পাতা:হিতোপদেশঃ (লক্ষ্মীনারায়ণ ন্যায়ালঙ্কার).pdf/৪৪১

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8R8 ॥ {च्ह्ते पिं श्रः ॥ ततेrयद्भविष्यॆऐणाक् । यद्भावि न तद्भावेि भावि वेन्न तट्न्यथा ।। दूति चिन्ता विषघ्नायमगट्ः किं न पीयते ॥ ततः प्रातर्जालेन वडूः प्रत्युत्पन्नमतिवृतवदात्मानं स न्दर्श खितः ततेजाखादपसारिता यथासनुपत्पूय गभीरं नीरं प्रविष्टःयङ्गहिष्यश्व धीवरेः प्राप्नायपाट्तेिः चते ॥ ं ब्रवीमि चन्ागलविधाते च.ट् ितद्यथाह्मन्यहिदं प्रान्ने,मि तथा क्रियता हंसावाहतुः जलाशयान्तरे प्राप्त तव कुशलं स्थले गच्क्तसेन कविधिः कूर्म्मः चाच्यघां भवङ्गंrा सह श्राकाशवर्त्मना यामि तथा विधीयतं हंसै। भूतः कथमुपाय्ः सम्भवति कूञ्छ्पेीवति युवभ्यं चूचु धृतं कृाष्ठखण्डमव मया मृखनावलम्च गन्तय युवयोः पचह्नवलेन सयापि सुखेन गन्तव्य ॥ ५० ४ * তাহার পর যড়বিঘ্য কহিল যে বিষয় হইবার উপযুক্ত নয় সে হইবেন যে বিষয় হইবার উপযুক্ত তাছার অন্যথা হবে ন} । তদনন্তর প্রভূৎপন্নমতি প্রাতঃকালে জালেতে বদ্ধ হইয় আপনাকে মৃত ভূল্য দেখাইয়া থাকিল । তাহার পর জাল হইতে নিঃসারিত হইয়া সামর্থ্যানুসারে লমুদিয়া অগাধজলে প্রবিষ্ট হইল যডুবষ্য কৈবৰ্ত্ত কর্তৃক ধৃত হইয়া ব্যাপাদিত হইল। এই নিমিত্তে আমি ৰলি অনাগত বিধাতা ইত্যাদি । সেই হেতুক যে প্রকার আমি অন্য জলাশয়ে যাই তাহ কর । হ১সেরা বলিল