পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৪৯

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२८ काढ्यश्री पूव भागे निगड-शहासुपजनयतन्द्रनील-केयुरयुगलेन मलयज-रस गन्धलुब्धन भुजङ्गइयेनेव वेष्टितबाहुयुगखम्, (१) (द) ईषदालबि (२) कर्पोत्यखम्, उन्नतघेोणम, उत् फुज्ञपुण्डरीक-खीचनम् (३) कमलकखर्धौत-पट्टायतम्, (४) अष्टमौचन्द्र शकलावारम्, अगेष-भुवन-राज्याभिषेक-सलिलपूतम्, ( ) उर्णासनाथ ललाटदेशसुद्दडन्तम् (ण) आमोदित मालतीकुसुम शेखरन् जषसि शिखर-पर्यस्त तारकापुञ्चमिव पश्चिमाचखम्, (त) आभरण-प्रभा-पिशङ्गिताङ्गतया (६) लग्न-हर-हुतायमिव मकरध्वजम्, (थ) आसववत्ति नोभि सेवाथमागताभिरिव (s) दिग्वध्रुभि

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खड़ार उत्प्रेचा चानयीरङ्गाङ्गिभावेन सद्धर तेन च सुखस्य चन्द्रतुल्यत्व झारखतायाथ ख खीज्यपाल सूचितनित्यलङ्कारीण बस्तुध्वनि । (ढ) थतौति । भतिचपलाया नितानचचखाया राअलशया बन्धनाय बन्धनेन ख्रिरौकरणाय थी निगक एडख तख अडां धमम् उपजनयता कुव ता इन्द्रनीलकेय,रयुगलेन नैौखकान्तमणिखचितान्नदषयॆन मषयशरसख चन्दनद्रवख गन्धन सौरभेख लुक्धी खैोभाक्कष्टखन भुजङ्गहीन सप युगलेनेव खितेन बैंटित बाइयुगल भुजदथ बख तम्। चत्र धातिमदुत्ग्रेचयीरत्नार्मिावेन सडर । (च) ईषदिति । पुँषदालचिनौ किचिल्लण्यमाने कर्षीत्पले पद्माकारकर्णालढारौ यस्त्र तम्। उन्नता घीचा नासिका यस्य तम् । चोया नासा च नासिका इत्यमर । उत्फुल्लपुण्डरीकवत् विकसितश्च तपद्मवत् खीचने चद्यशै यस्त्र तन्। चत्र लुप्तीपमालडार । अमलकलचौतपावत् निर्षलखुण फलकवत् भायत विख तम् अष्टनौ चन्द्रस्त्र अष्टमौतिषाइदितचन्द्रख यत् प्रकल खण्ड तख थाकार द्रव आकारी यस्त्र तम् अजयीरपि शुझीपमा खडारौ । थग्रेषभुवनराज्य समशभूमण्डलराजत्व वी:भिषेकी मन्त्रलखान तेन पूत पबित्रम्। तथा ऊर्था धूयुगखमध्यवर्ती खीमावन तया सनाथ सहितम् । ऊर्ण ध मध्यगावत मेषादीनाच जीननि इति हेमचन्द्र । थम सामुद्रकम्- ध्रुहयमध्यै क्यालतन्तुसूझ ग्रश्वायतमेक प्रशस्तावन्त महापुरुषलचयन्। (क) थामीदितेति । धामोदितानि सञ्चातानीदानि सुरभीणि यानि माखतीकुसुमानि त शेखर शिरी भूषषु यख तम् चतएव ऊषस्थिरुषोदयकाले बिखरै यह पर्यत पतिला समवेत तरकापुन्न गचवराबियख त पबिभाषखन् चखपव तमिव खितम् । चबीपमाखडार i -അക്ഷ് ভ্ৰমে উপস্থিত নক্ষয়শ্রেণীর স্থায় মুক্তামালাতে রাজার মুখমণ্ডল পরিবেষ্টিত ছিল , (ট) চন্দনসৌরভলোভে সমাগত সৰ্পংয়ের ছায় অবস্থিত এবং নিতান্তচঞ্চল রাজলক্ষ্মীর বন্ধনশৃঙ্খলভ্রমজনক নীলকান্তমণিখচিত কেয়ুৰ্ব্বষুগলে রাজার বাহুযুগল পরিবেষ্টিত ছিল , (৭) পদ্মাকারে নিৰ্ম্মিত কর্ণালঙ্কারযুগল রাজার কর্ণযুগলে কিংৎপরিমাণে আলতি ছিল , রাজার নালিকা উন্নত নয়নযুগল বিকলিত শ্বেতপদ্মের স্থায়, ললাটদেশ নিৰ্ম্মল সুবর্ণক কের স্তায় বিস্তৃত, অষ্টমীর চন্ত্রখণ্ডের ন্যায় অৰ্দ্ধবর্ভূল, সমগ্র ভূমণ্ডলরাজ্যের অভিষেকজলে পরিপূত এব ক্রযুগলের মধ্যবর্তী বক্ররোমরাজিস মুক্ত ছিল (ত) মুগন্ধ মালতীকুসুমে চুড়াটা পরিবেষ্টিত ছিল, তাহতে প্রভাতকালে উপরিভাগে নক্ষত্রসমূহ পতিত হইয়া পুঞ্জীভূত হইলে অস্তাচলের (१) बाइबिखरम् । (२) चलचित । (३) नेत्रन्। (s) पझवितन्। (५) अभिषेकपूतम्। (६) मल्लरामतया । (e) सेवासङ्घताभिरिव ।