পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৮৭

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o कादश्बऎी। ੋ। জৰিয়ম্বৰনাৰীৰ বহু লৰালন্তহু মন্ত্ৰমালা () মাৰা, (ঘ) কু:ি दचिर-निष्ठत्त विवाइभूमिरिव इरित-कुश समित्र गर्मी पखाश-ोभिता, (छ) कचिंदुमत (२) ऋगपति-नाट्-भीतव कण्टकिता, (ज) क्ाचिचत्स च कीरृिछ् ईज-सॆख:(-) प्रखाषिनी, (झ) झचिदुचसि च। স্বাধন-জন-বাৰমহা, (ছ) কন্থিT(জ) অম্বিৰিষি । ཟ་སོ་ན། གནས་ विद में। एष ख्य न । प्रखयवेखेव युगान्तबनव इव भन्नवरारे षिाड एकरी द इामिद च समुत्खात विदारित धरणिमण्ड़ख भूतलईबी यखां सा चन्वत्र तु महावरासेच नारायच कर्तौबावतारैष द इया समुत्खात जलादुत्व त धरणिमखख समग्रभूमण्डख यखाँ सा । पूर्वीपमा । प्रखयकाश्वे हि भगवाधारायची बराइमूति मवलम्बा जखमग्रां पृथिवैौमुड,तवानिति वङ्गपुराचवार्ता । (च) कचिदिति । दशमुखख रावणख नगरी पुरी खडब चटुलेन चचखेन वानरहन्ट न भव्यमान तुन्नबख खशसज द्वच पचे झज्यमानाभि तुइझाखाभि' उच्चग्टहै चाकुखा व्याप्त। । पूबाँपमा । रामरावषयी समरसमये हि बानरनिकरेण खडाया ग्टइसमूही भग्न चासीदिति रालायथवार्ता । (ड) क्वचिदिति । थचिरनिड़ त सद्य सम्यग्नी यी विवाइसख भूनि खानमिव इरित हरिदर्ष' कुशद भै सनिद्विय शैौयदारुभि दुसुन पुष्य अनौपखाओं ममैौपबश भोभिता । विवाहखानेऽप्य तान्युप युव्यण इति पूर्चाँपना । (श्र) कचिदिति । उनात्तख उत्कटख मृगपतै सि इस नादादृगज्ज नात् भौता रमयौव कण्टकिता सन्नात कण्ठका रीमाखिता च । पूर्वीपमा । (क) क्वचिदिति । माता मद्मपानजनितमतताविशिष्टा स्त्रीव कीविखकुखस्य कखप्रलापोऽव्यक्तलधुरध्वनिरम्या चर्यौति सा पचे कीकिलवत् कखम् अब्यज्ञमधुर प्रलपिर्नु मत्ततावश्रादनथ क वक्त, बौख यस्त्रा सा । पृत्तोंपमा । (अ) क्वचिदिति । उनप्रत्ता उन्प्रादरीगग्रस्ता नारौब वायुवेगेन छाता तालानां ताखहचाखाँ एब्दा यखाँ सा चन्चब तु रीगरूपवायुवेगेन छाता ताखशब्दा करतखध्वनयी यबा सा ! पूर्णोपमा । দেশের অলঙ্কারবিশেষের নাম গণ্ডক) আভরণ छूषिऊ, दिकाफ़ेबौe cठभन शांप्जद्र नश्वग्लिश মালায় ও গণ্ডারগণে পরিশোভিত (ঘ) মদ্যপানের স্থানে যেমন মস্ত ও তাহার পানপত্র छिउ এবং নানাবিধ কুসুম বিক্ষিপ্ত থাকে, বিন্ধ্যাটীতেও তেমন পুষ্পের মধু ও তাহার কোশ প্রকাশিত এবং Tানাবিধ কুসুম বিক্ষিপ্ত আছে (ঙ) প্রলয়কালে আদিবরাহ (নারায়ণ) যেমন দস্তদ্বারা পৃথিবীমণ্ডল উত্তোলন করিয়াছিলেন বিন্ধ্যাটবীর কোন কোন স্থানেও তেমন বৃহৎ বৃহৎ বরাহগণ দস্তারা ভূতল বিদায়ণ করিয়া থাকে, (চ) যুদ্ধের সময়ে ੋਂ যেমন চঞ্চল বানরগণ উচ্চ উচ্চ গৃহ সকল ভগ্ন করিয়াছিল, বিন্ধ্যাটবীর কোন ८कांन ऋण s cठभन 5क्षण यांनब्रश्नां* उँछ ऊँछ भांशदून उभ्र कब्रिञ्च थांटक, (इ) चछिद्र নিপন্ন বিবাহস্থানের স্থায় বিস্কাটনীর কোন কোন স্থানে হরিবর্ণ কুশ, সখি, কুহুম ও শোভিত হইতেছে, (জ) উন্মত্ত সিংহের গর্জনশ্রবণে ভয়হশত রোমাঞ্চিত রমণীর আঁকোন কোন স্থলে বিন্ধ্যাটবী কণ্টকাকীর্ণ হইয়া থাকে, (ঝ) মুরাপানমন্ত রমণী যেমন {းဖn স্থায় অস্পষ্ট অথচ মধুর প্রলাপ করিয়া থাকে বিন্ধ্যাটীর কোন কোন অংশেও ডেমন কোকিলগণের অব্যক্ত মধুর রব হইয়া থাকে , (এ) উন্মত্ত স্ত্রী যেমন বায়ু বেগে (१) यन्न । (९) उद्घड़त । (२) कुखप्रजापिनौ ।