পাতা:বিশ্বকোষ অষ্টাদশ খণ্ড.djvu/৭৪৬

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-o-rror বিবাহ --- S DDDD S ggBB BBBDDDD DDDttBBB BBBS ८थाबिज़छढूंकग्राफ न विशिः ” ; : देहाब्र फावांर्ष uई cग, “ब¢ वृरख" cभक cष *ठि नरकात्र त्यप्ञान्न आराइ, फन्द्र छठीब्र. श्रृङ्काब्र गच्न श्राणनार्थ चछ गठिहे दूकिtफ ६ईएव। - * . ... ८श इप्ण •विजारौ लिङ्ग यूफूाङ्ग अद्भु नाशैय्द्रब्र बौदमनिर्मिीtइब्र छेलांब्र भ{ थांtक, cवहे ह्tगहे खेशtबग्न जांभ९कोण উপস্থিত হয়। জাপৎকাল উপস্থিত হইলেই গুৎসময়ে জাপ. शूढि चक्णचम अन्ति जैविक मिकीङ कण्डि झक्क। ५३ जबप्राग्न झाश द्वैोरणक्रिबिं★द्र अछ श्रांज्ञाकब्र *ानंaश्न कब्रिरङ . इग्न । cरुवण शैक्किर्ष हे ८ष विषव औरणारकद्रा अनब्र जछिछावाकद्र नंद्रनां★tद्र ह३५, जांश नार, विषदांभंच जब्रक्रिछ| शहन जोशप्रइ पब्रिक्र कब्रा४ कfन । dरे निबिड बछ् , बणिब्रांtइम :

  • निष्ठा प्रचद्धि ८कौयांtग्न छर्डीं ब्रचडि cयौवन । ब्रचडि इविtङ्ग भूब न जैौ प्रांठज्ञामईफि ॥"

峰 o 蠟 o হুক্ষ্মেভ্যোহপি প্রসঙ্গেত্যঃ স্ক্রিয়োরক্ষ্য বিশেষতঃ । ৰয়োৰ্ছি কুলয়োঃ শোকমাৰহেম্বুরক্ষিতা।” शङब्रां५ बैौबिकर्षि७ शईब्रभाथ जैौविtशग्न थठिनांणरूiधौम धांख् अवश्लेयरद्वांछम्रौञ्च । अ७:"ग्न भष्ट्र भब्रांचं८ब्रब्र छुगंग्र शैौष्णांकtनब्र श्रांगकई बणिब्रांtङ्कन यथा "অতঃপরং প্রৰক্ষ্যামি মোবিড়াং ধৰ্ম্মমাপৰি ।" (মঞ্জু ৯৫৬ ) রমষ্টদিগের এই আপদ্ধৰ্ম্মকথনে মন্ত্রসংহিতায় পরাশরোক্ত পঞ্চ আপদের কথাই বলিৰজ্ঞ পর কোন প্রকায় আপনে কি ७धकांग्न $नांग्र अवणचनौज, फांशांइ वृषश्! कब्रिङ्गांrइम । बामैौब्र श्रृङ्गाब्र गङ्ग शै नश्धूज्रा इहेtण गएछ जाजहे जकण भानtश्ङ्ग भांखि इहेष्ठ ? ठांश मा शऐtग बककईiांबणचनहे विशदcनद्र यथांनङ५ १६ । क्रुि ५ जषशरफe *ांणक व ब्रचरकब्र अशैम स्थाकारे क्षेब्राजनौइ श्रे७ । भछि बिक्ररक्ष रहेक्षण वा সংসাৰ ত্যাগ কৰুিল অথবা ঝ_িsষ্ট্রত্রেও প্রয়োজন মত নারীদিগের ভূপ পালকের অধীন হওয়া কর্তব্য। এই সকল आप्नोष्मा कविरण दूक बाब cष, श्कूिलtrज शूबडूब गरकादब्रद्र विथाबघाख जाuह, ८कथां७ विषद-विबांध्दद्र विदांन महैि । मशखांच्चएफब्र जबइ *नूजांर्ष९ किड्रड कां** पाहे नैौछिब्र वtथडे याइडीद हिण दगिब्र ८वीथ इह । विशश् कब्रांब्र कछकसणि खेरकश्च श्रोह, छद्ररथा शूखकांड अकशैeषांनछघ केरकछ कणिइ खबनांबौद्रtवग्न थांद्रनीं दिथ* *किल्ल cशील अकtछ अनीमरीहिंदकन षदि ब्लैोछ गडक्लयां९ I so I भांबाबद्ध भाषाठ श्ईक अधव नखांरबादन्तकम न कब्रिडाँ चाशैश्च शक् िवृझ रहेछ, उरव बिशाचविक्षय्म ८क्षद्र क गनि७ काङिदांब्रां जडॉटनां५wांक्रमम्न विवांब ছিল। এইগুপুত্রকে “ক্ষেত্ৰৰ পুত্র নামে অভিহিত করা হইত খাজ

  • क्खक्रः अवैौच्छ क्रैौदश शांविज्रश ब ।। স্বধৰ্ম্মেণ নিযুক্তরাং স পুত্র ক্ষেত্ৰজ্ঞ স্বতঃ ” (মন্ত্র ৯৮৩৭) ऋशकांब्रछ cनबछनूकश् चैौकांटब्रव्र दिनून हैंठिहनि । मशष्ठांब्रtडग्न अथांत्र *थांन कडिनब्र मांचक cचमबख धूब कहेचीख জখণ্ডে জতীৰ সমাদৃত। কাল্বসহকারে এই প্রথা হিন্দুসমাজ इशेक भन्चिाख श्रेबांप्छ । अङ्गबर्से डिकाङ्ग१ cक्बजभूटबग्न जनअछर चर्क कबिउ ऋथहै मद्रान नाहेबांटाइम 1. क्नड: ५भम जां★ cथयबछ *रबां९णांमध्नब्र #ाष cएथिtङ *jeब्र স্বীয় না ।

পৌনর্ভৰ পুত্রের বিষয় বিধবা-বিৰাছে আলোচিত হইলেও পুনভূ সম্বন্ধে এখানে কিঞ্চিৎ বক্তব্য আছে। আমরা পুনস্থকে পুনস্থ ব্যভিচারিণী বলিয়াই মনে করিব এবং ব্যক্তিচারিণীর শ্রেণীত্তেই গণ্য কল্পিব । কেননা মছু বলেন

  • ধ পত্য বা পরিত্যঞ্জণ বিধৰ বা স্বঘ্নেচ্ছয়া । উৎপাদয়েং পুনভূৰ স পেনির্ভৰ উচ্যতে।" বর্তমান সময়ে সামাজিক রীত্যনুসারে পুনভূ স্ত্রীগ্রহণপ্রখ তিরোহিত হইয়াছে। যদি কেহ স্বামিতাভ বা বিধবার সহবাস করে, লোকে তাহাকে ব্যভিচারী বলিয়া অভিহিত করে।

প্রাচীন হিন্দুসমাজে এইরূপে কতকগুলি কাৰ্য্য ব্যভিচার বলিয়া জানা থাকিলেও সমাজ জ্বইতে এই সকল প্রথা তিরোহিত করার কোন বিশিষ্ট উপায় প্রকল্পিত হয় নাই, যে সকল দোষ --- मानवकब्रिटझन्न चङादनिरु, गवांछ रहेएउ ठांशत्र ५कबांय्ब्र ऎकूलन করা অসম্ভৰ দেখিয়া প্রাচীন শাস্ত্রকারগণ ঐ সঙ্কল ব্যভিচারजभूशरू विशृथगाब ७ उछ,व्थगांद्र ब्रिभऊ श्tङ ना ब्रिा উহাদিগক্ষেও ফ্রিৎপরিমাণে নিয়মের আয়ত্তে আনিতে প্রয়াস পাইছিলেন ; এই নিমিত্ত মন্ত্র অক্ষতৰেনি বিধবা, পরিত্যঙ্গস্বী পত্তিভাগিনী ব্যভিচাঙ্কিণীদের পুরুষাত্তর গ্রহণসময়ে সংস্কারের ব্যবস্থা করেন। উদেশু এই যে, এইরূপ সংস্কারের ফলে ক্রণशङाॉनि बिंद्मब्रिछ एश्व, दाखिकांहग्रग्न अयांष अगांtब्र बांश नफिट्व । मछ cकक्ण चक्करयांनि क्झांरमञ्च नषtछहे “श्ब्र” विरेि धनिब्राह्लिम । यथा--

  • স চেঞ্চস্তযোমিঃ স্তাগঙ্কগ্রত্যাগতাপি বt : পোমণ্ডৰেন ভৰ1স পুনঃসংস্কারমর্থতি "" (***)