পাতা:বিশ্বকোষ অষ্টম খণ্ড.djvu/৩৭৯

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मणfम · -o-o-o: { कब्रtगांगाब गबांषिरख्य, क्लिद्राप्राण, cङ्गल कtéब्र अtछन, छचखांन, यम निब्रमांनि, शानि, थांब्रगी, नमांबि, निकि°षक, विलमिदtन निब्रांरूद्र१ वङ्गङि aबर्विड हदेब्रांtइ । नष्ठबणि बाङ, वफ़ विश्लडिडस् चैौङ्गठ शहेब्रौप्इ ॥ ५३ दङ्ग विश्लठि ठtरहे राबर्डौब्र गनॉर्ष अखङ्गठ भारइ ।। 4डबडिब्रिड ननीषीउद्र नाहे । कफूर्दिश्लफिङए ७ शूक्ष हेशद्र विषद्र गारथा भर्लtन बर्लिङ शहैब्रांप्इ । बफ़ विश्ञछि उरु छेदब्र । गब्रह्मश्वब्र ক্লেশাদিরছিত, জগন্নিপাপার্থ স্বেচ্ছানুসারে শরীয় ধারণপূর্বক সংলায় প্রবর্তক এবং সংসায়ানলে সম্ভপ্যমান ব্যক্তি সকলের অনুগ্রাহক, অসীম, কৃপার লিখনি এবং অন্তর্বামী রূপে সৰ্ব্বত্র দেদীপ্যমান রছিয়াছেন। যোগ স্বায় তাহtকে জানা शांग्न । क्लेिख्तूख्ग्नि मिट्द्रांशtफ अर्थीं९ विषग्रप्रtध cयंजूद्ध छिंख्tरु বিষয় হইত্ত্বে বিনিবৃত্ত ও ধোয় বস্তুমাত্রে সংস্থাপিত করিয়া নিবিশেষকে cशां★ कtझ् । अयुःखप्रशंtक क्लेिख কছে। ক্ষিপ্ত, মূঢ়, বিক্ষিপ্ত, নিরুদ্ধ ও একাগ্র ভেদে চিত্তের অবস্থা পঞ্চবিধ। চিত্তের অবস্থা বিশেষকে চিত্তবৃত্তি কহে। চিত্তবৃত্তি পাচ প্রকায়—প্রমাণ, বিপৰ্য্যয়, বিকল্প, নিদ্রা ও স্থতি। প্রত্যক্ষ, অনুমান ও আগমভেদে প্রমাণ ত্রিবিধ। भिधTांख्ठांमधक १ि१{rग्न कtझ । ¢कfन विषघ्न यtरछविक पठाउठायु অসম্ভব বলিয়া স্থির থাকিলে ও তদৰ্থ-প্রতিপাদক শঙ্কা শ্রবণ माझ पञां★ांडड: डविषtग्नग्न cय खान छtग्रा, उtझाँग्न मांभ दिकझ। নিদ্ৰাশবো সাধারণ নিদ্রা ও স্মরণকে স্মৃতি কহে । এই পাচ প্রকার চিত্তবৃত্তিই চিত্তের পরিণাম বিশেষ বলিয়া চিত্ত্বের ধৰ্ম্ম, আত্মধৰ্ম্ম নহে। পরিণাম ত্ৰিবিধ ধৰ্ম্ম, লক্ষণ ও অবস্থা। যোগস্বরূপ চিত্তবৃত্তি নিরোধ অভ্যাল ও বৈরাগ্য দ্বারা সমুৎপন্ন হয়। वक्षकाण निग्नखग्न श्रानब्राँडिनब्र गङ्कारग्न ८कॉन विषtग्र शृङ्ग कब्राएक अछाण, माग्न विश्ब्र-श्रृष-विङ्घकाएरु :दन्त्राश्रा कrश् । बांशग्न प्रब्रांशा से भश्ठि श्छ, cन विtबकन रुरब्र, श्रृंधझ:धछमक विषtप्रब्र यनैौफूङ जामि नहे, आमाब्रहे रणवर्डौं प्रथकुःषांनि-जनक दिवङ्ग, ५ कांद्र१ &वग्नाश्राuक द*ौकांग्न लtक निर्भत्र कब्र बाग्न । बिक्य विविष नृछे ७ आश्वविक । हेश्লোকে উপভুঙ্গ্যমান বিষয়কে দৃষ্ট, আর পরলোকে ভোক্তব্য विषब्रप्क आश्ववृिक कtर । जनप्यारशत्र भषिकांग्रैो नकtग नटर ; थांशनिtर्णब्र क्लेिख 4गघ्र इश्ब्रांtइ, ठांशनिtर्णब्रहे खांनcवाप्नब्र चशिकांब्र आtइ । वाशरनग्न क्लेिखeaनाम नाँ इहेबांtइ, पठांझक्ञिएक धथमठः क्विब्रांरषां★ कब्रिtठ इब्र । अtजब्र नरकांद्र बन ●यकाङ्ग-जनन, जैौबन, छाफन, cक्षन, अछिtषक, शिक्षणैौश्ङ्ग१, चांश्र;rशब, 'ळं, शैशन ७ ७द्धिं । ऎष्ठति • बिहाcषांप्नइ जड्रैगन कब्रिtण cङ्गनं नकल चौ१ एछ । gषांणाम VIII ^^, [ ७११ ] - - अडेविष-दम, मिक्रम, चांगन, eथशां★ाँध, सवडrदां★, ब्रॉब्रना, शान ७ गयारि। मानवाडूह चांचारिक डिरिtबनएक 4ोगीब्रांय करर । eथांभांब्रांभ बिविष ८बळक, श्रृंबक ७ कूखक । बथाविष cदांशांशूईान कब्रिtण निदि हम । निकि मांनांख्यकांब्र, उग्ररथा अभिब, णषिमा, भश्धिा, श्रब्रिम, बाँकांभा, बेलिष, बनिष ७ कांभाश*ाग्निरु ७३ wने निक्ट्रिक बशांजिकि कहए । जकण याखि प्रहे म१गोएक्लङ्ग कोब्रन् ७कमाझ ७4हछि-ुबসংযোগ । ঐ প্রকৃত্তি-পুরুষ-সংযোগ জৰিভাৰশগুই জন্মে। ঐ अदिछांग्न दिनालक ८कदम दिएबकथTाग्नि, uडडिछ जबेिछtद्र উন্মুলক উপায়ান্তর নাই। বেরূপ চিকিৎসাশাস্ত্র রোগ, রোগহেতু, আরোগ্য ও ভেষঙ্গভেদে চতুস্কৃছি, সেইরূপ যোগশাঙ্কও হেয়, হেয়হেতু, মোক্ষ ও মোক্ষহেতু ভেদে চতুৰ্বহ । দুঃখময় সংসায়কে হেয়, প্রকৃতি-পুরুষ-সংযোগকে হেয়হেতু, আত্যস্তিক প্রকৃতিপুরুষ-সংযোগ-নিবৃত্তি স্বরূপ কৈবল্যকে মোক্ষ এবং বিবেকখ্যাত্তি স্বরূপ দর্শনকে মোক্ষ কহে । [ भाज्रछण ७ जो१था cन५ । ] মীমাংসাদর্শন—এই দর্শনপ্রণেতা মহৰ্ষি জৈমিনি, এইজগু ऐशव्र नांम खभिनिन*न इहेग्रांरक्ष् । हेशष्ठ ८वtनघ्न दिशन्न जकल मैौभारनिष्ठ श्हेब्राह्झ, uहेखङ ऐहाँग्न मांम मैौथां५णनिर्णन । बैौमांश्जा यTउँौ७ ८कfम विरुदग्नब्रहे निकाढ श्ब्र ना ।। ५rहेअछ প্রত্যেক কার্য্যেয়ই মীমাংসা প্রয়োজম। যে স্থলে বেদের তাৎপৰ্য্যাৰ্থ নিশ্চয় করা সুকঠিন, সেইরূপ শ্রুতি ও স্বত্যাদির नब्र”ब्र विtब्रापखछनशूर्कक $ ७ङtइब्रभाछठा गश्श*न कब्रा७ नामांछ कर्टिन नtश् । uहेजष्ट भैौभांश्नांब्र थरब्रांजम, बैौभांश्ना করিতে হইলে একমাত্র মীমাংসাদর্শনই উপায় স্বরূপ। শ্রীতি সকলের মধ্যে যে যে স্থলে অস্পষ্টতা ও পরম্পর বিরোধ ছিল, অশ্বৰ তাদৃশ শ্রীতির সহিত ষে যে স্থলে কল্পশাগ্র ও মঘাদি । স্থতির বিপ্রতিপত্তি ছিল, মহৰ্ষি জৈমিনি এই দর্শনে তাহারই মীমাংসা করিয়াছেন। এই দর্শনাকুলায়ে ৰেঙ্গ অপৌরুষেয় এবং cदलहे अक्र, छेचन्न यद९ मानव ८कएहे छैiहाँब्र कé जरश्म । सेश निष्ठा। ऍाशंद्र ८१मप्क शाग्न१७ tबनिक कईष्ठिभू५ कtब्रम, তাহারাই ব্রাহ্মণ। বেদ যদি কোন ব্যক্তি কর্তৃক চিণ্ড হুইত, ठांश श्tण रुधनरे cबtनांड बांवषिषtब्रध्न गछाछ थांकिठ ना, ८कांन जर* अपृष्ठहे मिथj! इऍड नtभश् नाएँ। ३छIानि ब्रर" বেদের অপৌরুষেরত্ব এক্তিপাদিত হইয়াছে । এই দর্শন चांभञां५Titध्र ७६१ नश्व ग१५ाक चशिक्षब्रtण बिंडख । छांशग्न dंक ७क अषिकब्रt१ ७क4क अकाद्र विtब्रांtषब्र भौबारगा थाएइ ७ष९ (यtठाक जरिकब्रt१ *ाष्s *की जन-विदछ, जरिषप्र, भूर्ल ७ उचब्रगच५षर निर्भद्र ।