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পাতা:গৌড়লেখমালা (প্রথম স্তবক).djvu/৬১

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বীরদেব-প্রশস্তি।

श्रामण्यव्रत-सम्वृतेन जगतः श्रेयोऽर्थ मुत्थापितौ॥(১০)
नालन्दया च परिपालितयेह सत्या
श्रीम-
१३ द्विहार-परिहार-विभूषिताङ्ग्या।
उद्भासितोपि बहु-कीर्त्तिवधू-पतित्वे
यः साधु साधुरिति साधुजनैः प्रशस्तः॥(১১)
चिन्ताज्वरं शमयताऽर्त्तजन-
१४ स्य दृष्ट्या
धन्वन्तरेरपि हि येन हतः प्रभावः।
यश्चेप्सितार्थ परिपृर्ण मनोरथेन
लोकेन कल्पतरु-तुल्यतया गृहीतः॥(১২)
तेनैतद
१५ त्र क़ृत मात्ममनोवदुच्चै-
र्वज्रासनस्य भवनं भुवनोत्तमस्य।
सञ्जायते यदभिवीक्ष्य विमानगानां
कैलासमन्दर-महीधरशृङ्ग-शङ्का॥(১৩)
सर्व्व-
१६ स्वोपनयेन सत्वसुहृदा मौदार्य्य मभ्यस्यता
सम्बोधौ विहितस्पृहं सहगुणै र्विंस्पर्द्धि वीर्य्यन्तथा।
अत्रस्थेन निजे निजाविह बृहत् पुण्याधिकारे-
१७ स्थिते
येन स्वेन यशोध्वजेन घटितौ वंशावुदीचीपथे॥(১৪)
सोपानमार्गमिव मुक्तिपुरस्य कीर्त्ति
मेतां विधाय कुशलं यदुपात्त मस्मात्।

^(১০)  শার্দ্দূলবিক্রীড়িত।

^(১১)  বসন্ততিলক।

^(১২)  বসন্ততিলক।

^(১৩)  বসন্ততিলক।

^(১৪)  শার্দ্দূলবিক্রীড়িত।

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