পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৭৩৩

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et, 2 कादब्बरो पूवभागै रोमाचरिवाङ्ग (१) क्ररतासुद्दहन्तीम्, (फ) चारु चामीकर-पट्ट (२) प्राष्ठतेन च ललाटेन गवरसुन्दरी रचित-सिन्दूर तिलक बिन्दुना दाडिम (३) कुसुम कणपूर प्रभा सेक जोडितायमान-कपोलभित्तिना रुधिर-ताम्बूलारुणिताधरपुटेन श्रृकुटि कुटिल बस्व नयनेन (४) सुखेन कुसुश्व पाटलित दुकूल-कलितया च देहलतया महाकालाभिसारिकावेशविभ्चम बिभ्रतीम् (ब) सम्मिणिहत नीख गुगशस्त्र(५)धपध्रुमारुपीछताभिच्च प्रचलन्तोभिर्गभग्रहदीपकालताभिरङ्ग लौभि (क) श्रीथितेति । किञ्च शोणितेन रज्ञासंखवण ताम्रा ये कदक्वस्तवका वादकवपुष्पगुचछास्त छातम् चञ्च न येषां त सखप्रकदण्वकुसुमरंगृभिरित्यथ भतएव पशूपहारै पशुपखिदानसमये पटहख ढक्काया यत् पट्,रटितम् उश्रमव्दशख रसेन श्रवणेत्साईन उल्लसति उद्गच्छन्तौति ते तथीता रामाचा यषु तरिव भङ्ग क्र.रतां रौद्रताम् उइइनौं थारयन्तौम् । भत्र रोमाचीद्गमात्प्रेक्षणात् क्रियत्प्रेचा इच्यलुप्रासधानयाँरैकाश्रयालुप्रवेणरूप सहर । (व) चावि ति । किच्च चारु सुन्दरी थरुानौकरपङ्क खण फलक तेन प्राद्वतमाच्छादित तेज तथा प्रवर सुन्दरौभि रचित झत सिन्दूरतिलकबिन्दुय व तग तादृशेन खखाटेन । दाड़िमकुसुमे एव कच पूरी तयी प्रभाया सेकेन ससग ण जीझितायमाने वापोखभितौ गण्ड़युगल यस्य तेन रुधिरतन्त्र लाग्याम् अरुणित रझावयाँछतम् थधरपुट यख तेन तथा भकुठ्या भूभङ्गन कुटिले वक़ बभ्रुषौ पिङ्गखवणे नयने चचषो यख तेन ताडमैन मुखेन । तथा कुसुम्रेन रचनद्रब्यविशषेय पाटलित श्व तरतीक्कत यत् दुकूल वस्त्र तेन कलितया भाइतया दै रजतथा च करणन महाकालस्य अमिसारिकावणविश्वम बश्वती थारयौमिष रह्यताम् । अत्र प्रतीयमाणा क्रियीत्म चालद्वार । (म) स न्यखिड़तंति । किञ्च सम्पिछित पुच्चौभूती यी गौखगुग गुलुध पयोध मतन अरुणैौक्कताभि मषजनीभिर्नाgभरात् कम्पमानाभि गभग्टइख थन्तग्ट इख दीपिकाखताभि वायुवशात् प्रचखननैव लतावल्लम्बमानी भूत दौप गहिषासुरख जीयितखव रक्तविन्दुभि थाखोश्न्यि भारझाक्षाभरक्षुखीभरिव खाताभि सतोभि (ফ) রক্তে রক্তবর্ণ কদম্বপুষ্পের সেগুপ্তারা দেবীর অঙ্গে পূজা করিয়াছিল তাহাতে প্রতীতি হইতেছিল যে পশু বলিদান করিবার সময়ে ঢঙ্কার উচ্চ শব্দ শ্রবণে উৎসাহবশত দেবীর সমস্ত অঙ্গে যেন রোমাঞ্চ উদগত হইaাছে , সুতরা সেই অঙ্গসমূহত্ত্বাবা দেবী ভয়ঙ্করত। ধারণ করিতেছিলেন। (ব) দেবীর লল।ঢদে মুন্দর একখানি স্বর্ণফলকে আবৃত ছিল এবং শাররমাগণ সাহাতে ক্ষুদ্র এবট সিন্দুরের তিলক দিয়াছিল , কর্ণযুগলে দাড়িম্বপুষ্পের দুইটী কর্ণপুর ছিল, তাহার প্রভায় কপোলযুগল রক্ত ণ হইয়াছিল , সত্তসংস্রবে ও তাম্বুলের রসে ওঠমুগলকে মরণবর্ণ করিয়াছিল স্বভাবতই পিঙ্গলবৰ্ণ নয় যুগল ভ্ৰকুটি করায় বক্র হইয়৷ BBS BB BBBBBB BB BBB BBBBS BSBB BBB BBS BB BBB BBB দেবী যেন মহাকালের প্রতি অভিসারিকার বেশবিলাস ধারণ করিতেছিলেন। (ঙ) ঘরের ভিতরে কতকগুলি প্রদীপ ছিল, গুগগুলু ও ধূপের নীলবর্ণ ধূমপুঞ্জে সেই প্রদীপগুলিকে অরুণবর্ণ (१) चाच्च । (९) पट । (३) दाड़िमौ । (४) ध्रुकुटिकुटिलध या दप्तानयनेन भृकुटि कुटिखवध चा रक्तनयनेन श्रुक्कटि । (५) गुग गुल ।