পাতা:প্রবাসী (পঞ্চবিংশ ভাগ, দ্বিতীয় খণ্ড).djvu/৯০৫

উইকিসংকলন থেকে
এই পাতাটির মুদ্রণ সংশোধন করা প্রয়োজন।

Ե-Ցe नबांtजांsक “बिठा जखो” दिशा छेषांब हरेष्ठ बृएकत्र छहाँ छैvirनन Şक७ कब्रिब्रltझ्न । ८म-नचरक बांवि वजिtछ s३, cष (०) छेखि इक्वेब बोथा। अषन७ मिकिङ विङ्गीन्जिङ इच्न बाई । बूत्कब जड़ दह लड छैगtषtनव अश्डि विलाईञ्च श्रा# कब्रिाज इंहाँ cष बक विदद्रक ॐख, ●बन थडौछि छात्र ब । (२१ छत्रांब (बद१ देठिबूडक) विनशनिप्लेक = निकांबनषूहब नवबड़ा ब्रक्रन। gद्धि छू* cष बृएकत्र, छांइ थशांतिङ कब चांदञ्चक 1 (०) विtनवtनद्र नाथाइक्वेटछ विt•tषाद्र नामा बवशांब्रिङ uB BHH KS gDD BBD DDBDD DDD BBBBB खांबांद्र अठिक्षनि त्रांप्ल । ( जtइब २s* श्रृं*ात्र ठाझांब ७क ध्याइइन eगड हरेंब्रांtइ ।) हैझांटठहे निर्तिाव ख खटक६ aङछ बिच्नह इब्र नां । (s) बिर्सीनं ● वृत्र s कहे बड़" हेहां अधान करिबांब्र छछ नवांप्लांछक *कब हई८ङ यांइ छैक ठ कब्रिबांटकन, ठाइटिष्ठ cभां८कब्र कथा चांtझ. किरू विक्र्वप्नंब कथा नाझे । विकर्षीन ७ cषांक ८ष बक, टांझांद्र यथान नॉडेजांब | ||

  • ब्रिtतzष मथांtजांठकtङ कtबरू5 Gोध खछांना कब्रि» । बूरु वर्ध्नि गब्रजक्र भानिrष्ठब, टtन निभान्नित्रष्क उक्रटख निक cजन नारै ८कन ? डिनि चब६ वजिब्रांरक्लब, “cह श्रांनन, बांभि बाथाब्र पtá घञ्चब-वांश्aि cछष बा डांविद्वl ठेह थठांब रूद्विब्राझि, ८कtन ८कांन७ चlछ:र्ष ८षयन बक-♚कü ठख भूडेिवक कब्रिब्र ब्रांcथन, छपीजह्छद्र नडाअनूtइ cनब्रभं बूडेनक किङ्करे बांश् ” (क्झांनदि।२२e)

शिनि उकडtरुत्व छात्र नब्रभङच बांबकवtर्वत्र निकtछे गरबां★न ब्रांषिtनन, ऍाहांब्र भूष कि aछथ। cनांछ नाग्न ? ३ । दूक ॐाशांव नावब-यनीगाrछ बtकाश्रृंगबांब इॉन ब्राषिजन न cकन ? ॐIशत्र नरकtण छIब्रt छ डक-चङ्गणं ७ बकां★tनन विषtब चांटलांछन बयक्रनिड हिल ब॥ ; डिनि बांश्रौषन 4नचरक नौब्रग अरिष्णन ८कन उीशब बडrत्र निश बांनण, उभानि ७ वशंकांङगई वl Gशांबं पूंश्च वृश्चािंजन cश्न ? ७ । मशनब्रिनिर्विप्नंद कtब्रक नंठांची भtाई tदौtरुद्रां बूकरक उदकद्र भिश्झां ८न थश्रिडैछ कब्रिल ८कन ? ठांझांब॥ cकब छ्गैर्षकांप्लe बूकि:छ गाविण न, cष बूक जक भांबिtडन, श्छद्रां ॐणागबांब बांकाव्क छब्रिडांर्ष कश्विांद्र बछ दूरक उत्कद्र चक्रगांबणि बांtबन कब्रिवांब e:बांबन ना३. ठ९श्रृं:क ● की जकई शरष? ? s । दूरु ष१ि जक्रवांशे शिलन, उरव श्नूिर्ण१ ॐांशंद्र बिाबांशेौ श्रेन cकन ? उ१ गतषाडवूनक यशरिषिब निनांब अछ ? •क्लविज ८कझ्इं étइtब्र षtás * छौद्गङ५ ॐ९tनग्न नखांम श्रृंt३ण नl, हेझांब्र कांब* कि ? e । “निर्विीन, cषांक ● गब्रजक अकई वञ्च * टtव नकब cरोौक**टक छांब्रछवर्ष झई८ड सेि siछिछ कब्रिदाग्न खछ $6छ। भक्लिष्ठां जॉजिtजन cरून ? cष-वtáद्र बर्दइएन *शब अश्डि 4बन निशू बेका झिण, ठांशkक इनकूठ ● इशार्थिछ कब्रिवाब थब्रांन न गां★द्र चिनि छांश बrरूवांtद्र tष* ह३८ङ बहिकृछ कश्विाङ्ग छछ शक°बिकब्र इहेtणन, देशांब्र ? אf זיזיאס ७ । • **र्षीइ लागि माहिडा Gाघ्र वांब शंक्वांब शृ♚ मूहिड इरेशांप्s । हेहांrङ बूकब उकदिदंबक छडि कब्र गीeब्र त्रिज्ञांrह ? खैiशंद्र अक-4कॐ ॐम* कछवाञ्च कङ हांप्न सजिएउ cत्रtज यांब्र ७कई छषांछ विदू छ ब्रहिब्रkइ ॥ ८पौरुषtáब नांद्रङचtबांषक वार्षांप्नबू न शाi नां३ । वषऽ उक्रमांग गरचौब प्लेङि भूब्रिब्र गीउब्र कüन ; अषः ८ष इहै-4ककै जबांध्णांछक यlख इङ्गेब्रांtइन कजिब्रां यtन कब्रिtटrइब, छांहांबe 'खक' नच झेfब्रश्छि हब नॉरै ॥ ७ई नबञ्चांब जबांक्षांन ¢कांपांज़ ? जघांtणांछक इद्र cडां बूकब बकवांप्रयष्ठिदाबक, बाइe यवांन गन्धृशैड कaिब्र ब्राषिाitश्न, cमश्रण जग़ानि यकांनिठ श्श नार। প্রবাসী চৈত্র, ১৬৩২ [ २१= कt१, २च ष७ चांक्लfहे ज्ञांछब्र बद१ङ्ग दग्निष्ट्रl cय-बेिबरब्र दिटर्क छबि ब्रा जांग्निष्टद्दछ, टtझांब नि:c*अ "बौध'६मांब्र छछ &ीबt*श्वणि मांशांश्चtशृङ्ग cञांछद्र कब्रां षङ्घमौग्न । छ९शृष्कर्ष अकÉ क:¢j ७कांइ चांदञ्चक । छांइ बई tरा, जबांtकांक्लक पूंटे-विषब्रक बांप्लांऽनांब्र बाहेtवट्जरु थछि cष-जभांटलांठब-थ५iजौ यtग्नर्न कāिब्रांप्इन, तिनब्बनिक ७ जूबनिकँकe cनहे rत्रांजौरङ गंग्रेौक कब्रिts ह३रय । (s ) निक्केकाङ्कङ्गीठ शंइलजिव्र उद-बिग्नि, (२) अष्डाक जt"द ब्रध्नाकांन निर्कीदन, (७) cक:न् cकांन् गांभाॉन बूकब. cखांम्खनि थकिe, ७ड़े थtश्वत शशीयथ निच्छखि-a३ ठिनÉ विषtब्र यैकयtटा 8°नौठ छड़ेरळ ब नाब्रिएल बिर६थौ नकदग्न रुजू बांगविट७l कब्रिब्र डांडदान् इहेश्वब ना । दृकएक उकदाशै बनिद्रां बदन डब्रिवांब छछ कवृ-1 र tनरकछ ६िख ठTांकूल झड़ेब्रा ऍfषांtछ । चरकब्र बैबूख धtछ=झछ cषांव ब्रहणग्न शक् िखैisांन्tिणब नब्रिङ्गखिन्tषाबद्र बडिritव टछङद्र जधांप्लांक्रमांब बिब्रभtवूनttब्र वृरकब खकदोष अत्रब्र चैङिहॉनिक छि'खरङ्ग थटिछैित्र कब्रिब्र शांड्रेष्ठ शांtबब, erव डिनि डारठबांगैश्न अकृजित्र कृठछठांत मात्र-मात्र त्रषद्र कौर्डिंब अषिकांग्रेो ह३tवन । সমালোচকের প্রত্যুত্তর গ্রন্থকার সম্পাদকের বিরুদ্ধে অভিযোগ করিয়াছেন, যে, তিনি যথেষ্ট সময় পান নাই। কিন্তু তিনি তিন সমালোচনায় পৃথক পৃপক জবাব দিয়াছেন। প্রথম সমালোচনার জবাব দিতে সময় পাইয়াছেন আড়াই মাস, দ্বিতীয়টির জবাব দিতে সময় পাইয়াছেন দেড় মাস, তৃতীয়টির জষ্ঠ সময় *ांझेद्रांटकृन se शेिन । আর মহেশবাবুসময় পাইলেন আড়াই দিন। তিনি ১লা মার্চ সোমবার ১-টার জবাব পান, প্রত্যুত্তর দিলেন ৩রা মার্চ বুধবার সাড়ে তিনটায়। * ●थषभ वकुवा औक ऍफ्रांद्रण विषाञ्च शूनब्रांग्र वांद्रशांकन वनांबश्चक । ইহ সন্তা, প্রবন্ধের কোন কোন স্কুলে আমি ইংরেজী নাম লিখিয়াছি,কিন্তু প্রকৃত প্রাচীন উচ্চারণ কি তাহা যথাস্থলে আলোচিত হইয়াছে। বাংলায় কি উচ্চারণ হওয়া উচিত গ্ৰহণ নির্ণয় করা অত্যন্ত কঠিন। তবে নানাদিক হইতে বিচার করিয়া বলা যাইতে পারে যে (১) d~ড, (২) t=ট,

  • অধ্যাপক রজনীকান্ত গুহ মহাশয় সময়ের কথা না তুলিলে ভাল হইত। তিনি যে-গ্রন্থ লিখিতে ৯(নয় )বৎসর পরিশ্রম করিয়াছেন,তাহার সমালোচনায় মহেশবাবু সভ্যসভাই ঠিন মাস সময় লইলেও কিছু অস্কার झईठ ब । किजु ठिधि वांछविक ठिन यांन शब्रिब्र! ममांtजांकन कtब्रन নাই, কয়েকদিনের মধ্যে করিয়াছেন ; আমারই তাহা ছাপিতে তিন মাস লাগিয়াছে। রজনীবাবুর বহিখানির দ্বিতীয় খণ্ড ৮৩১ পৃষ্ঠা পরিমিত। উহার পৃষ্ঠা ও অক্ষর যেরূপ, সেইরূপ পৃষ্ঠা ও অক্ষরে ছাপা হইলে মহেশবাবুর সমালোচনা আনুমানিক • পৃষ্ঠা হইত। ৮৩১ পৃষ্ঠ গড়ির তাহার সমালোচনা করিতে মহেশবাবু যদি বাস্তবিকই তিন মাস লইতেন, তাহা হইলে e• পৃষ্ঠা সমালোচনা পড়ির তাছার জবাব দিতে রজনীবাবুর সাড়ে পাঁচ দিনেরও কম সময় পাওনা হয়। কিন্তু তাহার নিজের কথা जष्ट्रमांtब्रहे ठिनि ss शेिन मधब्र श्रृंहेिबांtइन । जांभांब्र विष्ठौञ्च वृद्धया धहैं, যে, কোন কোন পণ্ডিত ব্যক্তিকে সন্তুষ্ট করা বড় কঠিন। গ্রন্থ-সমালোচনার সমালোচনা আমি সাধারণতঃ ছাপি না । এই নিয়মের ব্যতিক্রম করিয়া রজনীবাবুকে দীর্ঘ প্রতিবাদ লিখিবার স্বযোগ দিয়াও আমার বিস্তৃতি নাই। সেজন্য প্রবাসীর অনেক অতিরিক্ত পৃষ্ঠা ছাপিতে আগেকার ও

वर्डभांब यांप्न धब ७ बर्ष बाब्र७ कब इग्न नांदे । প্রবাসীর সম্পাদক ।