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পাতা:গৌড়লেখমালা (প্রথম স্তবক).djvu/৬০

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লেখমালা।

वेदानधीत्य सकलान् कृतशास्त्रचिन्तः
श्रीमत् कणिष्क मुपगम्य महाविहारम्।
आचार्य्यवर्य्य मथ स प्रशम-प्रशस्यं
सर्व्वज्ञशान्ति मनुगम्य
तप श्चचार॥(৬)
सोयं विशुद्धगुण-सम्भूत-भूरिकीर्त्तेः
शिष्योऽनुरूप-गुणशील-यशोभिरामः।
बालेन्दुवत् कलिकलङ्क-विमुक्त-कान्ति
र्वन्द्यः
सदा मुनिजनै रपि वीरदेवः॥(৭)
वज्रासनं वन्दितु मेकदाऽथ
श्रीमन्महाबोधि मुपागतोऽसौ।
द्रष्टुं ततोऽगात् सहदेशि-भिक्षून्
श्रीमत् यशोवर्म्म-
१० पुरं विहारम्॥(৮)
तिष्टन्नथेह सुचिरं प्रतिपत्तिसारः
श्रीदेवपाल-भुवनाधिपलब्ध-पूजः।
प्राप्त-प्रभः प्रतिदिनोदय-पूरिताशः
पूषेव दारित-
११ तमःप्रसरो रराज॥(৯)
भिक्षोरात्मसमः सुहृद्भुज इव श्रीसत्यबोधे र्निजो
नालन्दा परिपालनाय नियतः संघस्थिते र्य स्थितः।
येनैतौ स्फुटमिन्द्रशैल-मुकुट-श्रीचैत्य-चूड़ामणी


^(৬)  বসন্ততিলক। ‘महाविहारं’ প্রথমে ‘महारं’ রূপে উৎকীর্ণ হইয়াছিল; পরে ‘विहा’ এই দুইটি অক্ষর নিম্নে উৎকীর্ণ হইয়াছে।

^(৭)  বসন্ততিলক।

^(৮)  ইন্দ্রবজ্রা।

^(৯)  বসন্ততিলক।

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১২ নং পংক্তির সূচনা কিল্‌হর্ণের পাঠ থেকে নেওয়া হয়েছে।