পাতা:প্রবাসী (পঞ্চবিংশ ভাগ, দ্বিতীয় খণ্ড).djvu/৮২৪

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৬ষ্ঠ সংখ্যা ] গাঢ়তা জার প্রকাশের পর্য্যাপ্তি প্রায় সব জায়গার চোখে পড়ে। ब्रदौटानांथं \lyप्तtic sऐ श्निाप्य cष नष्ठाद्र छिद्रब्रह्छशब्र दोहब्र তিনি উকি মেরেছেন। সেই হিসাবে জগতের কোন শক্তিমান Jyotic नन ? ऐबकrबद्ध छख्रिब्र दञ्च ब्ररीौठाबांtष श्रृंॉन बां ब"tण यtनकटक দুঃখ করতে দেখেছি। ঠাল ভুলে ধান, মানুষের জীবন বিচিত্র, জীবনের সার্থকতাও বিচিত্র। তা ছাড়া অপরের পরিচয় যখন জাম্বর cश्रtङ शाहे ठषन थांबांप्लग्न छेक्लिष्ठ, निtछद्र cथब्रांज ब्रछि ३ठाॉनिक अकgषांनि ürग ब्राथl । अहे छांनी बांनौ शनडा कनि यथन জড়িয়ে গেছে সরু-মোট ছুটে তারে छौबनवौनं कि कुश्tब ठांझे वाटक नांtद्र ( s२>) ७१ब कि कृःtष छैॉब शक्tब्र ७३ पांद्रन बचद्धि दांत्रह, कि गङा রয়েছে এর ভিতরে, কোন অবস্থায় পড়ে মামুষের হৃদয়-তারে এমন ढंकाब्र ठd-cग३ मधtरडग्न जत्रूमब्र*ई कि अठा थशूनब्र१ नब्र ? ऍीब्रl गश् छ अविकोप्द्र झुरु निप्द्र अश्रण छजिप्द्ध cयप्ठ cणप्ञप्झ्न छैब्र। निकब्रहे छांनावान् । किख विनि cटनृनि क'tब्र निरञएक उणिाञ्च क्tिठ गांब्लtइन बां, जणछ अठरलग्न छछ या१ छैiद्ध जांकूण झ'tग्न छेütछ । छैiब्र cनरें जांकूजठांब्र७ छ दिइदिषांठांबू ७क 5श९कांब्र जौलां । बांबूtषङ्ग इंठिहांप्न ठां श्वकठिज७ चमडा नग्न ॥ ठांब्र छेन्द्र cश्वग्नां शैौष्ठश्चलि औठियांना अबू विब्रशैब्र कांद्राश् नब्र, 4-मवाल पूछे छtरह अक बन विब्रइयूर्छि । अझेनबछ कtवाब्र जानक कविठ cष श्ब्रांtबांटगब्र श्रांबूबिक छांबूक अबौशैrमब्र झछब्र =णर्भ करबरझ cमe aहे छtछहे । त्रौठlaजिएक जांबद्रा ब्रशैछनांtषब tव* कांबामबूझ्द्र अछटव बtणहिं । गौडिमांजा चम्नि औडजिबू छिठtञ्च ब्रूरौौटानांtशव्र बांषाiखिक সাধনায় যে গ্রাম ও ছয়ত গীতাঞ্জলির গ্রামের চাইতে উচ্চতর। কিন্তু ऋडेि भूछिद्र ऊर्ष९ कूणलद्र दtण बtन हद्र औठांछजिब्र ठिठरब ।। গীতিমাল্য औठlaजिब्र tरु कांद्व॥ औठिषारणा छ cषाश शांछ । किड cन यञ्चब्र *चन 4क बडून cबन। ७ छौड cवषनांब अव नब्र, ७ जडब छिडब्र थिच्न कवि झन ब्रम्न cरूबन-७क त्रिक भाडि (छोट्ष त्राकृ-cशन वृष्टिाङ ভেজ। টগর । গীতাঞ্জলিতে ঝড়ের রাত্রে কবি বলেছেন वांछि संtप्लग्न ब्रांtछ tछोशांब्र बछिणांब्र हेटjोक्ि জীৱ গীতিমালো বলেছেন cय ब्रांtछ tवांव्र छूम्नांब्रखजि ভাঞ্জল বড়ে छबि बारे ठ छूबि atन बाँबtब्रचrā ॥ সৰ ৰে হয়ে গেল ক’লে৷ নিৰে গেল দ্বীপের জালো जांकांनं शंitन हांछ बाक्लोtजब कांहॉब्र छात्र । छककांtद्र ब्रदेयू *'tछ चर्णन अॉबि ॥ कछु tरु cडांबांद्र छब्बषात्र] छtरे कि अॉनि ? রবীন্দ্রনাথের কাব্যপ্রতিভা 5शशविध्रुवप्रे षtः न । अत्र ग्झाव ओबड মুম্বভূতির সকাল বেলার চেয়ে দেখি দ্বাড়িয়ে জাছ ভূমি এক্তি, ঘরভরা মোয় পূজ্ঞতারি यूंश्ब्र शंबि ॥ (७१) कविब्र अच्छब्र बाषा भूक शाब्र, दिख रूखाब्रव्र ठरण cरूमन अकः তৃপ্তি গীতিমাল্যের অনেকগুলি কবিতাকে সরস ক'রে রেখেছে। बांबांब्र ** *ष छांeब्रांtठहें जानन (१) cकॉलॉइल प्ठ वांइ* इण এবার কখী কামে-কানে। (৮) কে গে। অন্তরভৰু সে ? श्रांभां★ tछाछनां बांभांब्र ¢दान স্তারি ত্রুগম্ভীর পরশে । ভোরের বেলায় কখন এসে পরশ করে গেছ হেসে । हैंलांषि ভক্তের ক্ষে সঙ্গোপনের পূজা সেইটিই গীতিমল্যের মূল স্বর। কবির रुङ कष श्ठ इःथ शष्ठ भर्षकछ| रुङ अनन्त ७कोछु क'ट्द्र छैiएकड़े डिनि वजहब-- (२२) (es) লুকিয়ে আসে আঁধার বাড়ে छूथेि वांबांद्र बङ्ग । লও শ্বে টেনে কঠিন হাতে ভূমি আমার আনন্দ (৪৭) গীতিমালো কৰি বড় খাদের পর্দায় স্বর বেঁধেছেন ; ভাই তা পূরেभूब्रि छैनएखांनं कबूतांब बछ भूक्रे प्रबशैब कांन करें। cगरे कांन शंकुरण गैौटियांtजा भूवहे अकÉ जडीब छूख जत्रूङद कब्रां यांब ।। *रे पाप्मन्न भर्षांtठड्रे नमङ्ग-नयन्त्र कबिब्र बाबद्ध कषो कि ब{=ण*ों इ'tा cवtछ छेtgरह ॥ “अहेcव छूत्रि” अरे कषाझे ৰঙ্গৰ জামি ৰ’লে কত দিকেই চোখ ফেরালেম কত পৰেই চ’লে । छब्रिzबू छ९ कक्र शंब्रॉब्रू "डाइ अझ"ब्र (टवोङ रुद्दह रुम्न * क३ छूत्रि कहे” s३ *ञानब्र নয়ন-জলে গলে ॥ (১৪) 事 窜 家 寧 षनेि छान्छब जांशांब्र किरनब्र वाषा তোমার জানভীম । ¢क cष जांभांछ कैiणांब्र, बांधि कि छiनेि डांब्र बांध ॥ 率 率 率 輕 ७ई cबशनांब्र बन cन tरूtथांद्र छवि छमश्र श'tब्र ॥ छूरन छtन जॉरह tवन

  • ाहेरन औदन ख'tइ । झषं षीका नःि शश्ाण धव। ৰাজাই তারে ক্ষতে-কণে,

अठीब्र छुटा “कॉर्डेरन, छाँ३एन," सांtञ्च चबिश्चांभ ॥ (**)