পাতা:প্রবাসী (ঊনত্রিংশ ভাগ, প্রথম খণ্ড).djvu/৪৩৮

উইকিসংকলন থেকে
এই পাতাটির মুদ্রণ সংশোধন করা প্রয়োজন।

阿琳帆} &t छशिल्लिग्न झांगां, wांशं शश्शौं भी; (स्रग इशी बांह tीनि। ििन, ऐणा की गहन *ीशै रञिाश्गि-(ग ह५ घांगन इध्नि शैश्नि कांिित शनैशिष्ट क्लांकन ऐज़िउ गांगि। श्रुि गि ऐन, " रेशेश्ौ।ि” शब्रोल (सि उशः श्राशनtशैशिरु, कां★१ 6रेशंकरे शिछार प्लशे (श दूक्रऔन ऎगा कि शैशिषर्शन গ্রান্তেরদিকে চল্লি বুলি, যেখানে গুন্ত্র গ্রাসাদের इीौतः इति ऐतःि शिर तैरति।। १ारितः। प्रातू १श्कि शीर् वांरांत शिरु षां★छ रुजि; बांश कश् षटाढ़ कांनू इंग्ल नाशिाश्; गैज़ ल गिर ग,ि"* दूर बार हाशार, शी ঘোনালোংেস্থান নাr गिरेग्लो गिन्, “बशल शा शार! (रु' "शनशार१, शांन(त " 'विरी! िअंक चांश भांगां क्रन "ि "श स्श९ रगिनि छरे बारेशीं । (श (शंशं; क१ बांनन, नीषणै तृत्8 न। घांश्ि गरारेर भूक्तिtठांशी चांगूछगिशिांश् चांशाः शंख्षांन8(रनै श; यांनरैrणं, शांगित कांब uरे ब्लक (*ानहे कान १ोति " , नरेन्श हिछि श्रेक्षा अग्लिश। शख़्रे बशिक् १:हषिराइटिशवग्रिगै$िsषाशर शैक्षगिरग"ि श्रे न शश र शांइ षष्ठान श्रे(ग, शांत प्रित शूई छक्क सूक्tर्थौ रुग्नि छांश (१शाशेठश्लि। थांशांतू प्लांहे আন্থে স্ট্র, গৈাশ বৃক্ষশ্রেণী শো টাগো, খে গেলকেবল স্বাক্ষাক্ষেত্রের পর স্বাক্ষাক্ষেত্রচলিয়াছে। ই ** श्न#ारन्स् इक्वौ (शैशशि भू अन्न तूंढ़उ। शैौरीकृठिरनिई dरु उशनांरु १शित्रु (शि उशन रुि षgशन श्रेजन। निरु षांगिाहे शांशंद्र १ि(शंनाशे लिनि ऐगिस् रुt}रनिश ऐौगन्,"शगिरश छा, शेर् शैलि अिगिौरु ि श्रृं/छ।' পধিকও বলি উঠিল, "শর তোমার মান্ন করুন, dनि,tशंशंद्र अष्टाईगं बछ श्रां" १ा षांगिता। उोशङ्ग| १ाश्निन निनि रुतिा। शीर् उशा १,ाऊ शनि चाश्न शूक्षरि तििरतिातिरिक्षे टि नि,"ं हि तििण 'श शंश घा र सर? सृष्6िरे वा मश्रे झाdइ। अर बाशा का४ ईश् षष्ठ प्रिक्षत्राप्ले प्र।ि' पिनि गान शू अंग शंश शौन अिन ल रगि","श स् िरागः शरे कोशों, उभ (रु ५श्न चाँगां कश्वाग७चामर्श शिाहसि प्रि। दूस्नान छ।' बारबारिया ईतर दिा ঘূমিতে يسمسيني বদ্ধ ষ্টা আদিতে লাগিল। রাস্তার বা গাঙ্গে शंकांकट्स९ (*श श्रेण; छांशं* श्रृंtाहे नक्शरबौद्र $की रिशैfरां★न षांतृष्ठ श्रेण-गः ¢ो शैक्षि ধার গান্তর্ণিাগড়িাছে। যে সারা পাট এতক্ষণ शैक्षित ऐ%ा क्लांकन ऐग्लिशहज (ग gश्न शैौ5 नाति भारुणरौ ग्रा नि (तशरेरति। *ि १शै$रु जैज़रेशर का शज्ठागि ति औरकां★ रुशिरगिल,"ाशश्, tां★ वांशं★ झणग ,ि हाइ!" जैठ श्रे गार्ग १क रिषक शक्षिा ु अिन एा जरबैशास्त्रा अित र त्ञ गन्नै स्थाप्ति हि। .ि(हंशिर घग्नु (शंशेरगिल,"षैशन शाउौह,५रांशैजॉरेि प्त क्षेधश िि। dनागौ। अिन्त झ क् प्लिाशिगन घार रगज्राशै। भांगांन?ङ्कारे रुति शंन। आशरु भूक्लारेषणों ग्लो क्राप्लेि क्त श्ाङ् ।' ¢रे रुष रगिाठ रगिाठ छांशंका अंत९ किी খোলা আসি গড়িা; াৈ ৈগাশ লা: निश (ोगराएँौ dर गिशन बशिांक्षांशै। rाष शरेणिः; ॰सी७ शशिनि ौि रे' षां झिन्नारि शान्ता ऐझ अिौ ाि (शौं। शश गिल्लन्न झ कबी। ऐत्रिा ऐत९ नाग कन्नश्क१णाक् । गिरेपिनि। बिा