পাতা:প্রবাসী (পঞ্চবিংশ ভাগ, দ্বিতীয় খণ্ড).djvu/৮৪৫

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b е е প্রবাসী—চৈত্র, ১৩৩২ [ २०:ं खांशं, २ध्रं क्ष७ “শোনো শোনো ওগে৷ বকুলবনের পাখী, সেদিন চিনেছ, জাজিও চিনিৰে লা কি ? श्रृंब्रुि षांtÉ बर्षि cषtठ इज़ dहेबांब्र খেয়াল-খেয়ায় গাড়ি দিয়ে হৰো পায়, শেষের পেয়াল ভঞ্জে" দাঁও জে জামার ैtब्रब्रू छूद्रीब्र गांकी 4कfपटक ध३ cदननांबद्र चाकूज७ जांब्र अकfाक दिवाप्नब्र शैखि —“আমি ত এই বিশ্বের উচ্ছসিভ ভ্ৰানজের পরিপূর্ণ অনুভূতির जीवनtकहे जांबांब्र किब्रिध्ना गरेिंजांभ," नहिटल 4हे बौदन-जकjांब्र '*ोंकिंtन tवणांश' "পীত উত্তরীয়ভলে লয়ে মোর প্রাণ দেবতার স্বহস্তে সজ্জিত্ত উপহার बौजकांड यांकाष्ठंब्र दोल ভারি পরে ভুবনের উচ্ছলিত হবার পেয়ালা" गांबाँदेंइ जांनिtरु £कत्र ? এর পরে জমি ৰে কবিতাটির উল্লেখ করিতে চাই, কবি তাছার नांवकब्रन कब्रिहॉप्इन ठरणोछत्र । अरे जणूर्क कविठोक्लिष्क इव अवर शनिप्ठ, नचनजछांछ aबर द{नांछत्रौष्ठ छाप्दब्र एच यकांन बब६ অনুভূতিতে উৰ্ব্বণীর সৰিও একাসনে স্থান দিতে আমার একটুও দ্বিধা नोहे ॥ ७ढ़तंजौtछ कि श्रृंख्रिgङ बशछ कि ज६वड ¢कीलtण श्रृंच बांबां क्षनिएक निब्रजिठ कब्रिब्र, चशृर्क कन्ननांद्र छांदएक ब्रशंघांब कब्रिइ कवि cनोचाशब ठौड चषक नोड s:निर्वण जत्रुइष्ठिरक यकीन कबिहाइन । “ভগোগুজে"ও প্রকাশ-ভঙ্গী একই কিন্তু অনুভূতি হইতেছে ভারণ্যের সদানন্দ প্রাণশক্তির। কি করিয়া এই অপূর্ব বর্ণনাচতুৰ্য্য ও প্রকাশভঙ্গী এতদিন পরে পুনরায় করিলেন তাহা ৰাস্তাৰিকই বিস্ময়কর। SBBBDDS BBDD DD BBB BDDD DBBD DD DD BD এই ই— - कitजब्र चौचब्र मtश्चtब्रह श्निांtदब्र शांठाब्र छ यांशूदब्र छौबटनब्र यालाककै विानब्र कषारे निषा षष्कि। ठिनि कि कवित्र 'cशेवनcवन-ब्रtन केहण निनष्ठजिब्र' रूष छूणिज्ञां निंबांटाइन ? tनक्निéणि कि जवाङ्ग छांनिब्रl निब्रां८छ्, बl 'cचध्हांछांदॆी ह्खम्न ब्रि cषणtब्र बिईत्र cश्नांब्र' दिइठिद्र पांप्छे छूविद्र cत्रण ? अकश्नि cनरे cशेवप्नब बिछणि প্রাণশক্তিতে কি পরিপূর্ণ ছিল—তাহার ভোলানাথের স্বত্ররূপকে cमौनार्दी गांबांश्च विद्वांहिण, छषङ्ग-नित्र कांछिब्रां जदेब्र शtठ गखिबां वैनत्री छूजिब्र क्ब्रिाहिल : डांद्र छगनाटक 'श्रौठबिउ श्यि बङ्गरक्टन' निश्लिष्ठ कुख्रिह्म। ग्रीवांश्ब्र चणिोन विश्वां विश्वं विँश्च॥ श्रूषांब्र জ্যোতির্বর স্বধীপাজটি ভাষার সম্মুখে তুলিয়া ধরিয়াছিল। মহেশ্বরের ७३ बब cनोगाईब्रिगरें कवि-शवब्रहक cयtन € नांtब, ब्रtन ● cगोमरर्षी चद्विब्रां क्ब्रिांहिंण । क्रूि कबिंब cशौबटबब्र विनeजिब्र माज-अष्ञ tछांणांनांtषग्न धरै जब कृगंक ८क गरदद्र१ कब्रिध्नां जऎब्रांहिज ? बल्लेबांtजब ठां७व बृह्छा 'चत्रौछ जबौtछ' 'चवब्र गषरद्र' श्रृंबिंशृ{ cबाडिर्बी श्पाणाबक्ने कि झुक्लिर्न श्श्त cत्रण ? कविद cबोरान नूख विनछणि कि नि:च कांन-tवनांषौद्ध बिट्टयांप्न चांडूजिब्रां ॐfज ? नां, cन निखणि शूख हरेद्रां वांद्र बारे ? बtश्चtब्रव्र cयब ७ cनोचtरीब छिंद्रखन क्लनं७ विएनदिछ हा बांदे-चांtइ छांब्रां ? "वप्र बtर, चांuह पठांब्रां ? निtब्राह खांtबच्च नरहब्रिव्रां विश्रूः शाश्वत्र ब्रांप्ल, निनाचब यांrष नषविश স্বাখে সজোপনে।” ৰীেৰনেয় সেই প্ৰকারণ-আনন্দ-উৎসে সৌদর্ঘ্যের সেই উচ্ছসিত जांबन-tवत्र ‘छन्छब्र बिङ्गछ निईचांtन' लोड इ३ब्रां चांदइ। क्खि 4 ठणना नि किंद्रकोण इोघ्नौ ह३ब्रां षांकिएव ? cयौदन कि फ़ेिब्रकांण वनौ हरेंद्रां षोंकि८ष :-4ब्र कि जवनांन हरेरद नl ? हरेकरें-4 छन्छब्र "क्रमणद्र बृठाप्वांप्ठ थांबाब $प्रख चषनांन डूब्रड छैज्ञांटम ॥ वनौ tषौवtबब्र दिन আৰাৱ শৃঙ্খলহীন বারে বারে বাছিক্কিৰে ৰাথ বেগে উচ্চ কলোচ্ছলে।" কৰি এভপস্যাকে স্থায়ী হইতে দিবেন না ; তিনি যে অপৌত্তঙ্গ दूल, चtáब छकांड । cउiणानांtषब इणना ठिनि बांप्नब : cनरे सक वकणषांद्रौ tवब्रांनी छ-मjांब्र जांप्लांटल जांच्चtनांशंन कब्रिव्रां वृश्चद्बब्र गांषक कविद्र हांtङहे ठ श्रृंब्रांबद्र कांबबां कब्रिप्टयह् । cनहेबछहे “ৰাৱে বারে জরি ভু৭ সন্মোনে ভৰি ৰিবলে’ जांकि कवि मछौtछब्र हेटाछांज निद्रा जॉनि छरल? স্বত্তিকার কোলে।" नाश्चरत्वद्र छगमा उषन छविद्रां बांड : ठांब्र छिठांछत्र, बिछूछि সমস্তই খসিয়া ৰাৱয় পড়িয়া ৰাম, পরিবর্তে দেখা দেয় পুষ্পমাল৷ ” बहर्षिन दिtष्हर्षद्ध गtा कविब्र &थनांtन जांबांब छैबांब्र गtत्र ॐां★ बिजनcगरे बिलानब्र विक्लिब इक् िकविब्र बैौ१ीब्र थांबांब इब्र बाँत्रां★ : यांङ्ग “কৌতুকে হাসেন উমা কটাক্ষে লক্ষিন কবিগানে cण शtना प्रविाण वैविौ कुश्मtब्रङ्ग बब्रशबि-नांtन কৰিৱ পরাণে " रुधू जगब्रग कांबाश४५ क्रिक श्रठ न cनषिद्रां यदे कविठ#एक यश् िब्रौञ्जनांtषद्ध कविघ्निरखब्र छैणब्र यठिकनिष्ठ कब्रिब्र बरे कषां वणि ¢ष "ठरणांछाछ” कविसङ्ग निtजब छ*गjां७ चत्र कब्रेिब्रांtइन फरव भूत छूण कबिर कि ? जांबाब बान रत्र कविधक् अप्रचाबद्र छानाछात्रज्ञ थाक्लॉरण निबद्ध aहे "निष्ठा नूव्रबद्र शौण क्लेिख छब्रिहr" cबषिबांद्र थांकूलठांब जगडे जांवब** हिब्र कब्रिब्र थtकदांप्न जांनन ब#दांनीके बृ]खं ख्रिष्जन । - কৰিচিত্তের এই পরিবর্তনকে শুধু তাহার কাব্যকথার মধ্যেই খুজিলে कणिtव बl । छांव e कषंi cव-क्ल" शब्रिध्नां,cष इन ७ फ्षनिtछ चांच्चथकां★ करब्र, छांशंब बरषT७ cनü शका कब्र बांब्र । “ठरणांछरज” जात्रि छांश बनिtठ cछडे कबिब्रांझ् ि। तपूcनरै कविठष्ठिरें नष्ठ : “शूद्रौ"ब्र DDDD DDDDD DB BBB BB BBBBSS SBBSS BBBBS HDBBSBBS BBD DDD DD SDBBBS HDBB BBS “ब्रांबि,” "sषांब क्ब्रिांe cबांta” बडूख्द्रि कषों बङ्ग१ कब्राहेब्रा बां क्ब्रि गांटा न । दाखविक ‘शूदबौ' नष्क्लेिरण वप्न हा झचब अभट्ठ७ कवि আৰাৱ ফিরিঙ্গ আসিলেন। ‘ৰলাকাতে অবগু একটা নূতন হল ●यथश ऋडिजांछ कब्रिज : डांब्र बप्प! *कों विनूण ऋछि, छेकांव अंठिzवज, कांझ] जोरह कांशं शाँदेशांहि tगरे जांनां जौबांद्र बtषा वकtनब्र *कt sषण चठ्ठखि, cनरे चट्रसिद्र शंठ श्रेष्ठ बूडिब्र तकनविशैन चाक्त्र ७ कहन गनखरे अकन गरेिशांप्र, सगू झल नद्र-च्प्र७ ।। किछ ख९णाचeकिरणब cवन ♚ककै अखांब७ छांहांब्र ऋषा ब्रहिब्रां निघ्नांwह । ‘सृणांकांब्र' हन-ग्रंख्रिछ ७ नंख्रिष्ठ बनöरक वर्षीव्र श्रृंॉठिा बशैब बछ छेकांव cवtन dजिब्रौ जरैब बांब किड नंऋछद्र छब्रां नरीब tवबन नोख, ग१क्छ नखैौब्र जषक जडनंछिद्र छब्रनोब्रिख जौणां जांग्रह