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পাতা:গৌড়লেখমালা (প্রথম স্তবক).djvu/১১১

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तस्माद्बभूव सवितु[र्व्वसुकोटिवर्षी
काले]न चन्द्र इव विग्रहपालदेवः
नेत्र-प्रिये
२१ ण विमलेन कलामयेन
येनोदितेन दलितो [भुवन]स्य तापः॥(১০)
[देशे प्राचि] प्रचुर-पयसि खच्छ मापीय तो-
२२ यं
स्वैरं भ्रान्त्वा तदनुमलयोपत्यका-चन्दनेषु[।]
कृत्वा[सान्द्रैस्तरुषु जड़तां] शीकरै रभ्रतुल्याः
प्रालेया[द्रे-]
२३ ः कटक मभजन् यस्य सेना-गजेन्द्राः॥(১১)
हतस[कल]विपक्षः सङ्गरे [बाहु]दर्पा-
दनधिकृत-विलुप्तं राज्य मा-
२४ साद्य पित्र्यं।
निहित-चरणपद्मो भूभृतां मूर्द्ध्नि तस्मा-
दभ[वदवनि]पालः श्रीमहीपालदेवः(১২)

स ख-
२५  लु भागीरथीपथ-प्रवर्त्तमान-[नानाविध]-नौ[वा]टक-सम्पादित-सेतुबन्ध-निहित-सै-(शै)ल-सि(शि)खरश्रेणी-विभ्रमा-
२६ त्। निरतिशय-घन-घनाघन-घटा-श्यामायमान-वासर[लक्ष्मी]-समारब्ध-सन्तत-जलदसमय-सन्देहात्।
२७ उदीचीनानेकनरपति-प्राभृतीकृता-[प्र]मेय-हयवाहिनी खरखुरोत्खात-धूलीधूसरित-दिगन्तरा-
२८ लात्। परमेश्वर-सेवा-समायाता-शेष-जम्बूद्वीप-भूपालानन्त-
^(১০)  বসন্ততিলক। এই শ্লোকের “বসুকোটিবর্ষী”-পদটি অধ্যাপক কিল্‌হর্ণ কর্ত্তৃক “বসুকোটিবর্ধী” বলিয়া পঠিত হইয়াছে। “নেত্রপ্রিয়েণ”-শব্দটিও তৎকর্ত্তৃক “বিশ্বপ্রিয়েণ” বলিয়া [কিঞ্চিৎ সংশয় সহকারে] উদ্ধৃত হইয়াছে। মদনপালদেবের তাম্রশাসনে “নেত্রপ্রিয়েণ” পাঠ স্পষ্টাক্ষরে উৎকীর্ণ থাকায়, সেই পাঠই গৃহীত হইল।

^(১১)  মন্দাক্রান্তা।

^(১২)  মালিনী।

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