পাতা:গৌড়লেখমালা (প্রথম স্তবক).djvu/১৭৪

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লেখমালা।

ए-
२१ तस्यापि सहोदरो नरपति र्द्दिव्यप्रजा-निर्भर-
क्षोभाहूत-विधूत-वासवधृतिः श्रीरामपालोऽभवत्।
शासत्येव
२२ चिरं जगन्ति जनके यः शैशवे विस्फुरत्-
तेजोभिः परचक्र-चेतसि चमत्कारं चकार स्थिरं॥(১৫)
तस्मादजायत निजा-
२३ यत-बाहुवीर्य्य-
निस्पी(ष्पी)त-पीवर-विरोधियशः-पयोधिः।
मेदस्वि-कीर्त्ति रमरेन्द्र-वधू-कपोल-
कर्प्पूर-पत्रमकरी(?) स कु-
२४ मारपालः(১৬)
प्रत्त(त्य)र्थि-प्रमदा-कदम्बक-शिरःसिन्दूर-लोपक्रम-
क्रीड़ा-पाटल-पाणि रेष सुषुवे गोपाल मूर्व्वीभुजं।
२५ धात्री-पालन-जृम्भमान-महिमा कर्पूर-पांशूत्करै-
र्देवः कीर्त्तिमयो निज[ं] वितनुते यः शैशवे क्रीड़ितम्॥(১৭)
तदनु मदन-
२६ देवी-नन्दन श्चन्द्रगौरै-
श्चरितभुवन-गर्भः प्रांशुभिः कीर्त्तिपूरैः।
क्षिति मचरम-तात स्तस्य सप्ताब्धिदाम्नी-
मभृत मदनपा-
२७ लो रामपालात्मजन्मा॥(১৮)

গোলযোগ ঘটিয়াছে। যেরূপ পাঠ আদ্যন্তের সহিত সামঞ্জস্য রক্ষা করিতে পারে, তাহা বন্ধনীমধ্যে সংযুক্ত হইল। প্রাচ্যবিদ্যামহার্ণব মহাশয় পরিষৎ-পত্রিকায় “বিভ্রৎস্ব” পাঠ হইতে পারে বলিয়া মন্তব্য লিপিবদ্ধ করিয়া, সোসাইটির পত্রিকায় পাঠ মুদ্রিত করিবার সময়ে, পাঠ-সংশোধনের চেষ্টায় “বিভ্রমভরান্ বিভ্রৎ সর্ব্বায়ুধানাং” পাঠ সংযুক্ত করিয়াছেন।

^(১৫)  শার্দ্দূলবিক্রীড়িত।

^(১৬)  বসন্ততিলক।

^(১৭)  শার্দ্দূলবিক্রীড়িত।

^(১৮)  মালিনী। এই শ্লোকের প্রকৃত পাঠ উদ্ধৃত করিতে অসমর্থ হইয়া, প্রাচ্যবিদ্যামহার্ণব মহাশয়,

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