পাতা:হিতোপদেশঃ (লক্ষ্মীনারায়ণ ন্যায়ালঙ্কার).pdf/৪৫৯

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88한 ॥ च्ह्तेि Iषट्शाः । तदाचैव तैः कपर्दकैर्घटशरावादिकमुपक्रीय चनैकधा ष्टद्वैरुडूनैःपुनःपुनःपुगवरुत्रादिकमुपक्रीय विक्रीयलच लेख्यानि धनानि कृत्वा विवाच्चतुष्टयं करिष्यामि धन न्तरं तासु सपत्नीषु रूपवैावनवंती या तस्यामधिकानु रागं करिष्यामि सपढ़ा यदा द्वन्दं करिष्यन्ति तदा केापाकुलेोऽहंता लगुडेनताडयिष्यामीत्धभिधायलगुडः चिङ्गः तेन शनुशरावयूनिितेीभष्ानि वहनि भग्नानि ततलेन शब्दैनागतेन कुम्भकारेण तथाविधानि भा एडान्यवलेोक्यनाद्मणस्तिरस्कृतेोमण्डपाद्वहिष्कृतश्वाते ऽइं ब्रवीमि चनागतवर्तीं चिन्तमित्घट्।िततॆाराजा रह्ि स् िटभ्रमुवाच तात यथाकर्त्तेत्वं तथेोपदिशं चर्घेनूर्ते । ভবে এই স্থানেতেই সেই কড়িতে ঘট শরাব প্রভৃতি কিনিয়া অনেক বারেতে বৃদ্ধিপ্রাপ্ত সেই ধনদ্বারা বরিয়ার গুবাক বস্ত্রাদি ক্রয় করিয়া লক্ষস২ণ্যক দ্রবিণ করিয়া চারি বিবাহ করিব তদনন্তর সেই সপত্নীর দিগের মধ্যে যে রূপ যৌবনবিশিষ্ট তাঁহাতে অধিকানুরাগ প্রকাশ করিব সপত্নীরা যখন বিবাদ করিবেক তখন ক্রোধাবিষ্ট হইয়া আমি ভtহারদিগকে সগুড়েতে করিয়া ভাড়ন করিব ইহা কহিয়া দণ্ডক্ষেপণ করিলেন তাহন্তে শঙ্কু শরাব চূর্ণ