পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৫০৩

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५०६ कादब्बरो पूर्वभागे कथमपि प्रयत्न न निब्ब्ररीव प्रतीप नीयमाना सखोजनेन बलादब्बया सह तमिव चिन्तयन्ती स्वभवनमयासिषम् (क) । गत्वा च प्रविश्य कन्यान्त पुर तत प्रश्ठति तद्दिरहविधुरा किमागतास्मि, कि तत्र व स्थितास्मि, किमेकाविान्धस्मि, कि परि द्वतासिा, कि तूष्णीमसिा, कि प्रस्तुतालापासिा, कि जागमिा, कि सुप्तासिा, कि रोदिमि, कि न रोदिमि, कि दु खमिदम, कि सुखमिदम, (१) किमुत्कण्ठयम्, किं व्याधिरयम, कि व्यसनमिदम, किमुत्सवोऽयम, कि दिवस एष , विौ निरृीयम, कानि रम्याणि, कान्यरस्याणोति सव नावागच्छ्म (ख) । श्रविज्ञातमदनष्ठत्तान्ता च क्व गच्छामि, कि करीमि, कि पश्यामि, किमालपामि, करय कथयामि, कोऽस्य प्रतीकार इति संव च नाज्ञासिष्म (ग) । केवलमारुह्य कुमारीपुरप्रासाद (क) उत्थायेति । किञ्चाइ सरीवरादुत्थाय सखौजनेन कर्वा प्रयत्र न बलाञ्च निस्वगा नदौव कथमपि कष्ट न प्रतौप प्रतिकूख मनसा मृनिकुमारदिग्गमित्व ऽपि तद्दिपरीतदिशमित्यथ नैौ माना तमेव मुनिकुमार चिनायन्तौ सतौ भण्वया मावा सइ खभवनमयासिषमित्यन्वय । अत्रौपमाल द्वार । (ख) गत्वति । किञ्च तस्य मुनिकुमारस्य विरईण विधुरा विह्वला सतौ । परिद्वता लीक परिवटिता । प्रस्तुतालापा सखौभिरारब्धकथापकथना । सुप्ता निद्रिता । व्यसन विपत् । कानि বন্ধ লি। লাৰাযজ্ঞ ল शातवौ । अत्र वितर्कारह्यभावी विप्रलम्भएङ्गारस्प्लाङ्गमिति प्रवीनामाखड़ारस्तहिरइविधुरैोत पदाथ ६तुककाव्य खिङ्गन सड़ौर्यते । (ग) अविज्ञातेति । भविज्ञात पूव मनवगत मदनवृत्तान्त कामप्रभावी यया सा । नाज्ञासिषम् पूत्र मविज्ञातमदनद्वतान्तत्वादिति भाव । भवापि पूव वदेवाखङ्कार । এব হৃদয় শূন্ত ছিল অথচ তিনি মালা গ্রহণ করিবার নিমিত্ত শস্ত প্রসাবিত করিয়াছিলেন আমি সেই হস্তেব উপবে মালাছড়া র খিযা, ঘৰ্ম্মজলে স্নান কবিধাও পুনরায় স্নান করিবার নিমিত্ত সবোরবে যাইয়া মিলাম (ক) এব তথা ইতে উঠিলাম পবে সর্থীগণ অসিয়া যত্বপূৰ্ব্বক বলক্রমে কোন প্রকারে আ মাকে নদীব ন্তাষ প্রতিকূলভাবে নিয়া চলিল তাই আমি তঁহাকেই চিন্ত কবিতে ক বতে মতাব সহিত নিজপাটীতে গেলাম (খ) এব যাইয়া কন্যান্ত পুবে প্রবেশ করিয়া সেই হইতে তাহার দিবহে আকুল হক্টঃ আমি কি আসিয়াছি কি বা সেইখানেই বহিষ্কাছি কি একাকিনী আছি অথবা লোকে পরিবেষ্টিত বহিয়াছি , কি নীরবে আছি না আলাপ আয়ন্ত কবিয়ছি , কি জাগিয়া আছি না ঘুমাইয়া বহিয়াছি, কি কাদিতেছি কিংবা কঁদিতেছি না এটা কি দু খ এটা কি সুখ এটা কি উৎকণ্ঠা এটা কি Lরাগ এটা কি বিপদ এটা কি উৎসব এটা কি দিন এটা কি বাত্রি এব কোন বস্তু সুন্দর কোন বস্তুই বা কুৎসিত –এই সমস্ত বিষয়ই অবগত হইতে পরিয়াছিলাম না। (গ) পূর্বে আব কখনও কামের বৃত্তান্ত জানি নাই , সুতরাং কে য় যাইব কি করিব, কি দেখিব কি বলিব কাহার নিকট বলিব এব ইহাব প্রতীকবি কি এই সমস্ত বিষয়ও বুঝিয়াছিলাম না। (१) सातनिदम् ।