পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৩৩৫

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३१४ कादब्बरो पूर्वभागे (स) दिग्गजमिवाविचिकृस्र महादान सन्तानम्, (ह) ब्रड्राणड़मिव सवाखर्जीवलोकव्यवहार कारणोत्पत्रहिरण्यगर्भ म्, (च) ईशानबाहुवनमिव महाभीगिमण्ड़खसहरुलाधिष्ठित (१) प्रकोष्ठम्, (क) महाभारतम्विानन्तगोताकणनानदितनरम्, (ख) यदुव शमिव कुलक्रमागत शूर भीमपुरुषोत्तमबल परिपालितम, (ग) व्यावा (स) सन्य यो ति । सन्य ख चंद्रीदयनिव स्वदव कीमला प्रजाभिरनाथासेन दत्ता ये करा राजग्राह्मधगानि तेषां सइल ण समूहेन संवद्धि ता रत्नानामालया धनागाराखि यस्य तत् । अन्यत्र तु स्वदुकरसहस्रण कोमलकिरण समूहेन सवद्धि ता रब्राखया समुद्रा येन तम् । (ङ) दिगिति । दिग्गजमिव अविचिछल्ली विच्छ्द विराममप्राप्तो महादानानां सातिशयधनवितरणानां सन्तान परम्परा यअिन्तत्। अन्यत्र तु अविच्छित्री महान् दानसन्तानी मदजलधारा यख तम्। (च) ब्रध्राण्ड़मिति । ब्रझाख ब्रझकीषमिव सकलजौवखोकाना व्यवहारी विवादादिनिण य एव कारण तखादुत्पन्नानि विवादनिण थकाले लोकद तानौत्यथ हिरणानि धनानि गभे यस्य तत् । अन्यत्र तु सकलजैौन लीकानां व्यवहार थाचार एव कारण तस्मादुत्पन्न लोकाचारनिण याय जात इत्यथ हिरण्यगर्भी ब्रष्टा यअिन् तत् । खीकानां सृष्टये तदाचारनिण याय च तस्य जातत्वादिति भाव । (क) ईशानेति । ईशानस्य शिवस्य वाइनां वन समूइमिव बाइनां पादपतुल्यायतत्वादनशब्दप्रयोग मझा भौगिमण्ड़खान महासूविजनसमूहान सहस्रण अधिष्ठिता प्रकाष्ठा ग्य्छेकदशा यस्य तत् । अन्यत्र तु मझाभौगि मण्ड़खानां मख्खौभूतमहासर्पाणां सहस्रण अधिष्ठिता प्रकोष्ठा मणिबन्धदैश्या यस्य तत् । (ख) महति । महाभारतमितिहासमिव अनन्तानामसख्यानां गौतानां गौतापाठानाम् भावण नेन श्रवणेन थानदिता गरा मनुष्था यत्र तत्। अन्यत्र तु अनन्तस्य कृष्णख या गौता क्करणीज्ञा गौतेत्यथ तस्या भाकण नेल बामन्दिती नरी जराख्यमुख्रश्र शावतारीऽजु नी यत्र तत् । (ग) यदिति । यदुव शमिव कुलक्रमेणागतानां मौलाना शूराणा वैौराणां भौमानां भयद्धराणाच्च पुरुषोत्त মণ্ডলের বৃত্তান্ত বর্ণিত আছে সেই রাজবাটীতেও তেমন সমস্ত জগতের ধনরাশি শ্রেণীবদ্ধ ভাবে স্থাপিত ছিল। (স) পূর্ণচন্দ্রেব উদয় যেমন কোমল কিরণসমূহে সমুদ্রগণকে বৰ্দ্ধিত করে সেই রাজবাটীতেও তেমন প্রজাগণকর্তৃক অনাগাসদত্ত কর (খাজন) সমূহে ধনাগার সকল বন্ধিত করিয়াছিল । (হ) দিগ হস্তীর বি ।াল মদজলধারা যেমন অবিচ্ছিন্নভাবে বহিত হইতে থাকে সেই বাজবাটী তও তেমন অত্যন্ত ধনবিতরণ অবিচ্ছিন্নভাবে হইতে থাকিস্ত । (ক্ষ) ব্ৰহ্মাগুমধ্যে যেমন প্রাণিগণের আচারনিরূপণের নিমিত্ত ব্ৰহ্মা উৎপন্ন হইয়াছিলেন, সেই রাজবাটীর মধ্যেও তেমন সকল লোকের বিবাদ মীমাংসা করিয়া দেওয়ায় বহুতর ধন উৎপন্ন হইয়াছিল । (ক) মহাদেবের বাহুসমূহের মণিবন্ধদেশ যেমন মণ্ডলীভূত বিশাল সৰ্পসমূহে অধিষ্ঠিত, সেই রাজবাটীর প্রকোষ্ঠসমূহও তেমন অত্যন্ত মুখিজনসমূহ DBB DDS SDS DDBBB BDDD BBB BBBB BB BBBS BBBB DDDS ছিলেন সেই রাজবাটা তও তেমন মৎস্যগণ অসংখ্য গীত শুনিয়া আননিত হইত। (গ) যদুব শ যেমন কুলের রীতি অনুসারে বীর ও ভয়ঙ্কর হইয়া উৎপন্ন শ্ৰীকৃষ্ণ ও বলরামকর্তৃক (१) चध्या सत ।