जित्वा यः कामकारि-प्रभव मभिभवं शाश्वतीं प्राप शान्तीं
स श्रीमान् लोकनाथो जयति दशबलोऽन्यश्च गोपालदेव
३
ः॥(১)
लक्ष्मी-जन्मनिकेतनं समकरो वोढु[ं]-क्षमः क्ष्माभरं
पक्षच्छेदभयादुपस्थितवता मेकाश्रयो भूभृतां।
मर्य्यादा-परिपालनैक-नि-
४
रतः शौर्य्यालयोऽस्मादभू[त्]
दुग्धाम्भोधि-विलासहास-वसतिः श्रीधर्म्मपालो नृपः॥(২)
रामस्येव गृहीत-सत्यतपस स्तस्यानुरूपो गुणैः
५ सौमित्रे रुदपादि तुल्यमहिमा वाक्पालनामानुजः[।]
यः श्रीमान् नय-विक्रमैक-वसति र्भ्रातुः स्थितः शासने
शून्याः शत्रु-पताकिनीभि र-
६
करोदेकातपत्रा दिशः॥(৩)
तस्मादुपेन्द्र-चरितै र्जगतीं पुनानः
पुत्रो बभूव विजयी जयपालनामा।
धर्म्मद्विषां शमयिता युधि देवपाले
यः पू-
७
र्व्वजे भुवनराज्य-सुखान्यनैषीत्॥(৪)
श्रीमद्विग्रहपाल स्तत्-सूनु रजातशत्रुरिव जातः।
शत्रुवनिता-प्रसाधन-विलोपि-विलासिजलधारः॥(৫)
८ दिक्पालैः क्षितिपालनाय दधतं देहे विभक्तान् गुणान्
श्रीमन्तं जनयाम्बभूव तनयं नारायणं स प्रभुं।
^(১) স্রগ্ধরা। এই শ্লোকের “জল”-শব্দ লিপিকর-প্রমাদে বিসর্গান্ত রূপে উৎকীর্ণ হইয়াছে।
^(২) শার্দ্দূল বিক্রীড়িত। “দুগ্ধাম্ভোধিবিলাস-হাসি-মহিমা”-পাঠ এই তাম্রশাসনে পরিবর্ত্তিত হইয়াছে।
^(৩) শার্দ্দূল বিক্রীড়িত। “একাতপত্রা”-পাঠের পরিবর্ত্তে বসু মহাশয় কর্ত্তৃক [J. A. S. B. 1900 p. 69] উদ্ধৃত ekatapatro “একাতপত্রো”-পাঠ মুদ্রাকর-প্রমাদ বলিয়াই প্রতিভাত হয়।
^(৪) বসন্ততিলক।
^(৫) আর্য্যা।
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