পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৪৭৬

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कैथायाँ महाश्वं तास्रानविचरणद्वत्तान्त । 8లీలీ मयूर-कुख-कलकल (१) भौत भुजङ्ग सुज्ञातला शिशिरेय चन्दनर्वीथिका, (२) (ख) विकच-कुसुम-पुञ्ज-पात सूचित वनदेवता प्रह्वीलन शोभनेय लतादीला, (ग) बहल कुसुमरज पटल मग्न-कलह स पद रेखमतिरमणीयमिद तौरतरुतलम्, (घ) दृषि स्निग्ध मनोहरतरोद्देश दशन लोभाक्षिप्तह्रदया सङ्घ सर्खोजनेन व्यचरम् (ड)। एकसिा ख (३) प्रदेशे भटिति वनानिलेनोपनीतम, निभ'रविकसितेऽपि कानने अभिभूतान्धकुसुमपरिमलम, विसप न्तम, अतिसुरभितया अनुलिम्प्रन्तमिव पूरयन्तमिव तप यन्तमिव घ्राणेन्द्रियम, प्रच्हमहमिकया मधुकरकुर्ख'रनुवध्यमानम् अनाघ्रातपूर्वम, भ्रमानुषलीकोचितम्, कुसुमगन्धमभ्यजिघ्नम् (च)। कुतोऽयमित्युपा (ख) उन्प्रर्दति । उन्प्रदस्य मदमतस्य भध रकुलस्य कलकलेन कीलाइलेन भौत भुजङ्ग सपॅ मुक्त परियता तलम् अर्धोदैो वस्या सा शिशिरा अिौतखा द्वय चन्दनवैथिका चन्दनतरुख़ णि । (ग) विकचेति । विकचस्य प्रस्फुटितस्य कुसुमपुञ्चख पातेन पतनेन सूचितम् भनुमापित यत् वनदेवताया प्रङ्गीलन दीखन तेन शोभना इय खतादीला खतात्मकदीखनधनत्रम् । (घ) बइलेति । बइले प्रचुरे पुच्चौभूत इत्यथ कुसुमरज पटले पुष्पपरागसमूई मग्रा कलइ सानां पदरेखा श्वरणचिक्रानि यत्र तत् अतएवातिरमणेयम् । (ङ) ब्रतौति । इति इत्य खिग्धान नवपल्लवादिभिधिक्कशानाम् अतएव मनीइरतराणाम् उद्देशान प्रदैशान दणनलोमेन थाक्षिप्तमाक्कष्ट हृदय यस्या सा तथोशा अहम् । (च) एकभित्रिति । किञ्च वनानिलेन वन्यवायुना उपनौतमाष्टतम् । निभरमतिमात्र यथा तथा विक सितेऽपि कानने काननकुसुमे अभिभूतातिरस्क्लता भन्यषां कुसुमानां परिमला सौरभाणि येन तम् । विसप न्त श्वव त प्रस्रन्तम् । षतिसुरैभितया नितान्तसौरभवत्तया । घ्राणन्द्रिय नासिकाम् ।। षड्मिचमिक्षया षड्मिया। षड्मिय इत्यभिमानेन मध्वक्षरकुखं च मरगण धनुस्रियमाणम् । अत्र तेिश्च णामेव तििथीनि चाणf मिथो लेिरपेचवतया ससृष्टि । میر سید مص» مهم صح সৰ্পগণ উন্মত্ত মযুরগণের কোলাহলে ভীত হইয়া ইহাব তল পবিত্যাগ করিয়া গিয়াছে, (গ) এই একটা লতাময় দোলা , ইছা হইতে প্রস্ফুটিত কুমুমর।f নিপতিত হইতেছে বলিয়া বুঝা যাইতেছে যে কোন বনদেবতার দোলনে ইহাকে সুন্দর দেখা যাইতেছে (ঘ) তীরবর্তী বৃক্ষসমূহের এই তলদেশটা অতিমনোহব, এখানে প্রচুব কুমুমবেণুধাশির উপরে কলহস দিগের পদচিহ্ন দেখা যাইতেছে , (ঙ) এইরূপ স্নিগ্ধ ও অত্যন্ত মনোহর স্থানসমূহ দৰ্শন করিবার অভিলাষে আকৃষ্টচিত্ত হইয়া আমি সর্থীগণের সহিত বিচবণ কবিতে লাগিলাম । (চ) তাহার পর কোন একটা স্থানে একপ্রকার কুমুমের গন্ধ আগ্ৰাণ করিলাম, ক্রত গামী বন্ত বায়ু সেই কুহুমের গন্ধ আনয়ন করিয়াছিল বনের সমস্ত কুহুম অত্যন্ত প্রস্ফুটিত হইয়া থাকিলেও সেই গন্ধ অন্য সকল কুসুমের গন্ধকে পরাস্ত কবিয়াছিল এবং সকল দিকে ছড়াইয়া পড়িতেছিল আব অত্যন্ত সুগন্ধি বলিয়া, আমার ঘ্ৰাণেন্দ্রিয়কে যেন লিপ্ত করিতে (१) नय रकलकल सकखमयुरकलकल । (२) चन्दनवनवौथिका । (३) अर्थे कशि य।