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পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৫২১

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५२४ कादम्बरो पूर्वभागे वामकपोलशयनौक्कत करतलतया समुत्सर्पद्धिरमलेनखांशुभिर्विमलोछतमच्छाच्छचन्दन-रस रचित ललाटिकमिव ललाटदेशमुद्दइन्तम्, (भ) अचिरापनीत-पारिजात-कुसुम-मञ्चरी-कर्णपूरतया (१) सशेष-(२) परिमलामोद-लोभोपसर्पिणा कखविरुतचक्कलेन मदनसमोहनमन्त्रमिव जपता मधुकरकुलेन सनोखोत्पलमिव सतमालपल्लवमिव श्ववग्देशं दधानम, \म) उत्कण्ठा उचर रीमाविव्याञ्जन प्रतिरोम कूप-निपतिताना मदनशराणा कुसुमशर शख्य (३) शकल निकरमिवाङ्ग खग्न बिभ्चाणम, (य) दचिणकरेण च स्य,रित किरणनिकरा (४) करतल स्प्रश (भ) वामेति । बामकपोलख शयनौक्कत शय्यौक्कतम् भाधारौक्कतमित्यथ करतख वामपाणितख येन तस्य भावस्तया हेतुना प्रसारितवामपाणितले बामगण्डरयापनेन वामहस्रनखकिरणाना खखाटे सञ्चरणादित्यथ समुत्सप इल खाटे समुद्गच्छहि नखाशूभि नखकिरण विमलौक्कत विशदौहातम् अतएव भच्छाच्छ न नितान्त निर्कसैन चन्दनरसैन रविता निग्निता ललाटिका तिलकविशैषी यत्र तनिव रिह्यत खलाटदैशमुद्दइनाम् । अव खलाटिकारषनीत्मघणात् क्रियात्म घालद्धार । पवपाश्झा ललाटिका इत्यमर । (म) भचिरंति । अचिरम् भनतिपूव म् चपनौत महाश्वताय दानाथ मपसारित पारिजातकुसुममच्चरीरुप कण पूरी यस्य तृस्य मावस्तया हेतुना सशेषस्तदानीौमप्यवशिष्टी य परिमख सौरभ तख य भामीदखादनुभवजनिता नन्दस्तस्य त्ज़ौमेन उपसपिणा समौपवति ना कखविरुतच्छ्लन खबौयमधुरास्मीटरवव्याजग मPनस्य सञोइनमन्त्र अपतेव स्थितन मधुकरकुलेन श्वमरगणन करणन सनौखीत्पलमिव सतमालपल्लवमिव स्थित मधुकरकुलस्य नौखोत्पलतमालपल्लवतुख्यतया प्रतौयमानत्वादिति भाव । श्रवणर्दण दधानम् । भव प्रथमा सापझवा क्रियीत् प्रेचा अपरं च ह गुणौत्म चे इत्य तासां परस्परनिरपेधतया ससृष्टि । (य) उत्कण्ठीति । उत्कण्ठ्या कामीत्सुक्योग यी ज्वर सन्तापर्खन यै रोमाञ्चास्तिष ब्याजेन चक्कलैन भङ्गखग्नम् प्रतिरोमकूपनिपतिताना मदनभराणां मध्य ये कुसुमशरास्तषा शषयशकखनिकरम् थयखण्डसमूह बिश्वाणमिव रीमाञ्चाना बाणाग्ररुपतया प्रतौतेरिति माव । अब्रापि सापक्रवा क्रिथीत्प्रे चालङ्कार तथा पुष्यवाण्स्य पुष्यातिरिताबाणासत्त्वान्मन्नशराणामित्यनेन वोपपतौ पुन कुसुमशरपदीपादानादधिकपदत्वदोष स तु कुसुमशरपद परित्यागैन व परिइरएँौय । بیسماعی-عربی «میه ».ه" - "-ه بیمه مست. -عه به *بی*بی-" معماری مینامه ছিল (ভ) বামহস্তের উপরে বাম গণ্ড স্থাপন করিয়ছিল ত হাতে উৰ্দ্ধগামী 7িম্মল নথৈব কির।ে ললাটদেশ নিৰ্ম্মল কবিয়ছিল তাহতে বোধ হইতেছিল যেন ললাটে অত্যন্ত নিৰ্ম্মল চন্দনের কতকগুলি টিপ দিয়। বাখা হইয়াছে—এইরূপ ললাটদেশ সে ধারণ করিতেছিল , (ম) অনতিপূৰ্ব্বে পাবিজাতকুমুমের সঞ্জরীরূপ বর্ণভিরণটা খুলিয়া দেওয়া হইয়াছিল , সুতরাং তখনও কর্ণে তাহার কিছু সৌরভ অবশিষ্ট ছিল বলিয়া তাহ ভোগ করিবার আন দর লোভে ভ্রমরগণ উপস্থিত হইয়া অস্পষ্ট মধুৰ ধ্বনির ছলে যেন কামদেবের সম্মোহনমন্ত্র জপ করিতেছিল তাহতে বোধ হইতেছিল যেন সেই কর্ণদেশ নীলোৎপলস যুক্ত অথবা তমাল পল্লবস যুক্ত হইয়া রহিয়াছে (য) উৎকণ্ঠ র সন্তাপে শরীরে ষে সকল রোমাঞ্চ জন্মিাছিল তাহার ছলে পুণ্ডরীক, প্রতিরোমকুপে নিপতিত মদনশরের অগ্রখণ্ডসমূহই যেন অঙ্গ ধারণ (१) कुसुमकण पूरतया । (२) धशेष । (२) कहनबरकेयरण्य । (४) सप्तरितगयघ्नकिरण !