পাতা:গৌড়লেখমালা (প্রথম স্তবক).djvu/২৫

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ধর্ম্মপালদেবের তাম্রশাসন।

र्भूत्वा समुचित-कर-पिण्डकादि-सर्व्व-प्रत्यायोपनयः٭২ कार्य्य
५६ इति॥

बहुभि र्व्वसुधा दत्ता राजभि स्सगरादिभिः।
यस्य यस्य यदा भूमि स्तस्य तस्य तदा फलम्॥(১৪)
षष्ठिं वर्षसहस्राणि स्वर्गे
५७ मोदति भूमिदः।
आक्षेप्ता चानुमन्ता च तान्येव नरके वसेत्॥(১৫)
स्वदत्ताम्परदत्ताम्बा यो हरेत वसुन्धराम्।
स विष्ठायां कृमि र्भूत्वा पितृ-
५८ भि स्सह पच्यते॥(১৬)
इति कमल-दलाम्बु-विन्दु-लोलां
श्रिय मनुचिन्त्य मनुष्य-जीवितञ्च।
सकलमिदमुदाहृत ञ्च बुद्ध्वा
न हि पुरु-
५९ षैः पर-कीर्त्तयो विलोप्या:॥(১৭)
तड़ित्तुल्या लक्ष्मी स्तनुरपि च दीपानल-समा
भवो दुःखैकान्तः पर-कृतिमकीर्त्तिः क्षपयताम्।
यशां
६० स्याचन्द्रार्क्कं नियत मवताम[त्र] च नृपाः
करिष्यन्ते बुद्ध्वा यदभिरुचितं किं प्रवचनैः॥(১৮)
अभिवर्द्धमान-विजयराज्ये
६१ सम्बत् ३२ मार्ग-दिनानि १२।
श्रीभोगटस्य पौत्रेण श्रीमत् सुभटसूनुना।
श्रीमता तातटेनेदं उत्कीर्णं गुण-शालिना॥(১৯)

^٭২  অধ্যাপক কিল্‌হর্ণ “प्रत्ययोपनयः” পাঠ মুদ্রিত করিয়াছেন। (উইকিসংকলন টীকা: কিল্‌হর্ণের পাঠে প্রত্যায়োপনয়ঃ-ই আছে। এখানে দেখুন।)

^(১৪)  অনুষ্টুভ্।

^(১৫-১৬)  অনুষ্টুভ্।

^(১৭)  পুষ্পিতাগ্রা।

^(১৮)  শিখরিণী।

^(১৯)  অনুষ্টুভ্।

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