পাতা:প্রবাসী (পঞ্চবিংশ ভাগ, দ্বিতীয় খণ্ড).djvu/৯০১

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ba☾Ꮼ श्रृंघ्रिं★ह क¢¢न, खैशंcछ अख छl ७ जांञ्चवक्ष्ञां सl विषjांब्र ८णनं १iकिठ गोt५ ; छिनि बनि ७ यांर्षनावांद्र! यनद्र वा वनौछूछ इनc#tछै। बश्वकांडटूब अरें बांठौब्र थछजिङ अङ निब्रमन कब्रिग्नां८छ्न। ॐहांब भध्ठ श्रेषव नर्दिछ, मनिङियांनू. ८थबषज्ञ, वक्रणयन्न, छांद्रबांनू, भूf *ब्रम शचब, भूtनाब्र शूदक्षéी ७ गtिगब्र प्र७तेिषांठा । जीवब्रां यषम थteद्र मलय अथाizा (ess-se श्रृंü) cमtäiद्र बकठrवद्र किकि९ श्रृंब्रिकङ्ग ब्रिांछि, बठ १द 4इप्ल बषिक रुजिषांच्च यtब्रांजन नां३ ” (२se श्रृंछे) छtव अबांटलांछक शमेिं बtजन, 'बकश्छख़' अंक 4कञांज खांब्रउँौन्त्र चरैध छदांटमब्र भ:वtवई बाराश्tब कfद्रप्ठ इश्व. ८कtन ६षtननिक *िनिश्ा ब| बश्iशृङ्गंशब्र शिष्ठब्र विांश्IIग्छ Gश्ांश् चंद्रोशं षटैषि अपि बांभांब्र बिक्रघ्नरें अभंब्रांश् हईब्रांtछ् । किख नछारें कि 'छांब्रडौश्च बभनlन विसक श्रtक छषांन", ७षः 'मर्कअथर्काच्न ?सङणक-श्विक्कि छ ? গগুক্তি ছাগোগোপনিষদের এক "অপুৰ্ব্ব সংস্করণ প্রকাশিত हरेब्राप्इ ॥ 8शं "वैदूछ भtइनsख cवषांखब्रध्न क्-िछेि कईक भक्शt', अविरुण दत्राश्वांश' यकृछि मझ् वाषिांङ, 4ावर भछिठ "जैौठांनांष ठस्छूष१ बईश १७१ी’ि श्ठरि गश् मणiशिष्ठ ।। 4ं मरश्वं विश्व "बकवारवद्र इ३ षाहा" नामक यवक उचङ्कतन भशनष्ठ णिषिब्रांप्श्व, cष यlaासृका बाङमछावाक३ जवृठञ्च बजिब्रांtइन, *** “वांछावाकाब भड इहेtठरे cष cगोप्लणांक ७द्र नंकब्र थङ्कठि पांलनिकनt*रु निक्र्विt*द अरेश्छदांश बदः जङ्गबांण विकविठ इऍझांtछ ठांशं जहtछहै cदांसं शांछ।” পক্ষান্তরে প্রজাপতির মতে ব্ৰহ্মলোকে উপাস্ত উপাসকের ভেদ থাকে , 4द्भर हेछ “णहेद्वtiहे cछकां८ष्टववांनो, निक्षिप्न बदैवठवांtनग्न सिtब्रांपैौ ।” • এই দ্বিতীয় চিন্তাধার হইত্তেই যে আচাৰ্য্য রামানুজ প্রভৃতি দার্শনিকग्रंtर्णब्र विविडेtषडयांव विकनिष्ठ ह३ब्रांt६ ठtश नह८छरै cदांक यांद्र ' (*lմ-Գլ- յել ) ठवडूषन भशं*द्र बणिrख्रश्न, छांब्रटोब बकरांप्नब अtवठ 4दर tषष्ठ यां दिश्रिहेitवठ, ७ई इहे थांब्रां । जधांtणां★कब्र निtछद्र नांtध cष-अंइ थकाब्रिख श्ब्रांtछ, ठांशांद्र छूमिकांtठहें ॐांशं★ भtठब्र यठिषांक ब्रश्ब्रिltछ् । eरे उज शंtवTांtनाब्र अषम डांग थकनिष्ठ श्द्र : मरश्नवlदू 4 यांद९ ठवडूष१ वशंनtब्रव्र मठ হইতে আপনাকে বিমুক্ত (dissociate) করেন নাই। ममांtणांछक cāरु कब्रिञ्च शि¥िब्रां८छ्न, "ब८कद्र नाज-भtव जगदषण जज निङ लीचळ भांत्रबांच्च दéवॉन ” ई, अंइकांब eननांtणाछक cष झबांटजद्र नष्ठा, ठांशं वशे अठरे यछांद्र कब्रिञ्च बांमिtठtझ् । बांटकब्रl"खtबङ" खां “१करववांचिडौब्रध्” उtछब्र 8णनिक : जांबांब ॐiशांब अकबांगtब उनंदननौठांद्र "बरछांनिष्ठाः नाचष्ठांशद्रः शूबांनं:” ऐंठाiषि दांतीe अकांद्र नश्ठि चांवृखि कtबन । সমালোচকের সছৰোগী পণ্ডিত গীতানাখ-তৰভূষণ প্রায় অৰ্দ্ধশতাব্দী কাল नानां भूषक बक ७ बौशांब्रांब cछनांप्लश यठिणब कब्रt५ शांगूंठ ब्रशिवांश्च । "cकीवृन्नई नषङcनवडूण" अरै बांकान्नै छरजष कबिना गवांtणांछक बनिtख्रश्न,"*३ छांव जडाल बांनंखिबनक ॥ ५३ कपिच ८करण बर्ष हौन बाह-हैश जवां९viांधक ” थांनंखि कब्रिtण कजि८ख ८कन ? 4३ “बर्षशन, अtबां९णंबक कविघ्न”, cभ्रंdiब निtबछ, जांभांद्र नग्न । छिनि "$बाहेब्बरमब्र” ऋ* अकब्रr१ णिषिबांtइन, cष बहे विष गिंडी बांब्र'ब्रफिंड, नीचङ cनद***ब्र यठिञा' (Ton aidion theon gegonos agalma) (Tim (37e) I ऐहांब्र भई आई cष, बनं९शिष्ठl *ांचड cषदनप्नंब जांनएर्ल (वां ॐांशक्tिनब्र প্রবাসী—চৈত্র, ১৩৪২ [ २&* छां★, २घ्न थe जइङ्गठिtठ) *श् छत्र९ऋडेि कब्रिह्मांtइन। cछणांtबत्र बtछ बहtण ‘नांवड cनवर्णन' गएवद्र जर्षcझांझेनबूर छिब बांब किङ्कई बप्र । (Plato, pp. 283, ०40) *~füगe cछशांप्इब्र मरिछ ७कवठ ॥ Groek Thinkers, Vol. III. pp.209, 212, 213. NKkMFFTA (El ७३ दाशांब विद्ररक जगह मनके शांथj जांमिब्रl ठेगहिठ कब्रिtदन ? किरू बांधि 4प्करज विमरवांगी भङांषणिद्र निबिढ़ बझरना 4ई हुईजनष्करे পথ-প্রদর্শক কৰিয়া চলিয়াছি। ফfন্তুনের প্রবাসী कांडरनद्र नरशांब चांप्लांक दिवब्र दूक ७ cनांकान्नैन' । रेशांप्छ ममांtण:छक कछकछणि शक्रङब्र थश्र छैषांशंन कब्रिब्रांtइन । cन छणिब्र विकांब चांदशक । ठ९णूर्ति इ३-अकs यtब्रांबनोद्र कष वजिद्रां ब्राशि । &थषष कéषा वक्रौकांब्र। मयांtजांछक ठिन इरण चांभांब बभ প্রদর্শন করিয়াছেন। ( ১ ) ত্ৰিবিধ তৃষ্ণ विछतृठनं हांब बांबि tष वर्ष कब्रिव्रांझिणांव ७ छनt°क्रt नशांप्लांकटकब्र वर्षई बषिकठद्र बूख्रिगूङ • ठिनि ठाशंद्र मर्थक थषांनंe क्ब्रिांtझ्न । बांभांद्र यtबब्र नकल मरलग्न १९नe वांद्र नाई, किड cम-कष॥ ११itव ভুলিব না। (২) আর একটি স্থল ॐtइब २४s श्रृंtई cछविबशसब्र वत्रूषांtा ‘षांश किङ्कब्र यन ७ चांकांब्र जांtइ' हेठliर्षि बांक/* जषtक बांभांब्र निtछद्र भtनझे ७कB| अछूखि हिल । नमांप्लांछक यभां* थtब्रांनंगएकtब ३शांद्र मलएँ कब्रिम्लांटाइन ? (e) गकाष्ट्रनििष्ट्रेि जात्रि ऐशब्र वांत्रजl कब्रिब्राझ्णिांश, “बांधि बांझि, अरे बांखि " गशांप्लांछक बई थर्ष बषांच्चक वजिब्रl निर्कबिन कब्रिव्र नचाँ*द्र कूक्लि यकांब जर्ष ठेकठ कब्रिहांप्इन । यज्ञ किंबनिकांप्त ( se०० शृः) अ३ कूक्लिकैद्र gtझर्ष cप्रषिणांव, शब्बीर अछ यवां५ निष्यrाबन। रूिख् छषीनि अकül उष वणिtठझ्।ि जांवि घन गरtषांधटबग्न छाणिकांइ ॐ कॉर्शिले नल बादशद्र कबिब्रांहि। जबारणांकक पनि छहांब्र इtण नरक्रिस ●कā किङ्ग बजिब्र भिष्ठन, टtव छांण श्रेष्ठ ॥ जांब cवांtप्लेब छै*itब्र जt{ शीर्षकाe tव धृष cरुनै वैiछांदेडरझ, ठांशंe बटन इब्र ब्र! । चांच्च শব্দটি অনেক সময়ে নানা অর্ধে ব্যবহৃত হয়, ইহাতেই বড় গোলযোগ षtछे । IP. T. S. चलिषांtन गकांब्रशिक्ने छैब बकÉ जर्ष, the heresy of individuality. बई ठिनाई गरrनांषप्नद्र जछ जावि नषांtणांछकाक जकूजिक कृठळ७ জানাইতেছি । ५षन इश* जरांडद्र विषtइ किशि९ बलिइ श्रृंरब्र काञ्चकै खङ्गठब्र সমস্তার আলোচনায় প্রবেশ করিখ । ( s ) चांशांब बिझांब्रानि जांहांद्रविहांबांषि *ीर्षक जांtनांठवांtछ **ांनर्णर्षि ह३ष्ठ ७क इण èक७ कब्रिह नबोप्लांछक वणिाख्रश्न, “अंइकांद्र अषत्र बांकाकैद्र जत्रूषांश করেন নাই।” এখানে সমালোচক ভুল করিয়াছেন। ২৩১ পৃষ্ঠার यषब इज छैशंब चक्रूषांश, अवर जांबांद्र बtठ बरे चक्रूषांतरे छैक । ( २ ) नब्रक नमांtणांछक वtणन, “cits वांछविक जबख नब्रक शांनिप्छन न!".