পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৪৬০

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कथायां महाश्वतात प्रातिथ्यखीकार । ४६३ मखिलमात्मोदन्तम. (१) अभ्यध्यैमाना कथयिष्यतीति (स) । एवञ्च झतमति पद्शतमात्रमिव गत्वा, निरन्तरं दि वापि रजनीसमयमिव दर्शयहिस्तमालतरुभिरन्धकारितपुरोभागाम , (ड) उतर्पुल्लकुसुमेषु लतानिकुन्जधु कूजता मन्द मन्द मद मत्त-(२) मधुनिहा विरुतिभिमुखरीकृतपर्यन्ताम (च) अतिदूरपातिनाञ्च धवल शिलातल प्रतिघातोत्पतनफेनिलानामपा प्रस्रवणरुत्कोटि-ग्राव विटङ्घ विपाट्य यथा इयम् दाचिएयस्य श्रौदार्थस्य भतिशयोऽतिरेको यस्यां सा तादृशौ प्रतिप त खागतमथितवे इत्यादिव्यवहार अभिजाता उत्पन्ना विभाव्यते खच्यते । अभ्यथ्य माना मया वतमनुरुध्यमाना सतौ नियत निश्वितम् । भात्मीदन्त खकैौथष्ठतान्तम् । इति सम्भावयानौत्यन्वय । (ं) एवमिति । क्षिश्व एव छ्तमति ब्रूत्थ क्ललिश्यश्चन्द्र!पैौड् प श्तमात्रमिव गत्वा गुच्हामिद्रचौदिति वक्ष्यमाणक्रिययान्वय । भत्र त्रिया दितीय कवचनान्तपदानि गुहामिति वक्ष्यमाणस्य विश्षणागि । निरन्तरध नै अतएव दिवापि रञ्जनौसमय दशृयन्जिरिव रिह्यत तमालतरुभि करण अन्धकारित सञ्चातान्धकार पुरोभाग सन्झुखदैशी यखास्ताम्। अव क्रियीत्प्रेचालडार । (च) उत्फुल्नेति । उत्फुल्लानि विकसितानि कुसुमानि येषु तेषु । मदमत्ता बैं मधुलिइो श्वमराखषा विरुतिभिझ ड्रारें मुखरौक्कत गदित पर्यन्त प्रान्तभागी यसप्लाखाम् । (क) भतौति । किञ्च अतिदूरात् पतितु शैल यासा तासाम् धवलैषु शिलातलेषु प्रतिघा९न यदुत्पतन भूह गमन तेन फेनिखानां फनवतौनाम् अपां जलानाम् उत्कीटय उन्नताग्रा ये ग्रावाण पाषाणास्तषा विटरू रुपरि भाग विपाठ्यमानानि विच्छिद्यमानानि त उच्चरन्ती धातप्रतिघातरुत्पद्यमाना ध्वनय शव्दा यषु त तथा भव शौर्यमाणा पाषाणषु पतनात् जज रीभवत तुषारवत् शिशिरा हिमवत् गौतला यौकरासारा जलविन्दुधारा येष त प्रखवर्ण पाव त्यनिझ र अवध्यमाना उत्पादामाना नौहारा हिमवज्जलविन्दवाँ यसप्रां ताम् । अत्र खभावीति रजङ्ारं तुषारशिश्रिशब्दधी पर्यायतया धापातत पुनड्तताप्रतौतॆ परञ्च तुषारवत् शिशिरा इति भद्ावगमात् पुन আমাকে দেখিয়া অন্তহিত হইল না , সুতবা এখন আমার চিত্তে কৌতুকব ত সেই প্রশ্ন কবিবার আ tা প্রতিষ্ঠা লাভ করিল। ইহার এই দিব্যরূপ তপস্বীদিগের ও দুল্লভ , তথাপি আমার প্রতি ইতাব যখন এইরূপ অত্যন্ত ঔদার্য্য সম্পন্ন ব্যবহাব জন্মিস্থাuছ—দেখিতেছি তখন আমি ইহা স্থিব করিতে পাবি যে আমি ইহাকে বলিবার জন্ত অচুবোধ করিলে এ নিশ্চয়ই আপনার সমস্ত বৃত্তাস্ত বলিবে। (ই) চন্দ্রাপড মনে মনে এ রূপ কৃতনিশ্চয় হইয়া এক শত-পদমাত্র গমন করিয়া একটা গুহা দেখিতে পাইলেন তাহাব সম্মুখভাগ কতকগুলি তমালবৃক্ষে অন্ধকাব কবিয়া বাথিয়াছিল, সেই তমলবৃক্ষগুলি অত্যন্ত ঘন ছিল বলিয়া দিনেব বেলায়ও যেন বাত্রিকাল বলিয়া ভ্রম জন্মাইতেছিল, (ক্ষ) লতাকুঞ্জেব ভিতরে নানাবিধ ফুল ফুটিয়াছিল তাহা ত মন্দ মন্দ রবকাৰী মদমত্ত ভ্রমরগণেব ঝঙ্কারে সেই গুহাটার প্রান্তভাগ মুখরিত হইছিল। (ক) পাৰ্বত্যনিবা রেব জল অতিদূর ইতে ধবল শিলাখণ্ডের উপরে পড়িতেছিল সুতরাং সেই লিখিণ্ডের প্রতিঘা৩ে সেই জলের ক ক অংশ পুনরায় উৎক্ষিপ্ত হইতেছিল এই ঘাত-প্রতিঘাতে সেই জলে বহুতব ফেন জন্মিতেছিল (१) इयमांतीदन्तम् । (९) गुच्चतां मन्द मधुमत्त ।