পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৪৫৩

উইকিসংকলন থেকে
এই পাতাটির মুদ্রণ সংশোধন করা প্রয়োজন।

४५६ क्षादम्बरो पूर्वाभारी रोयक-पूरिताङ्ग,लिना (१) त्रिपुण्ड्रकावशिष्ट-भस्त्र पाण्डुरेण (२) प्रकोष्ट बच्च शड़ खण्डकेन नख मयूख-दन्तुरतया ग्टहोतदन्तकोणेनेव दन्तमयी दचिणकरेण वैोग्गामास्फ्रालयन्तोम , प्रत्यचामिव गन्धर्वविद्माम, (क) मणिमण्ड़पिकास्तभा लग्नाभिरामानुरुपाभि सहचरोभिरिव सर्वोणाभिर्विलासवर्तीभि (२) प्रतिमाभि रुपैताम , (ख) स्रपनाद्र निङ्ग सक्रान्त प्रतिविब्बतया अतिप्रबलभज्ञयाराधितख्य हृदयमिव प्रविष्टा हरस्य, (ग) ह्रारलतयेव (४) प्राप्तकण्ठयोगया ग्रहपडतधव भ्र वप्रतिबदया क्र,दयेव रता (५) सुखवण या मत्तयेव घणित-मन्द (६) तारया


SSAAAASA SSASAS SS SAAAA سمهw------------------.... त्रिपुण्ड़ का तदाख्यतिखककरणादवशिष्ट न भषाना पाण्डुरेण शृधण तथा प्रकोष्ठ मणिबन्धदेशे बङ्गी धत शङ्गखण्ड़ प्राङ्कवलय यस्य तेन नखानां मय ख द न्तुरतया तुङ्गतया द्रौध तया हेतुना ग्टहौती दन्तकोणी गजदन्तनिर्मितवौणा वादनसाधन येन तादृशनेव प्रतौयमानेन दचिणकरण उत्सङ्गगता क्रीडखिताम् दन्तम*ी गजदन्तभूषणप्रचुरां वैौणां खसुतां निजकन्यामिय भास्फालयन्तौ वाटयन्तीं सवात्सन्धसुन्चप्योचिम्यलाल न्तौञ्च अतएव प्रत्यचां गन्धव विद्याँ गानशास्त्रविद्यामिव विद्यमानाम् । भत्र पूर्णोपमागडार तथा दन्तकोणग्रहणीत्मचणात् क्रियात्मघा पदाथ हैतुक काब्यलिङ्गम् प्रत्यर्चा गन्धव विद्यामिवति गुपीत्प्रैचा चैत्य तासामन्त्राङ्गिमावेन सद्भर । शङमयाङ्गुरीयकवलयाभ्या श्वावधब्य व्यज्यत इति वस्तुना वस्तु व न । कीर्णी वैौणादिवादन मित्यमर । (ग्व) मर्णौति । विलासवर्तौभवि भ्रमीभाशाजिनैौमि । सइचरौभिरिव ह्यिताभि प्रतिमामिरात्मप्रति विग्र्बरुपेताम् । अत्र यौतीपमालद्धार । (ग) खपनेति। खपनेन भाद्र झन्ने लिङ्ग शिवमूतों सक्रान्त प्रतिविम्ब यस्यास्तस्या भावख्तया छैतुना अतिप्रबल भक्धा आराषितस्य घ्रख इदय प्रविटामिक् स्थिताम्। अत्र क्रिथीत्प्रे चालडार । (घ) हारैत । हारलतयव प्राप्तकण्ठयोगथा लब्धगलसम्वन्धया इदमुभयत्रापि समानम् । ग्रहाणां रव्यादौनां पड नया श्रखव ध्रुवण गानाङ्गविशषण प्रतिवद्धया नियमितया भन्यत्र तु ध्रुवाभ्यां तदाख्यनचत्राभ्यां प्रतिबइया सम्रतया । गानाद्ब्रभ्र.वजचणमुत स्रङ्गौतदामोदर- उत्तम षट पदं प्रोती मध्यम पञ्चमं श्रृत । कनिष्ठष বাজাতেছি । তাহাৰ সেই দক্ষিণ স্তের অঙ্গুলিগু ল ক্ষুদ্র ক্ষুদ্র শঙ্খখণ্ডের অঙ্গুরীদ্বাৰা পরিপূর্ণ ছিল ত্রিপুণ্ড ধারণ করায় অবষ্টি ভক্ষে সেই দক্ষিণহস্ত শুভ্রবর্ণ হইয়াছিল তাহার মণিবদ্ধ দেশ শঙ্খ বলয়ে পরিবেষ্টিত ছিল এব নখের f রণে সেই দক্ষিণহস্ত লম্বা বলিয়া বোধ হওয়া হস্তিদন্তের ছড়ি ধারণ কবিয়াছে বলিয়া বোধ হইতেছিল ইহাতে তাহকে সাক্ষাগন্ধৰ্কবিদ্যার স্থায় দেখা যাইতেছিল। (খ) মওপেক মণিময় স্তস্তগুলিতে লীলাবিলাসসংযুক্ত, বীণাব সহিত তাহার দেহের অল্পরূপ প্রতিবিম্ব পড়িয়াছিল সেগুলিকে তাহার সহচরীদিগের স্থায় দেখা যাই তছিল (গ) স্নান করাইয়াছিল বলিয়া আর্দ্র বিমূৰ্ত্তিতে তাঙ্গর প্রতিবিম্ব পড়িয়াছিল , সুতরা বোধ হইতেছিল যেন বিশেষ ভক্তিসহকারে আরাধন করায় সে, SBBB BB BBBB BBBS S BBB BBB BBB BB BBBBS B DDBBBB স্তব করিতেছিল সেই গানটা মুক্তময় হারেব ক্ষায় তাহার কণ্ঠস গ্র ছিল গ্রহচক্র যেমন (R) বুঝবষ্ণৱত্ৰিাৱৰীযন্ধানিৱৰিলা। (२) पाण्डुणि । (३) सवैौणाभि प्रतिमाभि । (४) इारलेखयेव । (५) रागरता । (६) मन्द्र ।