লেখমালা।
२४ [आविर्ब्बभ्रू]व सहसैव फलं न यस्य
य स्तादृशं व्यधित कर्णसुख न्न किञ्चित्।
यत् प्राप्य दानपति मर्थिजनोन्य मेति
तत् केलिदानमपि यस्य न जातु
२५
٭ ٭॥(২৩)
अतिलोमहर्षणेषु कलियुग-वाल्मीकि-जन्म-पिशुनेषु।
धर्म्मेतिहासपर्व्वसु पुण्यात्मा यः श्रुती र्व्व्यवृणोत्॥(২৪)
असिन्धु-प्रसृता यस्य स्वर्धुनी
२६
٭ ٭ [धा]।
वाणी प्रसन्न-गम्भीरा धिनोति च पुनाति च॥(২৫)
पितृत्वं स्वय मास्थाय पुत्रत्व मगमत् स्वयं।
ब्रह्मेति पुरुषान् यस्य वंशे यञ्च प्रपेदिरे॥(২৬)
शोभो
२७ ٭ ٭ ٭ ٭ स्वकीय-वपुषो लोकेक्षण-ग्राहिणि
स्वाभिप्राय इवातुलोन्नतिमति स्वप्रेमबन्ध-स्थिरे।
स्पष्टं शल्य इवार्पिते कलि-हृदि स्तम्भेत्र ते-
२८
[न] ٭ ٭
٭ ٭ ٭ फणिनां हरेः प्रियसख स्तार्क्ष्योय मारोपितः॥(২৭)
भ्रान्त्वा दिगन्त मखिलं गत्वा पातालमूल मप्यस्मात्
यश इ[ह्र] तस्योत्तस्थौ हृताहि-गरुड़च्छलादमल[म्॥](২৮)
२९
सूत्रधारविष्णुभद्रेण٭ प्रशस्ति क्षणितं॥
^(২৩) বসন্ততিলক।
^(২৪) আর্য্যা।
^(২৫-২৬) অনুষ্টুভ্।
^(২৭) শার্দ্দূল-বিক্রীড়িত।
^(২৮) আর্য্যা।
^٭ বিষ্ণুভদ্র আপন নাম উৎকীর্ণ করিতে গিয়া, ভ-অক্ষরটি উৎকীর্ণ করিতে ভুলিয়া গিয়াছিলেন; পরে ঐ অক্ষরটি নীচে বসাইয়া দিয়া গিয়াছেন!
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