকের রক্ষার (१) पिष्ट पिटक । (२) ६ईमान' । (३) प्रसवग्य्ष्ट – – – (५) अबह्यिताथै मायुछ छ ! (५) ययन । (६) निब्बतरु ! ३२