পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৪৪৯

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8५२ कादडबरी पूवभागे रुदयतटगतादव-(१) विम्वादुड़,त्य बालरश्मिप्रभाभिरिव निमिताभिरुचिाषत्तडित्तरल (२) तेजस्तास्वाभिरचिरस्रानावरिह्यत विरल-वारि कणतया प्रणामलग्न-पशुपति चरण भस्म चूर्णाभिरिव जटाभिरुङ्गासितशिरोभागाम्, (फ) जटापाशग्रथितमुत्तमाङ्ग`न मणिमय नामtङ्ामीश्वर ।। रष्,इयमुद्द इन्तीम, (ब) रवि रथतुरग खुर सुख जुख-(३) नचत्र चोद विशदेन भस्मनाखड्डत (४) ललाटपट्टिकाम्, शिखर शिलाम्लिष्ट प्राणाङ्ककम्नामिव शैलराजमेखलाम, (भ) अतुलभतिाप्रसाधितया खचह्योछातलिङ्गया द्वितीययेव (५) पुगुड़रीकमालया दृष्टया सन्भावयन्ती भूत .* يسي-l.ണാം് .r-.جیسجمعیت جب (फ) खान्धीति । उदयतटगतादुदयाचलप्रदै एयिता, अकविश्थात् सूर्यमण्डलात् उड त्य बालर श्मप्रभा एव उत्तीख्ध ताभिर्षाखर श्मप्रभाभिन तनकिरणदौप्तिभि करण विधात्रा निर्मिताभिरिव ख्यिताभि चन्द्मिषन्तौ प्रकाश माना या तड़ित् विद्युत् तखा यनरल तेजस्तषभावाभिखाधवर्षामि तथा भचिरखानेन थवाखता विरला थख्याख्या वारिकणा यासु तासां भावस्तया हैतुगा प्रणामं नमखारसमये लग्नानि पशृपते शिवस्य चरणभद्मचर्णनि यासु ताभि रिव ह्यिताभिज्ञ टामि उक्लासित गिीमित शिरोभागेो यस्याग्ताम् । भव उन्येत्यादौ झिर्योत्चा उनिषदित्यादौ लुझेपमा प्रणामेत्यादी च क्रिथीत्ीचा इत्थासामङ्गाक्किमावेन सद्भर । (ब) जटेति । उ तमाङ्गन मसाकेन जटापाग्रयथित मणिमय मणिनि।चत नास्न शिवनास्न अद्धयिक यत्र ताइशम् ईश्वरख शिवस्य चरणइय पदहयप्रतिमाम् उइहन्तौं म प्त भरण धारयन्तैम् । (भ) रवैौति । रविरथस्य तुरगाणामश्वाना खु,रमुग्ढ खुरागभाग द्मणाना विदारतानां नचवाणां चीनव च खं वत् विशदेन शुधण भद्मना अवाक्कततिलकैन भलङ्कत ललाटपट्टी भानफलक यरयास्ताम् यतएव शिखरशिख-ा DDDDDDD DDD D DDD DD DDD DD DDDDDD DDD BBBBD DDDDDD DDD DDD DB भागनिव यिताम् । अत्र पदाथ छैतुक काब्यलिङ्ग तथा चन्द्रकलया सह भखातिलकरय शुभ्र'शलया सद्द ललाट पड्डस्य मेखखया च सइ कन्याया साम्यमिति द्रब्थीत्ीचा चानयोरङ्गाड़ि मावन सङ्घर । (म) अतुलंति । अतुलया निरुपमया भतया प्रसाधिता प्रसन्नताजनजैनालङ्कता तया लक्ष्र्यौल्लत विषयौछात দিয়াছিলেন , (প) আবে তাহকে যেন শুভ্রবর্ণেব চঃমসীমা বলিয়া বে ধ হইতেছিল (ফ) BBBDD BBB BBB BBBB BB BB B BBSBBBBB BBS BBBBBB BBDD তাহার মস্তক পবিশোভিত ছিল বিধাতা উদয়াচলগত স্বৰ্য্যমণ্ডল হইতে নূতন কিবণ বাহিব করিয়া তাহার দীপ্তিদ্বারাই যেন সেই জটগুলিকে নিৰ্ম্মাণ কবিয়ছিলেন এব অনতিপূৰ্ব্বে স্নান করায় তখনও জটগুলির উপরে অল্প অল্প জলবিন্দু ছিল , সুতরা প্রতীত হইতেছিল যেন সে প্রণাম কবিবার সময়ে f বের চরণের ভস্মবেণুগুলি জটার উপরে লগিয়া রহিয়াছে (ব) এব সে মস্তকে শিবনামাঙ্কিত মণিময় দু খানি fালের চবণ, জটাতে বন্ধন করিয়া ধাৰণ করিতেছিল (ভ) স্থয্যের বথে নিযুক্ত ঘোটকগণেব খু গ্রের আঘাতে চুর্ণীকৃত নক্ষত্রচুর্ণের ন্তাষ শুভ্রবর্ণ ভষ্মের তিলকে তাহার ললাটদেশ অলঙ্কত ছিল, সুতরাং শৃঙ্গের প্রস্তরের উপবে চন্দ্রকলা স লগ্ন হইলে হিমালয়ের মেখলার স্তায় তাহাকে দেখা যাইতেছিল (१) गताक । (२) तड़ितन्तुतरल । (३ तुरङ्गख राष । (४) झत । (५) थपरयेव ।