পাতা:প্রবাসী (ঊনত্রিংশ ভাগ, প্রথম খণ্ড).djvu/৯৪৩

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११शर्षि रशिग-"धारक शरि न (ऽी? (स्प्ले ग्रतः लूि ना।।" t कौग१ ५को चट्ठाइसिर नि–५ो মিটির নাম, ন, যার মোড় হবে না; একটা দি शः इति शिसे तिा अििग्नौ शtन्न् शंसति षगरं★न" तिा तांशश्रेणि। पिशी र तेंन। व्यि।ि -ि'एस ज्ञप्ति शास्त्र ५मा शत्रबा ि।ि झे ? सन्त का र्स िसंस्था गिरन। आि शन भी शैशू (ग इना गरे। निग-'ग्लश नचाँग। १ीर जश्त र शंकर । घाँव भांग बार् १शैशृशाः शंग भी शीशासकिशनि ग्ला (गरे तक्षशा भां नांग क्षशि;