পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৪১

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३० कादम्बरी पूव भागे चित-नीतिशास्न-निषॆलमनोभिरलुब्ध खिग्ध प्रबुध चामात्याः परिष्वत् ,समाजवयो “विद्यालद्वारैरनेकमूर्खाभिषिज्ञ-पाथिवकुखोद्गर्तरखिल-कलाकलापाखेोचन कठोरमतिभिरतिप्रगखो कालविङ्गि प्रेमालुरज्ञह्रदयैरग्राभ्यपरिहासकुशलौरिङ्गिताकारवेदिभि काव्य-नाटकाख्यानकाख्यायिकालुख्यव्याख्यानादिक्रियानिपुणैरतिकठिन-पौवर खान्धीरु-बाडुभिरसछदवदरुि त-समद-रिपु-गजघटा पैोठबन्धे केशरि किशोरको रिव, विक्रमैकरसैरपि विनयव्यवहारिभिरावान प्रतिविम्बेरिव राजपुत्रै सङ्घ रममाण प्रथमे वयसि सुखमतिचिरसुवास (ख) । तस्य चातिविजिगीषुतया महासत्त्वतया च ढणमिव लघुष्ठति खणमाकलयत - v~w~*^* SAMeMAeAMMMeMM MAMMAAA AAAA AAAA MAAAA میمہ- ۶ مينه SAASA SAAAAS A SA SSASAS SSAS ۶یبی یخ را ۶۰یسی مبیا चतिमपि कुथ्यु,रिति भाव । खिग्धैरनुरक्त प्रबुज जागरित काय्य षु सतकें । अनेकेषां मृईभि षितानां ब्राझषॆभ्य च वयासु जाता मूषॆाभिषिक्ाक्ष षाम् पाधि वा t राशाश्च झशेभ्य ठगिता उत्पन्नास चखिलानां सर्वासां कलानां शृत्यगैौतादिकलाविद्मानां कलापस्य समूहस्य भाखीचनेन चतुशैलनेन कठोरा परिणता मतयो बुड्र्यो येष त अतिप्रमखु नितान्तचतुर्र कालविङ्गि अबसरङ्ग । अयाम्य घु अनीशैषु परिहासेषु कुशलनि पुर्थ । इन्नित चित्तगतभाव चाकार ध नेत्रादिसद्धीचादिरूपी भद्रौविशेष तौ विदनौति तँ । काब्य पद्यमयमरावाक्य रसातप्रक ཟ་ཧས། ཟ། རྐ་ཚས། ས་ཡ་ས་ཁི་མི་༥ স্বাঙ্কালঙ্কালি খৰ ৰাখি चाख्यामूिका गद्यकाव्यविशेष थालेख चित्रनिर्वषम् व्याखगम् चथ विशदीकरण तदाद्य य_क्रियाशास निपुषद च । थतिकठिना नितान्तदृढा पौवरा खलाश्व खन्धीरुबाच्बी थेषां त । असकृत्थवदखित, विमहि ता समदानां नतागा रिपुगजधटानां विपचरतिसमूहानां पीठवश्वा पृष्ठखितासनानि यस्त । केशरि किशोरी सि इशिशुभिरिव विक्रमे महासामध्य एकी मुख्य रस थासप्तिाय षां तस्तथाविधैरपि । भामिन खख प्रतिविग्वरिव एतेनातिसाह्रए। सूचितम् । चम वखयमिक्लुपमा थमरगुरुनपि प्रश्नवीपइसििरत्यनेनाप्यार्थीपमा आविष्यते केशरिकिीरक रिव इलुपमा प्रतिबिम्बैरिबैलुपमा च इत्यो तेर्षा परअरनिरपेचतया सच्चडि । (व) तख ति । अतिविजिगौपुतथा बौरख परजीत्कष जामेच्छया महासभ्यतया नितान्ताध्यबसायश्राजितया বিদিশা রাজধানীতে বহুকাল যাবৎ সুখে বাস করিয়াছিলেন। সেই সময়ে অষ্টান্য দ্বীপ হইতে আগত অনেক রাজা মস্তকদ্বারা অাদরে তাহার চরণ স্পর্শ করিতেন , বুদ্ধিবলে বৃহস্পতি তুল্য, অনবরত নীতিশাস্ত্ৰপৰ্যালোচনায় নিৰ্ম্মলচেত, লোভশূন্ত, অনুরক্ত ও সকল কার্ঘ্যে সঙৰ্ক—এ রূপ কুলক্রমাগত মন্ত্রিগণ র্তাহাকে বেষ্টন করিয়া থাকিতেন। আর মুৰ্দ্ধাভি ৰিক্ত ও রাজবংশে উৎপন্ন, সমস্ত কলাবিষ্কার আলোচনায় পরিপক্বুদ্ধি, মুচতুর, অবসররজ্ঞ, প্রণয়ামুরক্ত, অশ্লীলতাশূন্তপরিহাসে নিপুণ, অভিপ্রায় ও অঙ্গভঙ্গিবিশেষজ্ঞ, কাব্য, নাটক, BBBBBS BB LLSBBS BBBB B BBBBB BB BBBS BBB BB DD DDS DD ও বাস্থশালী, বহু যুদ্ধে বিপক্ষদিগের মত্তহস্তিবিজয়ী, সিংহশাবকের স্থায় মহাপরাক্রমশালী অথচ বিনয়ব্যবহার এবং সমবয়স্ক সমান বিদ্বান ও সমান ভূষণে ভূষিত, আপনার প্রতিবিম্বতুল্য রাজপুত্ৰগণের সহিত মহারাজ শূদ্রক, প্রথম বয়সে আমোদপ্রমোদ করিতেন।