পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/২৮

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भारी कविव यवष'नम् । චූ जगुग्ट हैऽभ्यस्त (१) समस्तवाग्नये ससारिक पस्वरवतिभि एके । निग्ट ह्यमाणा वटव पदे पदे यजूंषि सामानि च यस्य शश्रिता ॥५२॥ हिरण्यगर्भो भुवनाण्ड़कादिव चपाकर चोरमहाणवादिव । प्रभूत् सुपर्णौ विनतीद्रादिव द्दिजश्झनामथ'पति पतिस्तत ॥ १३॥ विठ्ठरावती यस्य विमारि वाङ्काय दिने दिने शिष्यगणा नवा नवा । उषस्स लग्ना श्रवणेऽधिका श्रिय प्रचक्रिरे चन्दनपल्लवा इव ॥१४॥ जगुरिति । यस्य कुवेरख ग्टई वटवी ब्राश्रणबालका थभ्यस्तम् भनेकश श्रवणान्मुखखौक्कत समख सकख वाड़ाय शास्त्र य स्त पञ्चरवत्ति भि सारिकाभि सह्रति ससारिक शुक वौरपस्थिभि पदै पदै प्रतिपदीच्चारणे निग्टद्यमाणा युष्माभिरगृज़ पठितम् ऋदन्तु एतादृक इत्थ पराभूयमाना अतएव अख्तिा पुनरपि शुकककी क दीवीद्वावनगडाविता सन्त यत्र.वि यजुर्व दान सामानि सामवेदष अगु पतिवन्त । एतेन तख विरतर प्रचुरगृिथाध्यापकत्व सूचितम् । धत्र संचारिव चक्ा तथा निग्रझासम्बश्व ऽपि तंसंबन्धtत रतिश्धीतिरलङ्ार ॥१२॥ हिरणग्न ति । भुवनाण्ड़कात् ब्रझाएात् हिजन्मनां पति ब्र झणानामधिपति हिरण्प्लगभाँ ब्रग्ना इव चौर महाण वात् विजन्मनां पत् िहिजराज चपाकरश्चन्द्र ध्व विनतायास्तदाख्याया कथ्झपभार्याया उदरात्। दिजनानां पति पचित्र ष्ठ सुपर्णाँ गरुड इव तत कुवेरात् हिजनानां पति ब्राह्मणश्रछ अथ पति अथ पतिनामा कश्चिदभूत् । ब्रह्मतृष्जनया वेदपारदशि त्व चन्द्रखाम्य न सहि द्विाल्व गड्ऽसादृश्यं न च नारायश्परायणत्व सूचितम् । अत्र मालीपमालडार । ब्रह्माण्ड़ती ब्रह्मण उत्पतौ प्रमाण यथा मनु - तदण्डममवङ्गम सइस्त्रशु समप्रभम् । तस्मिन् यश खश्य ब्रह्म। संव खोक्षपितामछ् ॥ ॥१३॥ विद्वखत इति । दिने दिने प्रत्यहम् उषस्त्र प्रमातकालैषु नव नवा नूतना नूतना शिष्यगण चन्दनपल्लवा चन्दनतरुकिसलयानि इव श्रवणं शास्त्रार्थाकण ने रमणौनां कण च लग्ना भासन्ना सन्त विसारि विशाल वाङ्मय श्रास्त्र विठ्ठरावत विवरणनाथ प्रकाशृथत अध्यापधत दूत्यथ यस्य चद्य पते थधिकां प्रिय झीमां प्रचक्रिरे । षāीपमाजङ्ाश् ॥१४॥ অ বরত শ্রবণ কবয় সকল শাস্ত্র যাহাঁদের মুখস্থ হইয়াছিল এই জাতীয় পঞ্জরস্থিত শুক ও সারিকাগণকর্তৃক পদে পদে পরাস্ত হই। ব্রাহ্মণবালকগণ আশঙ্কিত চিত্তে র্য হার গৃহ যজুৰ্ব্বেদ ও সামবেদ পাঠ কবিত ॥১২ ভুবনকোষ হইতে ব্ৰহ্মার স্থায় ক্ষীরোদসমুদ্র হইতে চন্ধেব স্থায় এবং বিনতার উদয় হইতে গরুড়ের স্থায় সেই কুবের হইতে ব্রাহ্মণশ্রেষ্ঠ অর্থপতি জন্মগ্রহণ করিয়াছিলেন ॥১৩ কর্ণস্থিত চনদনপল্লব রমণীগণের যেমন শোভা সম্পাদনা করে, তেমন প্রতিদিন প্রভাতকালে নুতন নূতন ছাত্রগণ শাস্ত্রার্থ শ্রবণে আসক্ত হইয়া বিস্তৃত স্থসমূহের অধ্যাপনায় ব্যাপৃত যে অর্থপত্তির বিশেষ শাভা সম্পাদন করিত ॥১৪ AMMMMgDDS AMMAiASAS SSAS ------ AAAAAA AAAA AAAASAAAAS SAAAAAA AMAMSAMA MAA ASASASA AAAMAAA AAAASAAAA ASA SSASAS SSAS (१) ग्रभत ।