পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৫৬৩

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५६ ई कादख्बरो पूव भाग शरणागतासिम ते दर्शय दयालुताम” इत्येतानि चान्यानि च व्याक्रोशन्ती कियद्दा समरामि ग्रहग्टहीतैव श्राविष्टब उन्मत्तव भूतोपहर्तव व्यलपम (य) । उपर्यं,परि पतितनयनजलधारानिकरच्छुलेन विलोयमानेव द्रुवतामिव नेोयमाना जलाकारेणालोक्रियमाणा, (र) प्रलापाचारीरपि दशनमयखशिखानुगततया साधुधारेरिव निष्यतद्धि शिरोरुचेरप्यविरलविगलितकुसुमतया (१) मुझावाष्यजलविन्दुभिरिवाभरण रपि प्रस्वत (२) विमल मणि किरणाक्षुतया प्ररुदितरिवोपेता (ख) तज्जीवि सम्बीधनम्। क्लासैश । शिव । दशय दयालुतो वल्लभस्य प्राणप्रदानेनेति भाव । व्याक्रीअन्तौ उच्च क्रन्दनौं । कियच्चा स्मरामि यतानौदामैौ ब्रवैौमौति भाव । ग्रइग्टईौतेष पापग्रहैरधिष्ठितेव धाविष्ट व विकाराश्रितेव भूतव ताल उपहता विक्कतोक्कतव । अत्र चतसणामेव क्रियो प्र चाणा मिधी निरपेषतया ससृष्टि तथा किवदा अरामौति वाक्यस्य वाक्यान्तरमध्यगतत्व ऽपि न गभितत्वदोष प्रत्युत गुण एव भावंगातिशयसूचनेन चमरुकारातिशयात गभि तत्व गुण क्वापि वृति साfइत्यन्टप्रणात । (र) उपरौति । उपय्य परि पतितानां नयनजलानां धारानिकरच्छलेन प्रवाइसमूहब्यार्जन विलीयमानेव भूमौ लय प्राप्र वतौव ट्रवतां तरलतां नौयमाना विधिना प्राप्यमानैव तथा जलाकारेण श्राप्तमौक्रियमाणेव खरूपतां नौयमानेव थइ सुरुसु शुरैनमन्वनयमित्यादि परक्रियाभिरन्वय । अत्र तिख एव सापज्ञवा क्रिवीतग्र दाक्षासाञ्च मिर्थी निरपधतथा ससृष्टि । (ल) प्रलापेति । प्रलापाक्षरैरपि अचेतन इछैत्यादिविलापवर्ण'रपि दशनाना दन्तान मय खणिखाभि किरणाय अनुगततया उच्चारणकानेि तेषामेवानुसृततया हेतुना साक्षुधारौरिव दग्नमय.खशिखानामेवाश्रुधारावन् प्रतौतैरिति भाव निष्यतक्किमखाब्रिगैच्छष्ट्रि सङ्गिरुपेता । अत्र भन्नुधारासाहित्थीत्प्र चणाद्वगुणैोत्प्न चा । शिराक हैरपि केशरपि चविरण धन यथा स्यात्तथा विगलितानि कुसुमानि येभ्यस्तषां भावस्तया हेतुना सुता शैकाग्यता वायत्रलविन्दवी य खाद्दशैरिव सरुिपेता । अव वाथजलविन्दुमीचनात्म्न क्षणात् क्रियीत्य द्यालद्धार । तथा مبنی* রমণীকে লক্ষ কর । হে মাহাত্ম্যশালি বনদেবতাগণ । প্রসন্ন হও ইহার প্রাণ দাও। হে BBBBBBSBBBBB BBB S BBBBS BB BB BBBB K BB BB S কৈলা নাথ ! আমি তো iার শবণাগত হইয়াছি অমাব প্রতি দয়ালুতা দেখাও এই রকম এব অন্যান্য অনেক রকম বিলাপ করিতেছিলাম , তাহার কতই বা স্মরণ কবিয়া বলিব কিন্তু দুষ্টগ্রহধুতের স্থায় বিকারগ্রস্তের ন্যায় উন্মত্তের স্নায় এবং ভূতাবিষ্টের স্থায় কেবলই বিলাপ কবিতেছিলাম। (ব) নয়ন হইতে অজস্র িস্বত আশ্রধারাসমূহচ্ছলে ভূমিতেই যেন আমি শীন হইয়া যাইতেছিলাম সেই ছলে যেন দ্রবীভূত হইতেছিলাম এবং সেই ছলে যেন জলাকারে পরিণত হইতেছিলাম। (ল) মুখ হইতে বিলাপের অক্ষর নির্গত হইতে ছিল সহাঁর পিছনে পিছনে দন্তের রশ্মিও বহির্গত ইতেছিল, তাহাতে বোধ হইতেছিল যেন সেন্ট বিলাপের অক্ষরগুলিও অশ্রধারার সহিত নির্গত হইতেছে , কেশকলাপ হটতে পুষ্পসমূহ অনবরত পতিত হইতেছিল তাহাতে প্রতীতি হইতেছিল যেন কেশকলাপও অশ্র


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(१) विगखत्कुसुमतया । (९) प्रसूत ।