পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৩৯

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१८ कादश्बरी पूर्वभागें यस्य च परलीकाङ्गयम, अन्त पुरिकालकेधु भङ्ग, नृपुरेषु मुखरता, विवाहेषु करपीडनम, अनवरतमखाग्निध,मेनाशुपात , तुरगेषु (१) कशाभिघात , मकरध्वजे चापध्वनिरभूत (२) (य) । तस्य च रान्न कलिकाल-भयपुर्खीभूत-क्कतयुगानुकारिणी (३) त्रिभुवन प्रसवभूमिरिव विस्तीर्णा मष्जनालवविलासिनीकुचतटास्फालन जजरितीग्नि ۹- محع مبہم مباسہ ، ہس-ہیبہ۔ بس۔ (य) यस्त्र चेति । यस्य च शूद्रकख परलीकात् जनआन्तरात् भयम् न तु प्रव्रत तक्षादाअन प्रबलत्वात् । भभूदिति वक्ष्यमापक्रियया सव व्रान्वय । भना पुरिकाणाम् भन्तपुरबासिनीन स्त्रीणाम् थलकेतु चुष कुन्तलैषु भईो वक्रता न तु युद्धेपु भन्न पराजय दुईष स न्थशालिलात्। नृपुरैषु मुखरता शब्दायमानता न तु अनेष मुखरता वाचालता सर्व षामेव प्रियभाविखात्। विवाहेषु करपौख्न पाणिग्रहण ग तु जीकेसु करी राजग्राह्यद्रम्य तेन पौडन तदादानाय यातनाकरण लोकानां सम्पन्नत्वन यथासमय एव तत्प्रदानात राञ्चश्व अवस्थानुसारण ब्यवस्थापनात् । अनवरतेन अविरतेन मखाप्रिधमेन यशवधि मेन अन्नुपात नयन जखनि सरण न तु शोकादिना थकालमरणाद्यभावात् । तुरगेषु अत्रषु कशाभिघात न तुं चौरादिषु तदभावात् । मकरध्वजे मदने áपध्वनि खीकमनीमोइनाय धनुष्टडार न तु सैन्यजने प्रायेण युद्धा भावादिति भाव ! थत्रापि सप्त वाथ परिसख्यालद्धारा किच्च मकरध्वजे चापध्वनिरित्यत्र मकरध्वचापध्वनेरसम्बन्ध ऽपि तत्सम्बन्धीतरतिशयोतिरिथतेषा मिथी निरपेचतया ससृष्टि । (र) तग्र्यति । तस्य च राग शूद्रकस्य विदिशाभिधाना राजधान्यासौदिति सन्बन्ध । वुलीत्यादि प्रथमान्त विशिाया विीषणम् द्धतीयान्तत्रयञ्च वेत्रवत्या विश्लेषणम् । कलिकालभयेन कलियुगखषापभयेन प्रचीभूतम् षवयवसंीवेन खड्,चितमिव यत् झतयुग सत्ययुग तदचिंतु शौख यल्ला खा । ए ग महि।। पुण्यभूमित्व सूचिंतम् । विभुवनख विजगत प्रसवभूमिरिव उत्पभिखानमिव विस्तौर्णा विशाला। भञ्जन्तौन ছত্রেই সুবর্ণদণ্ড ছিল কন্তু কাহারও অর্থদণ্ড ছিল না পতাকা কম্পিত হইত কিন্তু লোকের মন কম্পিত হইত না , গানেই বসন্তপ্রভৃতি রাগ ব্যবহাব হইত কিন্তু কাহারও প্রতি কেহ রাগ (বিদ্বেধাচরণ) কবিত না , হস্তীতেই মদবিকবি ছিল, কিন্তু কাহারও চিত্তে মদবিকার ছিল না ধৰ্ম্মতেই গুণচ্ছেদ হইত কিন্তু লোকে ব দয়া দাক্ষিণ্যপ্রভৃতি গুণের লোপ হইত KS BBBBB BBBB BB BB BBB BBB SBBBBBBS BBSYSBBBB ও লৗহবৰ্ম্মেই কলঙ্ক ছিল কিন্তু কাহারও চরিত্রে কলঙ্ক ছিল না, দম্পতীর প্রণয়কলহেই দূত পাঠান হইত কিন্তু যুদ্ধের জন্ত দূত পাঠান হইত না , আর দাবা পাশা প্রভৃতির কোঠেই শূন্ত্ৰগ্ৰহ থাকিত কিন্তু গ্রামে শূন্তৰ্গত থাকিত না । (ঘ) যে রাজার রাজ্য কেবল পরলোক হইতেই ভয়, অস্ত পুরবাসিনী রমণীগণের কেশকলাপেই বক্রতা, নুপুরেই মুখরত, বিবাহেই করণীড়ন, অবিরত যজ্ঞান্নিধুমধারাই অশ্রুপাত অশ্বেতেষ্ট কশাঘাত এৰ কামদেবেরই কাম্মু কধানি হইত। (१) तुरङ्ग बु । (२) उदभूत्। (३) अनुसारियौ ।