পাতা:হিতোপদেশঃ (লক্ষ্মীনারায়ণ ন্যায়ালঙ্কার).pdf/২৪৯

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ंश्र् हु हिर्तवृधदै*ः ॥ खबख नश्यति यभेाविभभख मैची नष्टेन्द्रिवज्र कुख भर्थपरख्य धकः । विद्याफलं व्थसनिनः कृपणख सैाखाँ राज्यं प्रमत्तसचिवख्नराधिपख ॥ श्रपरञ्च ॥ तस्करें भ्येोनियुक्तैभयः अचुभ्येोइपदल्लभात् । दृपतिर्निजलैा माश्च श्रञ्जाएँचेत् पितश्च दृि ॥ श्बातः खच्चैथास्नद्दचलं क्तःि यतंी थषड्ग्रेीप्यक्षाभिः इतएव षयं खञ्जीबकः शाख मचवेतोऽर्धैकाधिकारे नियुञ्षतंी एतद्दचनार्थानुष्ठितं सति तदारभ्ध पिङ्गलकसङ्घीवकयेो रुव्वंवन्धुपरिया चन मच्तां छ्न कालेीतिवर्त्तत ततोऽनुर्जीविनामप्या हारदाने भैविख्यदर्शनाद्दमनककरटकावन्येोन्यं चिन्त यत खदाइ दमनकः करटकमिच किं कर्त्तव्यं चात्मकृतेा ऽयं देोषः खयं इतेऽपि देीषे परिदेवनमप्यनुचितं ॥ • স্তব্ধ ব্যক্তির যশ নষ্ট হয় অশিষ্টলোকের মিত্রভা নষ্ট হয় অজিতেন্দ্রিয়েৱ কুল মষ্ট হয় খনপরব্যক্তির ধৰ্ম্ম নষ্ট হয় ব্যসনি লোকের বিদ্যা নষ্ট হয় কৃপণ জনের ཨཱ་ཝ मझे इग्न cश ब्रांछीब्र बक़ी धबख झग्र ठाशंब्र द्रांस्रr. बझे इग्न ! অপর চোৱহইতে এবং নিয়োগিপুরুধহইতে এবং বিপক্ষ হইতে এবং রাজার প্রিয় লোকহইত্তে আর অপৰ লোভ হই তে প্রজারদিগকে রাজা, পিতার ন্যায় রক্ষা করিবেক । ছে ভাই সৰ্ব্বপ্রকারে আমারবাক্য কর মামরা ও ব্যবহার করিয়াছি এই মঞ্জীবক , শল্যভক্ষক মখাধিকারে ইহাকে