পাতা:প্রবাসী (ঊনত্রিংশ ভাগ, দ্বিতীয় খণ্ড).djvu/৭৭৬

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সারি—শ্ৰীখগেন্দ্রনাথ মিত্র, এম-এ প্রণীত ; মূল্য ১০ : প্রকাশক ঐহরিদাস চট্টোপাধ্যায়, ২৪৩১ ১ কর্ণওয়ালিশ ট্রট, কলিকাতা । ब्रांद्र बांशांइब्र बबूछ थप्नवानांर्ष बिज वॉमांला नांश्ठिाएकाज স্বপরিচিত ব্যক্তি, তাহার নীলাম্বরী,কোনের স্থল, “মুজাদোৰ’, ‘বিবি दछे' थङ्कठि नूखकसजि बरषहे ममांपद्ध जांछ कब्रिग्रांप्छ । अवांद्र डिनि ८म नब्र-नश्शंइ &यकांचं कब्रिट्जन, छांहांब नांश ब्रिां८झ्न ‘जांब्रि' । সারি, প্রেমের ঠাকুর, অচেন, মুক্তার মালা, অসতী, বাইঞ্জী, আমার कछांक्षां★, #ांकूद्ध क् ि७ मणांक्षाकब्र प्रांब्रिट्स, 4ाई नब्रtी tइtछे जछ s३ गूडरक वांटक 4दर चषत्र नरब्रब्र नांरभई बल्लेषाबिंब बांभकब्र१ कब्र हरेंग्रां८छ् । &थशंत्र शन्न 'नांबि**क्लिब्रl थtअंठानांtशंब्र जानक नि शृद्धि cज५1‘चैंनिौफ़ांब्र' ऋब्रब्र कषां षटन श्रृंक्लिन। बश्वनरै गांशांड लिभिङ ८कॉन नब्र गम्लि, ठश्वनरें ●कदांब्र कब्रिग्नः शरभंठाबां८षब्र ईनिकांब श्रtब्रब इति काकब्र मयू१ cनविtङ गांडे, थांब ठषनरे ऋन झग्न, छांब ८कह जबब छछिछ८ब्र शत्र ८णtपंन नl cकन ? 4डक्षेिन श्रृं८ब्र পারি’ গল্পটি পড়িয়া সে ক্ষোভ দূর হইল ; স্বকবি,স্বগায়ক খগেশ্রনাথকে এই গল্পের মধ্যে মূৰ্ত্তিমান দেখিলাম, ভক্তের সাধনায় ইঙ্গিত পাইলাম । ७iब्र भtब्रड़े ८थtत्रब्र #ांकूद्र,-ईशांe ॐ अक शाब्रटे बैंiषीं । जश्च গল্পগুলিও ভাল হুইয়াছে—বিশেষতঃ সম্পাদকের দায়িত্ব ; কিন্তু সকল কথা ছাপাইয়া শুধু জাগিয়া উঠিতেছে বনমালীর সেই গান—

  • नग्ननक ञि# cग्रंe सृशृनक हांग ! স্নখ গেও বঁধু সঞ্চে ছুখ মৰু পাশ ॥” डेहांब श्रृंब्र जांब्र किडू बलिदांब्र आi८फ़् कि ? भब्राeजि शक्लिग्न তৃগু হুইয়াfছ এবং বনমালীর মধ্যে খগেন্দ্রনাথের স্ব-রূপ দেখিয়া শান্তিলাভ করিয়াছি ।

শ্ৰীক্ষলধর সেন ন্যায়দর্শন ও বাৎস্যায়ন ভাষা— বিস্তৃত অনুবাদ, বিবৃতি, ও টিল্পী প্রভৃতি সহিত ), পঞ্চম খণ্ড, মহামহোপাধ্যায় পণ্ডিত ত্রযুক্ত ফণিভূষণ তর্কবাগীশ কর্তৃক অনুদিত, ব্যাখ্যাত ও সম্পাদিত । বঙ্গীয় সাহিত্য-পরিষৎ হইতে প্রকাশিত। अकांग्णप्त टर्कतांत्रौं महां★ग्न दि१ठ २७२० गांtज हैहीं खांब्रख कtब्रन ॥ ३झांब्र यषभ ५७ वांहिब्र इहेtण ****थवांनौ'tडहे जiधि किङ्क अitजांछनां कब्रिग्नांशिलtअ ॥ जॉज ●रें *पंथ थ८७ अंइवांनि *ब्रिजभांख हरेण । टर्कीवां★ौ* भहोंनंग्न छैiहांब्र ●रे अझ्षांनि अध* ●यंकांचं कब्रिग्र जांभांtप्रब्र छंखtब्रांखञ्च गंछौब्रछब्र थकृी जांकई* कञ्चिब्रां८छ्ब । शृंहिांङ्गां बर्डभांब अॉन्नर्थ-°खिडनंनंtक वह अप्राग्न 4करननमनौ रुनिब्रा कब्रनोब वृeिtठ cषषिग्रां षष्किन, ठांशांब्रा टर्कशांशैनं महां★ब्रब्र s३ शूलकथांबि 4कबांब्र गर्दrांtजांछन! कब्रिग्रां tषषिtज विtछब्र अङ श्रृंब्रिवर्डन कब्रिट्यब । वजुङरे उर्रुतांशैनं अहांचंग्न बां९छांब्रन छांप्याब वTांश निषिष्ठ जिब्रा निप्छद्र वैशभूष शशैब्र *ांखिडा, शबिनून एका विकांब*सि, ७ छूलfछ वहनंiञ्चछठा यकांनं করিয়াছেন। বর্তমান গবেষণায় সহিত তাহার ষে বিশেষ পরিচয় बां८इ ॐांहांब्र अंह ठांहांब्र● मांक &यक्षांन क८ब्र । छैांशांब्र *iञ्चवjॉषा य*ांजी वजौग्न श्रृंसिङ गमांtछ विtअंद &यछांव विखांब्र कब्रिब्रां८छ् । गसिष्ठ वैबूड प्रब्रांजकूक टर्कठौर्ष मशीनtब्रब्र ‘जत्रूभांन क्लिडांत्रनि' ७ পণ্ডিত ঐযুক্ত কালীপদ তর্কাচার্ধ্য মহাশরের “মুক্তিবাদের অম্বুবাদে তর্কবাগীশ মহাশয়ের গ্রন্থের প্রেরণা থাকিতে পারে। बांछकांण ८कांटन छिनिछनब्र प्रङ्ग छैक कब्रिसांब्र वांछtब्र श्रृंश्छिtष, ठl cन छिबिन चtनकै३ श्छेक बाब दिटनचौरे इक्वेक ॥ छर्कषांनौ* মহাশয়ের স্তায়ভাষা-অনুবাদের ভাষাটি যদি বাংলা না হুইয়া কোনো हेऍtब्रां★ौग्न छांश झल्लेष्ठ ठांह कुरुंtण ठेहांङ्ग जांझब्र ७ य5ांब्र cय, জামাদেরও দেশে অনেক বেণী হইত তষিয়ে আমার সঙ্গেহ নাই। ইকবাগীশ মহাশয় বঙ্গভাষাকে এক অপূৰ্ব্ব দ্বান দিলেন। বঙ্গীয় नांश्छि|-*हिल९ ७ङ्गश्री जंश् चकां* कब्रिग्न: दखडहे (१कै राष्ट्र कांछ করিলেন । बांप्र'zजब tई श्रांप्लांका थt७ छांग्रश्नंtनब्र 8र्ष अशां८ग्नब्र २ग्न थांश्कि ह्रँ८छ असलिट्टे मञओं जशलं बां८छ । देहांब्र भएषा बांनांझांप्न বৌদ্ধদৰ্শনের কথা আছে । ইহা আলোচনা করিতে গিয়া তর্কবাগীশ মহাশয় সম্প্রতি প্রকাশিত মূল বৌদ্ধশাস্ত্রও আলোচনা করিয়াছেন, अष९cनई खछहे छैiहांब्र शांशं श्नब श्ड़ेब्रांtइ । बूण भूखरकब्र *ां# इिब्र कब्रिrठ७ क्लेशlहैहांएक जांहांषा कब्रिग्रांप्इ ॥ * गचएक झूरें একটি কণা এখানে উল্লেখ করিতে পারা যায়। স্বায়বাৰ্ত্তিকে s.२-२s* एrज वश्वबूब्र वि १ नं डि क (क्छिद्धिमांजनिकि) रुझेरङ ছুইটি কারিক ( ১২শ, ১৪শ ) উদ্ধত হইয়াছে। প্রথমটি এই – বট কেন যুগপদ্ধ যোগtৎ পরমাণোঃ ভূংশত । वहां६ नमांनtननचां९ नि७: छाननूमाजकः ॥ এ কান্ত্রিকাটি বহু গ্রন্থে উদ্ধত দেখা যায় । মুজিত পুস্তকের (লেৰি সাহেবের সংস্করণ) ইছাই পাঠ। স্কারবার্ভিকের কোনো সংস্করণে (কাণী ) পূৰ্ব্বার্তে "যুগপদ্ধ যোগtৎ এই পাঠই আছে, কোনো সংস্করণে (কলিকাতার ) আছে "যুগপ ষোগে।" বঙ্গবন্ধুর নিজের ব্যাখ্যায় দ্বিতীয় গঠিই সমর্থিত হয় ( “পরমাণুক্তিযুগপদ্ধ যোগে गठि”) । टिक्वटौ अत्रूवांन७ (cचTांब्र- वः न ) इंशां३ =णडेठ थकां* कrब्र । विडौञ्च जté, जर्षी९ छूठौग्न शांरक छंघ्निषिऊ छूहे ग१कब्रtभंहे “णशांनzक्तंtष" श्रृंॉ% जां८छ्, किड़ छर्कबां★ीचं वहां★ग्न fकड़े দেখাইয়াছেন, মুজিও বিংশতিকায় পঠিত হইয়াছে “সমান দেশস্থাৎ।" बश्वजूद्र वृखिtउe ऐशश् बूक शांब्र । किङ “मबांनाननtन्न" बरे পাঠও যে অতিপ্রাচীন তাৰা তিব্বতী জম্বুবাদে দেখা যায় (গো, চিগ, ন)। “তোমাপ্যকদেশত্বে" পাঠ ঠিক নছে। স্বায়ৰাৰ্বিৰে (কলিকাতা, পৃ e২২ . কাপ, পৃ ৭১৭ ) বিংশতিকার ১৪শ কারিকাটিও উদ্ভূত হইয়াছে, কিন্তু এখানেও একটু গাঠভেদ দেখা যায়, বিংশতিকায় আছে দিগ ভাগভেদঃ," কিন্তু বাৰ্ত্তিকে ब्रश्ब्रिोरक्क “त्रि लेखनः ।” अरे ●यगरज छर्कषांशैौ* अशांनंग्न नंॉरेंटकांग्रांप्ल थांकामंइमांलांग्न थकांचिङ “ठस्रग१itश्ब्र” ब्रछद्रिडांब नाम बजिब्रांzइन (श्रृं >०e ) न उ ब कि उ । चक्छ केदार भूजिउ श्रहांग्रह, अवः ॐ,जइयांनात्र *ब्रिकांजक छांखांब वैदूख विनब्रह्छांद छप्लेiफ्रांर्ष यहांलग्न स जछांछ