পাতা:রবীন্দ্র-রচনাবলী (দ্বিতীয় খণ্ড) - বিশ্বভারতী.pdf/১০৫

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কড়ি ও কোমল শ্রান্তি शषध८भ चांमि नर्थौ थांख चउिलग्न ? भएफ़tइ निषिण झाष्ट्र लिब्रांबू बकन । चनइ ८कांभण t?एक कूशय-नबन, कूशभ-८ब्रभूव गांtष हरह बाहे ना । স্বপনের জালে বেন পড়েছি জড়ায়ে । যেন কোন আস্তাচলে সন্ধ্যাশ্বপ্নময় রবির ছবির মতো যেতেছি গড়ায়ে ; স্বদূরে মিলিয়া বা নিখিল নিলয়। फूविtड फूविरङ tवन शtथव्र नाभरद्र কোথাও না পাই ঠাই শ্বাস কন্ধ হয়, •ाग्नान कैबिएड पाएक मृद्धिकाल्न डरत्र । এ যে সৌরঙের ৰেড়, পাষাণের নয় ; ८कषtन डॉर्डि८ड ह८ब छfदिब्र! मां *ाहे, जनौध निद्रांब्र डाटब्र भएफ चाहि छाहे ॥ दमौ शंe भूएन बाँe नषौ eहे बाइनान, हुरन-प्रशिद्रा चाब्र रूद्वारा ना नान । कूशषब्र कांब्रांशाहब क्रु ७ बाष्ठांग, 6इt\फ्नै घो९ Cइt\फु te दर ७ नं ब्रtन । ८काँषांइ ॐषाब्र चांtण1८कांथांबू चांकाल, এ চির পূর্ণিমা রান্ত্রি ছ’ক অবসান। জামায়ে ঢেকেছে তৰ মুক্ত কেশপাশ, তোমার মাৰায়ে আমি নাছি দেখি ভ্ৰাণ । जांकूण चबूनिखणि कब्रि ८कांनांकूनि गैर्षिtइ नदीtष ८धांच्च नब्रtवंबू कैन । b"