পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৫২২

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वाथायाँ कामात पुण्डरीकावख्यावणना । भूR५ सुख-कण्ट्रकितामित्र सुझावलौमविनयपताकासुरसि धारयन्तम्, (र) मदनवी करणचूर्णेनैव कुसुमरेणना तरुभिराहन्धमानम्ं, (ल) आत्मरागमिव सक्रामयद्धि रासत्ररनिलचलित (() अशोकपल्लव स्पृश्यमानम्, (व) सुरताभिषेकसलिल रिवाभिनवपुष्यस्तवकमधुगीकरेवनवियाभिविष्यमानम, (श) प्रलिनिवह निपीयमान परिमलो रुपरि पतद्धिखम्पककुट्मखँखप्तशरशख्यकौरिव (२) सधूमै कुसुम عہ مماسہ سیبہ سمہود -- محیه - همی میمر (र) दचिदति । किच दचिणकरेण उरसि वचसि खुकुरित प्रस्रत किरणनिकरी यखाताम् भतएव कश्तलम्य स्नश न यत् सुख तेन कण्ट्रकिर्ता सञ्चातरोमाञ्चनिव खिताम् किरणनिकरख रोमाञ्चवत् प्रतौतेरिति भाव तथा भविनयस्य कामावेशरुपदुराचारस्य पताकां व जयन्तमिव खितां मुनावलौं त्वदौय हार धारयन्तम् । भत्र पदाथ हैतुक काम्यलिङ्ग तथा प्रथमा वाच्या क्रियीत्य षा हितौया च प्रतौयमाना जात्यत्मघा इत्य तासा मङ्गाङ्गिंभावैन सृङ्गर । (ख) मदनेति । तरुभि कत भि मदनस्य वशौकरणच ण नेव लोकविश्झतासाधकच रण नेव कुसुमरीणना करणेन थइन्थमान देईोपरि निचेपाताद्यमानमिव । अत्र प्रथमा वाच्या जात्युत्मचा दितैौथा च प्रतीयमाना क्रियीत्य च। तर्योरञ्चाष्ट्रिभावन सङ्घर । (ब) भामिति । भासव्रीनि कटवति भि भनिखचलित वायुकम्पित यात्मराग खलौहित्यमेव रागमनुराग सक्रामयहि पुण्डरीके सचारयद्भिरिव खित अशोकपल्लव स्प्र श्यमानम् । अत्र लौहित्थानुरागधीभ देऽपि न्न षणामे दाध्यवसाधादतिशयोति क्रियीत्ग्रेचा चानयोरञ्चाब्रिभावेन सद्भर । (श) सुरतेति । वनधिया कत्रा सुरताभिषेकसजिल रिव रतिराज्याभिषेकजल रिव अभिनवान पुष्प्रस्तव कानां मधुणैौकरीमकरन्टविन्दुमि करण चमिषिच्यमानमिव । अत्र प्रथमा वाच्या जात्युत्मचा दिौया तृ प्रतौयमाना क्रियीत्प्रेक्षा चानयीरङ्गाड़ि भावेन सद्धर । (घ) अर्खौति । कुसुम गर्रण म नेग कत्र सधम रश्रिसमेतत्वाञ्च माविर्त कुट मलीपरिरह्यश्वमरसाम्यप्रतिपाद जाथसेतदिशषणम् तप्तशरणख्यकरिव अग्निसयुझखकौयवाद्याग्र रिव ह्यिहाँ चन्यककुट मलपौतत्वसाभ्यप्रतिपाद ाथ तप्तपतम् अलिनिवहैन भ्रमरसमूहन निपौयमाना सादरमनुभूयमाना परिमखा सौरभाणि येषां त पुण्डरीकस्य व করিতেছিল, (র) বক্ষের উপরে দক্ষিণহস্তদ্বারা আপনার সেই মুক্তাময় হারছড়াকে ५{द्भc করিতেছিল চতুর্দিকে তাহার কিরণ ছড়াইয়ু পড়িয়াছিল তাঁহাতে বোধ হইতেছিল যেন করতলস স্পর্শেব সুখে সেই হারছড়া রোমাঞ্চিত হইয়াছে এবং সেই হারছড়াকে অষ্ঠায় আচবণের পতাকার ন্যায় দেখা যাইতেছিল, (ল) বৃক্ষসমূহ, কামদেবেব বশীকরণচুর্ণের স্থায় আপনাদের পুষ্পবেণুদ্বারা যেন পুওরাককে আঘাত করিতেছিল (ব) নিকটবর্তী বায়ুকম্পিত অশোকপল্লবগুলি যেন পুণ্ডরীকেব দেহে আপনাদের রাগ সঞ্চারিত করিতে করিতেই তাছাকে স্পর্শ করিতেছিল (শ) বনলক্ষ্মী রতিরাজ্যে অভিষেক করিবাব জলের স্থায় নুতন পুপগুচ্ছের মধুবিন্দুম্বারা পুওরাককে যেন অভিষিক্ত কবিতেছিলেন, (ঘ) কামদেব, ধূমস যুক্ত অগ্নিময় স্বকীয় বাণখণ্ডদ্বাৰা পুণ্ডরীককে যেন তাড়ন করিতেছি লন , কারণ, তা বি দেহের উপরে চাপাফুলের কলিকা পড়িতেছিল সেগুলির উপরে আবার সৌরভলোভে ভ্রমরগণ (१) वखितँ । (९) तझण्ख्यरतीरिव ।