পাতা:সংস্কৃত ব্যাকরণের উপক্রমণিকা.djvu/১১৬

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गुरुः। स हि पितृवत् पूजनीयः। विद्यादाता जन्मदाता द्वावेव समानौ समं माननीयौ च।

 क्रोधं यत्नेन वर्ज्जयेत्। क्रोधवशो न परुषं भाषेत न प्रइरेत्। क्रोधो हि मइान् शत्रु:।

 सर्व्वे परवशं दुःखम्। सर्वमात्मवशं सुखम्। एतदेव सुखदुःखयोर्लक्षणम्।

 परहिंसायां परापकारे च बुद्धिर्न कार्य्यो। तयो: समं पापं नास्ति।

 यथाशक्ति परेषामुपकारऺ कुर्य्यात्। परोपकारोहि परमोधर्म्म:।

 अइङ्कारं परिइरेत्। नाइङ्कारात् परोरिपु:।

 सन्तुष्टस्य सदा सुखम्। य आत्मनः सुखमन्विच्छेत् स सन्तोषमवलम्बेत। सन्तोषमूलऺ हि सुखम्।

সম্পূর্ণ।