পাতা:एकोत्तरशती — रवीन्द्रनाथ ठाकुर.pdf/৯

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ग्रहण करता है। इन दोनों ही दृष्टियों से रवीन्द्रनाथ प्रतिभा के अनूठे नमूने हैं। उनकी असाधारणता के सम्बन्ध में कोई प्रश्न ही नहीं उठता। लेकिन साथ ही, साधारण लोगों के जीवन से भी, जिन्हें उन्होंने प्यार किया था और जिनके लिए वे जिए थे, उनका संबंध गहरा और घनिष्ठ था।

 अपने जन्म के स्थान और काल की दृष्टि से भी रवीन्द्रनाथ सौभाग्यशाली थे। पश्चिमी जातियों के आगमन ने भारतीय जीवन की शान्त धारा में आलोड़न पैदा कर दिया था और समस्त देश में एक नये जागरण का संचार हो रहा था। इसके प्रारम्भिक धक्के ने भारतीय मानस में चकाचौंध पैदा कर दी थी और उस काल के प्रारम्भिक सुधारकों को पश्चिम का अन्धानुयायी बना दिया था। रवीन्द्रनाथ का जन्म तब हुआ जब प्रथम-प्रथम की यह अन्ध श्रद्धा खत्म हो रही थी, लेकिन पश्चिमी जातियों के लाए हुए आदर्श अभी भी क्रियाशील और शक्तिशाली थे। साथ ही विरासत में पाए हुए भारतीय मूल्यों के स्वीकार की प्रवृत्ति भी बढ़ती जा रही थी। इसलिए यह काल एक ऐसी विशिष्ट प्रतिभा के आविर्भाव के लिए उपयुक्त था, जो अपने में पूर्वी और पश्चिमी मूल्यों का समन्वय कर सके।

 केवल काल ही नहीं बल्कि स्थान भी उनके उपयुक्त था। भारतवर्ष के अन्य भागों की अपेक्षा संभवतः बंगाल ने इस धक्के का अधिक अनुभव किया था। बंगाल में भी जीवन के इस नये स्पन्दन का प्रभाव सब से ज्यादा कलकत्ता में ही दीख पड़ा। रवीन्द्रनाथ की प्रतिभा के विकसित होने में उनका पारिवारिक वातावरण भी सहायक था। इनका परिवार भी भारतीय जागरण के अग्रदूतों में था। उसने प्राचीन विरासत को छोड़े बिना ही नये ज़माने की इस चुनौती को स्वीकार किया था। ब्राह्मण होने के नाते रवीन्द्रनाथ ने प्राचीन भारतीय परंपराओं को बड़े सहज और स्वाभाविक ढंग से अपना लिया। वे केवल साहित्य से ही प्रभावित नहीं हुए, बल्कि संस्कृति में पिरोए धार्मिक और सांस्कृतिक आदर्शों से भी। वे भूस्वामी-वर्ग के थे, इसलिए