পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/২৯২

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कंथायाम् इन्द्रायुधवर्षा'ना | १७१ निभत्सयन्तमिवालोक वेग दुविदग्ध गरुमन्तम्, (व) प्रतिदूरमवनमता प्रति चणमतिदूरमुत्रमता च जव-निरोध समोत रोष धुरघुरायमाण धीर घेोणेन शिरो भागेन (१) निज अब-दप-(२) वशादुल्लङ्घनाथ माकलयन्तुमिव त्रिभुवनम् (श){ असित पैोत-हरित पाटनाभिराखण्डल चापानुकारिणोभिखँखाभि कस्त्राषित (३) शरीरम्, प्रास्तोण विविधवण (४) कम्बलमिव कुखुर्कलभुम्, वैलास तटाघात धातु धूलि-पाटलमिव इरद्वषभम, असुर-भुधिर पद्धलेख लोहित-सटमिव पावतौसि हम्, (ष) रद्द सङ्घातमिव मूत्तिमन्त्तम, (स) अनवरतपरिस्फ रत् प्रोथपुटोक्युक्त भुवनीद्रविवरं जगद्मध्य धेन तंन ह्रषारवेण श षाध्वनिना वलौक्षवगेन मिथ्याञ्जवेन दुवि दृश्ध दुरभिमानिनः गरुत्मन्त गरुड निभत्सयन्त तिरखाव तमिव भात्मनस्तदधिकयथाथ वगवस्वादिति भाव । क्रियीत्मचालडार । [श्] चतैौति । प्रतिचण चण चऎ बतिदूरम् अत्यन्तम् भवनमता षधीगच्छता चतिदूरमुवमता धयन्तमृष गच्छ्ता च जवलिरीधेन् पालवं क्षति कवेमाक्षरीर्घेन स्तौतिी छद्धिं प्राप्तो वॆी रीष क्रीधति न घुरघुरायमास्रा घुरघुर् इत्य व शब्द कुर्वाणा घोरा भयानका चीणा नासिका यस्य तेन शिरीभागेन अस्तकदर्शन करणेन निजश्रावदप वशात् खर्कीौथवैगाभिमानवशात् उल्लङ्घनाथ म् अतिक्रमणाथ त्रिभुवनम् आकलयन्तमिव कि परिमाणमिति वितकयन्त मिव । झियोत्ग्रे वालद्धार । [ष] असितेति । असिता क्वथएा पौता इरिता पाटला श्रे6रझाथ ताभि भतएव श्राखण्डुखचापानु कारिणीभि इन्द्रधशुसदृशैौभि खंखाभि रोमरैखाभि कखाषित विचिद्रौक्वत शरीर यस्य तम् । भतएव आसौण पृष्ठीपरि पातित विविधवण कब्बल यस्य तम् कुञ्चरकलभ इतिशावकनिव । तथा क लासस्य तटै प्रर्दशविशेषे भाघातेन एङ्गप्रइारेण धातुध खिभि निर्गतग tरकृादिरंगृभि पाटल श्व तरलवण इरद्वषभ शिवस्य द्वषमिव । तथा भसुराणां रुधिरपद्धलेखाभिर्गाढरतरेखामि लोहिता रतवर्णा सटा जटा यस्य तम् पाव त्या दुर्गाया सि इमिव स्थितम् । अत्र आर्थाँपमया वाक्याथ हैतुककाव्यलिङ्गन च सड़ौर्णा मालीपमालडार । [स] रइ इति । रइ सङ्गात वेगसमूहमिव । भव्र गुणोत्प्रचालङ्कार । করিয়া নির্গত জগতের মধ্য-পবিপূর্বক ও অত্যন্ত কর্ক । হেধারবে (অশ্বের শব্দেব नामBDD SBBS B BB BBBBB BBBB BBBB BBBB BBBBBS BBBB মস্তক ক্ষ ে ক্ষণে অত্যন্ত অব ত ও উখিত হইতেছিল এব বেগবোধ করায় অতিবিত্ত ক্রোধবশত নাসিক যুব খুব শব্দ করিতেছিল তাহাতে বোধ হটতেছিল যে সে নিজেব বেগের অহঙ্কারে ত্রিভুবন উল্লঙ্ঘন কৰিবাব নিমিত্ত ত্রিভুবন কতটুকু তাহ যেন মনে মনে বিবেচনা করিতেছিল , (ঘ) ইন্দ্রধমুর অমুকাৰী কৃষ্ণবর্ণ হরিদ্রাবর্ণ হবিতবর্ণ ও শ্বেতরক্তবর্ণের বহুতব রেখা তাহার শবীব বিচিত্র করিয়াছিল , মুতবা পিঠের উপrর নানাবর্ণের কম্বলস যুক্ত হস্তিশাবকের ন্যায়, কৈলাসপৰ্ব্বতের গাত্রে শৃঙ্গের আঘাত করায় গিঁত গৈরিকাদি ধাতুর বেণুতে পাটলবর্ণ শিবের বুষের ন্যায় এবং অমুরগণের গঢুরক্ত সংলগ্ন হওয়ায় বক্তবর্ণ জটাসমন্বিত দুর্গার সিংহের স্থায় সেই অশ্বটাকে দেখা যাইতেছিল। T[] सुखनT[२] নিগদ ৰমান নিগগৰহাৰিয়াল। [२] कखिषित कथाषित ।। [४] थासौष कण्वजनिव । g