পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৩৯৬

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कथायाँ चन्द्रापीडदिग्विजयप्रस्थानम् । ఫెలీలి. फेन पल्लवितै (१) मदपयसि मदस्त्रुता करिणां प्रचरुखलु पदे पदे पदातय (इ) । छरिताल परिमलनिभेन चातिपटना गजमदामोदेनानुलिप्तस्य सामजस्येवापययौ (२) निखिलान्यगन्धग्रहणसामथ्र्थ घाणेन्द्रियस्थ (च) । क्रमेण च प्रसर्पती बलरय पुर प्रधावता जन कदम्बकाना वोलाइलेन, तार तरदोघेण च काइलाना निनादेन, खर रव मिश्विर्तन च वाजिनां क्लषारवेण, (३) अनवरत क ताल खन (3) सम्पृक्तेन च दन्तिनामाडम्वररवेण, ग्रेवेयककिढिषी (स) बलेति । भूमिभू तल बलाना सन्याना भरैण जज रौक्वता द्युषा तथा मदकलानां मदमतानां क रणां चरणणतन पटसमूहैन ताडित च सती दिौमा प्रयाणमेरीव प्रखानदुन्टभिरिव भरव भयानक यथा तथा द्रुप्तदध्वान । भव द्रब्योत्प्रधाल द्वार तथा शव्दकरण प्रति पूव विशेषणइयार्थी हेतुरिति पदाथ हैतुक क व्यलिङ्ग चानयोरह्वाब्रिभावेन सड्र । (ह) गुल फेति । प तय सन्था पदै प° प्रतिपदचेपम् गुल फ यसै पादग्रथिपरिमिते । प्रमाणे हयसच प्रत्यय । तुरङ्गाणा मुखेभ्यो विनि सृत सित शृध फेन पल्लविते विस्तारित मटस्वता मदजलस्राविणां करिणां मदपयसि दानजले प्रचरुखलु रुखलित्वा पतितवन्त । अत्र गुल फहथसत्वाद्यसम्बन्ध ऽपि तत्सम्बन्धीत रतिशयोतिा रलढुार । (घ) श्रीति । हरितालख खनामख्यातधातुविशेषस्य परिमलनिमेन सौरभसदृशैन अतिपटुना नितान्त तौत्रैण च गजमदामोदैन इतिन दानजलसौरभण अनुलिप्तख सक्ञ्चख स्ववितस्य च सामञ्जस्य ततत्करिण इव घ्राणद्रियस्य जनगणनासिका ! निखिलान्यगन्धग्रहणसामथ्य म् धपय यौ विननाश गजमदार्मोदैन खखमदामीदैन च परिपूण त्वादिति भाव । यत्र लुप्तोपमा यौतीपमयीरङ्गाङ्गिभगवेन सडर । सामजस्तु गजै पु स सामात्र्थ पुनरन्थवत् । इति मेदिनौ । (क) क्रमेणेति । प्रसप ती बलस्य गच्छत सन्यस्य । जनकदण्वकानां खीकसमूहानाम् । तारतरदौघण আপনাব নিৰ্ব্বাণ হইয়া যাইবাব তয়েই যেন অদৃ ইষ্টয়া গিয়াছিল। (স) সৈন্তগণেব পদভবে ভূ ৩ল জর্জবিত হইতেছিল আলব মদমত্ত হস্তি বে চবণসমূহদ্বাবাও তডি ত হইতেছিল , BBB BB BBB BBB BBB BB BBB BBBB BB BBBBBS BB B হস্তিগণেব দজল ভূতলে পড়িতেছিল যে এলি আবার অশ্বগণেব মুখনি স্থত শুভ্র ৭ ফেনপুঞ্জে বিস্তুত হইয়া গুলফ (গোড়ালি গুদমুরি.) পরিমাণে উচু ইয়াছিল , স্বতব পদাতিসৈন্তগণ প্রত্যেক পদক্ষেপে তাহাতে স্বলিত হPয়া পডিয়া যাইতেছিল । (ক্ষ) হবিতা লর গন্ধেব তুT এর অত্যন্ত তীব হস্তিগণেব মদজবে গন্ধ যাহা দর নাসিকায় যাইতেছিা সেই সকল হস্তিগণেব নাসিকার স্তায় সৈন্তগণেব না সবারও অন্ত সকল গন্ধ গ্রহণ কবিবর শক্তি লোপ পাইয়াছিল। (ক) ক্রমে প্রচলিত সৈন্তগণেব অগ্রগামী লোকসমূহর কোলাহল, জয়টাকের অতি বৃহৎ ন্ধে খুরের কমিশ্রিত অশ্বগণের ক্ষোর ব হস্তিগণেব অবিশ্রান্ত সঞ্চালিত বৃহৎ কৰ্ণশবের (१) पन्वले । (२) उपययौ ममुपययौ समामय । (३) ईषारवंण । (४) खर ।