পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৪৬৯

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8 ৩২ कादब्बरो पूर्वभागे पादितम् अन्यतु दचस्य प्रजापतेरतिप्रभूतानां सुताना (१) मध्ये द सुते (२) सुनिररिष्टा च बम्मूवतुस्ताभ्या गन्धर्व सद्द कुखइय जातम् । एवमेतान्र्थकत्र चतुद्दश कुलानि (ग) । गन्धर्वाणान्तु दच्तात्मजाद्दितयसण्भव तदेव कुखद्दय जातम, तत्र (३) मुनेस्तनयखित्रसेनादीना (४) पञ्चदशाना भ्नातॄणामधिक्षी गुण षोडशश्वित्ररथी नाम समुत्पन्न (घ) । स किल त्रिभुवन (५) प्रख्यातपराक्रमी भगवता समस्तसुर मौलि माला लालित चरण नलिनेनाखण्ड़लेन सुहृच्छुब्दनीपछ हितप्रभाव सर्वषा गन्धर्वाणामाधिपत्यमसिलता मरीचि-निचय मेचकितैन बाडुना ससुपाजित शेशव एवाप्तवान (ड) । इतच्च नातिदूरे तस्यास्माद्भारतवर्षा मकरकेतुना मदनेन । अतिप्रभूतानामतियहुलानाम् । गन्धवै सइ सङ्गमात् ताभ्य मुन्थरिष्टाभ्याँ सकाशात् कुख वयम् । सुनेरैकम् भरिष्टायार्थक कुल जातनित्यथ । एकत्र करणे सड्लन इत्यथ । (घ) गन्धर्वाणामिति । दवामजाश्तियात् मुन्यरिष्टाख्यात् दचकन्याहयात् सन्भव समुत्पन्न तदैव कुलदय गन्धर्वाणामपि जातम् सन्तानख मातापित्रुभयनिमित्तकलादिति भाव । भत्र कुलदयमध्वं । गुर्णरधिक शौथ्यादिभिगैरौघान । चित्ररथी नाम तनय मुनेस्तदाख्याया दचकन्याय समुत्पन्न । (ङ) स इति । किलेति पुरागावार्तायाम् ॥ ५ ग्रव एव विभुवनप्रख्यातपराक्रम समस्तानां सुराणां मौखि मालया मुकुटथएा लाजित नमखारकाले सादर रुप्र ट चरणनखिन पादपद्म यस्य तेन भगवता भाखण्डलेग इन्द्रण सुद्रच्छब्द न सखिशब्दप्रयोगेण उपक्व हित परिवडि त प्रभाव प्रतापी यस्य स स चित्ररथ भसिखताया मरीचिनिचयैन किरणसमूहैन मंचकित स्वामलौक्कतर्सोन तथीतन बाहुना समुपाजि तम् सर्व ष गन्धर्वाणामाधि प्रत्यम् आप्तवान् लब्धवान् । সুয্যের কিরণ হইতে নির্গত হইয়াছিল অন্য একট চন্দ্রের বশ্মি হইতে নি স্থত হইয়াছিল আর একটী পৃথিবী হইতে উৎপন্ন হইয়াছিল অপর একটী বিদ্যুৎ হইতে জন্মিয়াছিল যম অপর একটা স্বষ্টি করিয়াছিলেন কামদেব আব একটী উৎপাদন কবিয়াছিলেন এব দক্ষ প্রজাপতির বহুতর কন্যা জন্মিয়ছিল তাঁহাদেব মধ্যে মুনি ও অরিষ্টনামে দুইটী কন্যা ছিল, গন্ধৰ্ব্বদের সহিত সম্মিলনে সেই মুনি ও আবিষ্ট হইতে আর দুইটী ব শ জন্মে , এইভাবে এইগুলিকে একত্র করিলে চৌদ্দটা বংশ হয়। (ঘ) মুনি ও অরিষ্টানামে দক্ষের কন্যা দুইটী হইতে যে বংশ দুইট জন্মে তাহাই কিন্তু সেই গন্ধৰ্ব্বদিগেরও ব শ , সেই বশদ্বযের চিত্রসেন প্র .তি অপর পঞ্চদশ ভ্রাতাব মধ্যে সৰ্ব্বগু ৭ শ্রেষ্ঠ ষোড়শ চিত্ররথনামে মুনির একটা পুত্র জন্মগ্রহণ করে। (ঙ) বাল্যকালেই সেই চিত্ররথের পরাক্রম ত্রিভুবনে বিখ্যাত হইয়াছিল এই সমস্ত দেবগণ কিরীটসমূদ্বারা যাহার চরণকমল সাদরে স্পর্শ করেন সেই ভগবান্‌ দেবরাজ ইন্দ্র, সখী বলিয়া সম্বোধন করিয়া সেই চিত্ররথের প্রভাব পরিবর্দ্ধিত করিয়াছিলেন , এ হেন চিত্ররথ, তরবারির কিরণসমূহ খামবর্ণ স্বকীয় বাহুদ্বারা অর্জন করিয়া, সকল গন্ধৰ্ব্বদিগের আধিপত্য লাভ করেন। (চ) এস্থান হইতে অনতিদূরে, এই ভারত (१) कन्यकानां । (२) हौ सुतौ । (३) अत्र । (४) सैनादौगाँ । (५) सकलत्रिभुवन ।